एक तरफ तो बिहार सरकार करोडो रूपये फूंक कर गांधी जी के चम्पारण सत्याग्रह की सौवीं वर्षगांठ मनाने जा रही है तो दुसरी तरफ अपने हक-अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले शिक्षकों पर अंग्रेजों की तरह बर्बरता पूर्वक दमनात्मक कार्रवाई कर रही है।
यह इस निकम्मी, भ्रष्ट सरकार की दोगली नीति और दोहरा चरित्र नहीं है तो क्या है? जब खुद अंग्रेजों जैसा चरित्र हो तो गांधी जैसों की अहिंसात्मक सत्याग्रह आन्दोलन को समारोह पूर्वक मनाने का ढोंग क्यों?
जबसे महा निकम्मा और बडबोला अशोक चौधरी शिक्षा मंत्री बना है पहले से रसातल में पहुंच चुकी बिहार की शिक्षा व्यवस्था और भी गर्त में गिर गई है। यह तो शाही और पटेल से भी गया गुजरा निकला। नित नये प्रयोग करके शिक्षा मंत्रालय को प्रयोग मंत्रालय बना दिया है। इसकी महान उपलब्धियों पर जरा एक नजर डालिए---------
जबसे शिक्षा मंत्री बना है----
1. दो वर्षों से छात्रों को पोशाक राशि और छात्रवृत्ति नहीं मिली।
2. इस वर्ष मुख्यमंत्री परिभ्रमण राशि विद्यालयों को आवंटित न होने के कारण बच्चे परिभ्रमण नहीं कर सके।
3. पूरा सत्र बित गया... तमाम कक्षाओं में पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई।
4. इस बार वह औने पौने पाठ्यपुस्तकों को भी उपलब्ध कराने में पूर्णतया विफल। परिणामस्वरूप पिछले सत्र की फटी पुरानी, आधी अधुरी किताबों से ही पठन-पाठन से शिक्षा की गुणवत्ता बढ जाएगी।
और जिन कक्षाओं के छात्र पूरे वर्ष बिना किताबों के रहे...उन कक्षाओं में आने वाले छात्रों का क्या?
5. इंटर और मैट्रिक की कापियों को जांचने हेतु प्राथमिक और मध्य विद्यालय के शिक्षकों को लगाना...
6. समान काम के लिए समान वेतन के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को न मानना। इसके लिए आंन्दोलनरत शिक्षकों पर दमनात्मक कार्रवाई करना। खुद जिद्द पर अडे रह.कर अगले को अपने हक की लडाई से पीछे हटने का दबाव बनाना।
बहुत लंबी फेहरिश्त है इस निकम्मे के निकम्मापन का। जगह और समय कम पड जाएगा। शिक्षकों को जरखरीद गुलाम समझ रखा है इन्होंने। समय पर वेतन तो देते नहीं बस कोल्हू के बैल की तरह जोतते जा रहे हैं।
यह तानाशाही अब नहीं चलने वाली। सभी शिक्षक और संघ एटजूट होकर इनके ताबूत में आखिरी कील ठोकने को तैयार हैं।
यह इस निकम्मी, भ्रष्ट सरकार की दोगली नीति और दोहरा चरित्र नहीं है तो क्या है? जब खुद अंग्रेजों जैसा चरित्र हो तो गांधी जैसों की अहिंसात्मक सत्याग्रह आन्दोलन को समारोह पूर्वक मनाने का ढोंग क्यों?
जबसे महा निकम्मा और बडबोला अशोक चौधरी शिक्षा मंत्री बना है पहले से रसातल में पहुंच चुकी बिहार की शिक्षा व्यवस्था और भी गर्त में गिर गई है। यह तो शाही और पटेल से भी गया गुजरा निकला। नित नये प्रयोग करके शिक्षा मंत्रालय को प्रयोग मंत्रालय बना दिया है। इसकी महान उपलब्धियों पर जरा एक नजर डालिए---------
जबसे शिक्षा मंत्री बना है----
1. दो वर्षों से छात्रों को पोशाक राशि और छात्रवृत्ति नहीं मिली।
2. इस वर्ष मुख्यमंत्री परिभ्रमण राशि विद्यालयों को आवंटित न होने के कारण बच्चे परिभ्रमण नहीं कर सके।
3. पूरा सत्र बित गया... तमाम कक्षाओं में पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गई।
4. इस बार वह औने पौने पाठ्यपुस्तकों को भी उपलब्ध कराने में पूर्णतया विफल। परिणामस्वरूप पिछले सत्र की फटी पुरानी, आधी अधुरी किताबों से ही पठन-पाठन से शिक्षा की गुणवत्ता बढ जाएगी।
और जिन कक्षाओं के छात्र पूरे वर्ष बिना किताबों के रहे...उन कक्षाओं में आने वाले छात्रों का क्या?
5. इंटर और मैट्रिक की कापियों को जांचने हेतु प्राथमिक और मध्य विद्यालय के शिक्षकों को लगाना...
6. समान काम के लिए समान वेतन के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को न मानना। इसके लिए आंन्दोलनरत शिक्षकों पर दमनात्मक कार्रवाई करना। खुद जिद्द पर अडे रह.कर अगले को अपने हक की लडाई से पीछे हटने का दबाव बनाना।
बहुत लंबी फेहरिश्त है इस निकम्मे के निकम्मापन का। जगह और समय कम पड जाएगा। शिक्षकों को जरखरीद गुलाम समझ रखा है इन्होंने। समय पर वेतन तो देते नहीं बस कोल्हू के बैल की तरह जोतते जा रहे हैं।
यह तानाशाही अब नहीं चलने वाली। सभी शिक्षक और संघ एटजूट होकर इनके ताबूत में आखिरी कील ठोकने को तैयार हैं।