बिहार में 776 शिक्षकों के ख़िलाफ़
एफआईआर दर्ज की गई है. इसके साथ ही 7625 शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया है
और 8950 शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस थमाया गया है. गोपालगंज ज़िले के दो
शिक्षकों को जेल भी भेज दिया गया है.
इन शिक्षकों पर बिहार बोर्ड की दसवीं और बाहरवीं की दो करोड़ 35 लाख कॉपियों के मूल्यांकन में बाधा डालने का आरोप है.
बिहार बोर्ड से बाहरवीं और दसवीं की परीक्षा करीब 30 लाख छात्र-छात्राओं ने दी है.
सरकार और शिक्षकों में असहमति के कारण ऐसा लग रहा है कि परीक्षा परिणाम वक़्त पर नहीं आ पाएगा.
इसके चलते अब तक महज 10 लाख कॉपियों की जांच ही हो पाई है. ठीक यही हाल दसवीं की कॉपियों के मूल्यांकन का है.
बिहार की शिक्षा व्यवस्था वित्त रहित अनुदान कॉलेजों पर निर्भर है. बिहार राज्य सम्बद्ध डिग्री महाविद्दालय शिक्षक- शिक्षकेत्तर कर्मचारी महासंघ के राज्य संयोजक राजीव रंजन का कहना है, "हमारी मांग बहुत लंबे समय से है. पहला तो समान काम समान वेतन.''
उन्होंने कहा, ''आप देखिए हम वित्त रहित शिक्षकों को पांच से 10 हज़ार रुपए तनख़्वाह मिलती है, उसी काम के लिए सरकारी कॉलेज के शिक्षक को हमसे कई गुना ज़्यादा वेतन मिलता है.''
बोर्ड और शिक्षको के इस टकराव का नतीजा छात्र झेल रहे हैं. रोहतास की साक्षी बाहरवी की छात्र हैं. रिजल्ट देर से आने की आशंका से वह बेचैन हैं.
वो कहती है, " इंटर की कॉपियों की जांच को लेकर बहुत तरह की ख़बरें आ रही हैं. वक़्त पर रिजल्ट ना निकला तो आईआईटी की तैयारी जो मैं कर रही हूं वो धरी की धरी रह जाएगी. अच्छा बुरा रिजल्ट तो छोड़ दीजिए मुझे चिंता रिजल्ट वक़्त पर आने की है."
बिहार बोर्ड 30 अप्रैल तक कॉपियों के मूल्यांकन का काम ख़त्म करना चाहता है. बोर्ड के चेयरमैन आनंद किशोर कहते है, "हम बाधा पहुंचाने वाले शिक्षकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रहे हैं. कार्रवाई के बाद मूल्यांकन के काम में तेजी आई है. मुझे उम्मीद है कि परीक्षा परिणाम वक़्त पर निकल आएगा.''