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दो संविदा शिक्षकों के भरोसे 50 दिव्यांग

ये बच्चे तो आपकी बात सुन सकते हैं और ही बोल सकते हैं। राजकीय मूक-बधिर मध्य विद्यालय महेन्द्रू में ऐसे 50 बच्चे पढ़ते हैं। समाज कल्याण विभाग के सामाजिक सुरक्षा एवं नि:शक्तता निदेशालय की ओर से चलने वाला यह विद्यालय कहीं और है और छात्रावास कहीं और है।
बच्चों को हर दिन लगभग एक किलोमीटर पैदल चलकर छात्रावास से स्कूल आना-जाना पड़ता है। बच्चे साढ़े 10 बजे से चार बजे तक विद्यालय में पढ़ते हैं और फिर हॉस्टल लौट जाते हैं।

इसजाड़े में भी बरामदे पर बेंच लगाना पड़ रहा

विद्यालयमें एक ही हॉल है, जिसमें बच्चे पढ़ते हैं। सभी बच्चे हॉल में नहीं पढ़ पाते इसलिए बरामदे पर पढ़ाई के लिए बेंच लगाए गए हैं। कन-कन हवा के बीच एक छोटा-सा परदा लगा दिया गया है कि इन्हें ठंड लगे। लगभग चार कट्ठे की जमीन पड़ी है इसमें विद्यालय को विस्तार भी दिया जा सकता है और छात्रावास भी बनाया जा सकता है।

आठवींसे आगे पढ़ने का विकल्प ही नहीं

प्राइमरीसे आठ तक के बच्चे यहां पढ़ते हैं। बच्चों के एडमिशन की उम्र पांच से सात साल है। कक्षा आठ के बाद ये बच्चे कहां जाएंगे पता नहीं। सरकार के पास ऐसा कोई खास स्कूल नहीं जहां मूक-बधिर बच्चों की आगे की पढ़ाई हो सके। नतीजा कुछ की पढ़ाई सामान्य कॉलेजों में तो हो पाती है, जबकि कइयों की पढ़ाई छूट जाती है। इस स्कूल के कई बच्चे शतरंज में काफी तेज हैं। सातवीं में पढ़ने वाले रोहित और आठवीं में पढ़ने वाले गोलू ने कई अवाॅर्ड भी इस खेल में जीते हैं। लेकिन बेहतर प्रशिक्षण अभाव में इन बच्चों के अंदर की संभावनाएं कितनी आगे बढ़ पाएंगी, कहना मुश्किल है।

बच्चों को इस बार किताबें नहीं मिली हैं इसलिए पुरानी किताबें नीचे के क्लास के बच्चे पढ़ रहे हैं। ऐसी किताबें गौतम बुद्ध माध्यमिक विद्यालय शाहगंज से लायी जाती हैं। बच्चे बीमार हो गए तो उनके लिए दवा का पैसा विद्यालय को मिलता है। इलाज के लिए पीएमसीएच ले जाते हैं। बच्चों के लिए श्रवण यंत्र मिला है लेकिन किसी बच्चे के कान में यह लगा नहीं दिखा। कुछ ने छात्रावास में छोड़ दिया था तो कइयों ने विद्यालय के बक्से में बंद रखा है।

नाश्ता-खाना के लिए 50 रुपए

बिहारके विभिन्न जिलों के बच्चे यहां पढ़ रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई से लेकर रहने और पोशाक, जूते, किताब, पेन आदि सब फ्री है। सरकार से प्रतिदिन 50 रुपए एक बच्चे के दो समय के भोजन और दो समय के नाश्ते के लिए मिल रहा है। इसमें 13 फीसदी वैट और गैस में चला जाता है, बच जाते हैं लगभग 40 रुपए। इसी में बच्चों को रविवार को मांसाहारी और मंगलवार को खीर देना है।

चार साल से 10 हजार मानदेय

50छात्रों पर 13 स्थाई पद के विरुद्ध तीन स्थायी कर्मी काम कर रहे हैं। प्राचार्य, शिल्प शिक्षक और रात्रि प्रहरी स्थायी हैं। प्राचार्य को छोड़ दें तो दो संविदा शिक्षकों के भरोसे ही 50 छात्रों की पढ़ाई-लिखाई है। संविदा शिक्षक राजू कुमार और मधु कुमारी दोनों का नवंबर में ही एक्सटेंशन खत्म हो चुका है। चार साल से मानदेय 10 हजार ही है, वह भी अनियमित और साल के 10 माह।

प्राचार्य सुबीर बनर्जी, राजकीय मूक बधिर मध्य विद्यालय, महेन्द्रू 

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