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बिहार में शिक्षकों की 1 लाख से ज्यादा भर्तियां, फिर भी फॉर्म क्यों नहीं भर पा रहे 2.5 लाख से ज्यादा लोग?

बिहार में शिक्षकों की भर्ती निकली है. सीटें हैं करीब 1 लाख. जब ये शिक्षक भर्ती हो जाएंगे, तो ये सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवीं या फिर छठी से आठवीं तक के बच्चों को पढ़ा सकेंगे. लेकिन फिलहाल बिहार के 2.5 लाख से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जो इस भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा ही नहीं बन पा रहे हैं.
और इसकी वजह है उनकी डिग्री, जिसको लेकर विवाद हो गया है. केंद्र सरकार उनकी डिग्री को मान्यता दे रही है, सिक्किम जैसे राज्य भी उस डिग्री को मान्यता दे रहे हैं, लेकिन बिहार सरकार उनकी डिग्री को मान्यता नहीं दे रही है. क्या है ये पूरा मसला और क्यों इसपर बिहार में हंगामा मचा हुआ है, हम आपको तफ्सील से बताते हैं.
बिहार में डीएलएड पास लोग सड़कों पर उतरकर अपनी डिग्री को मान्य बताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
बिहार में डीएलएड पास लोग सड़कों पर उतरकर अपनी डिग्री को मान्य बताने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.
शुरू हो गई है शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया
अगस्त, 2019 में बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की भर्ती निकाली. भर्ती प्राइमरी (कक्षा एक से पांच) और मिडिल स्कूल (कक्षा 6 से 8) के शिक्षकों के लिए थी. इसमें वो टीचर भी हिस्सा ले सकते थे, जो किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे थे. इसके लिए दो ज़रूरी शर्तें थीं.
पहली ये कि उनके पास दो साल का डिप्लोमा हो.
दूसरा ये कि उनके पास 60 फीसदी अंकों के साथ सीटीईटी (सेंट्रेल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट) का प्रमाण पत्र है. वहीं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला और दिव्यांग कोटे के उम्मीदवारों के लिए अंकों की सीमा 55 फीसदी तक है.
इसके लिए शिक्षक बनने की चाहत रखने वाले लोग 27 अगस्त से लेकर 26 सितम्बर तक आवेदन जमा कर सकते थे. 27 सितंबर से मेरिट लिस्ट बननी थी, जो 9 अक्टूबर को पूरी हो रही थी. 21 अक्टूबर से 4 नवंबर तक लोग अपनी आपत्तियां जता सकते थे और 11 नवंबर तक इन सारी आपत्तियों को दूर करना था. 15 नवंबर को फाइनल मेरिट लिस्ट आनी थी, जिसके बाद 18 से 22 नवंबर तक डॉक्युमेंट्स का मिलान होना था.
बिहार सरका का नोटिफिकेशन
बिहार सरकार का नोटिफिकेशन
सितंबर, 2019 में रिशेड्यूल हो गई भर्ती
सितंबर में भर्ती प्रक्रिया रिशेड्यूल हो गई. अब आवेदन 8 सितंबर से 17 अक्टूबर तक जमा होंगे. 18 अक्टूबर से 4 नवंबर तक मेरिट बननी है और 14 नवंबर को मेरिट लिस्ट पब्लिश होनी है. किसी को कोई दिक्कत हो तो 15 से 29 नवंबर तक आपत्ति दर्ज करवा सकता है. 7 दिसंबर को आखिरी मेरिट लिस्ट आनी है. आखिर में 16 से 20 जनवरी के बीच नियुक्ति पत्र बंटने हैं. लेकिन उससे पहले करीब ढाई लाख से ज्यादा लोग इस पूरी भर्ती प्रक्रिया से ही बाहर हो गए हैं.
पेच कहां फंसा है?
पेच फंसा है इन ढाई लाख लोगों की D.El.Ed की डिग्री पर. इन ढाई लाख लोगों का कहना है कि इन्होंने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान (NIOS- The National Institute of Open Schooling) से D.El.Ed का कोर्स किया है. सरकार का कहना है कि इनका कोर्स सिर्फ 18 महीने का है, लिहाजा इन्हें शिक्षक भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है.
एनआईओएस ने कहा था कि डीएलएड का कोर्स 2 साल का है.
एनआईओएस ने कहा था कि डीएलएड का कोर्स 2 साल का है.
पहले सरकार ने कहा मान्य है, फिर कहा नहीं मान्य है
बहुत सारे शिक्षक जो प्राइमरी या मिडिल स्कूल में पढ़ाते थे, उनके पास पढ़ाने की योग्यता नहीं थी. बिहार में सरकार ने उन्हें अस्थाई तौर पर भर्ती किया था. ऐसे लोगों को पढ़ाने लायक डिग्री देने के लिए केंद्र सरकार ने एक योजना शुरू की. केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान ने इन शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए व्यवस्था की. 7 नवंबर, 2017 तक आवेदन किया जा सकता था. इनका कोर्स मार्च 2019 में पूरा होना था. बिहार के भी करीब ढाई लाख शिक्षकों ने ये ट्रेनिंग ली, जो किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे. उन्हें उम्मीद थी कि जब बिहार में शिक्षक भर्ती होगी, तो उन्हें भी मौका मिलेगा. शुरुआत में ऐसा हुआ भी. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं आरके महाजन. उन्होंने कहा कि जिन्होंने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान (NIOS- The National Institute of Open Schooling) से डीएलएड का कोर्स किया है, उनके प्रमाणपत्र पूरी तरह से मान्य हैं और वो बिहार सरकार की ओर से निकली गई शिक्षक भर्ती में शामिल हो सकते हैं. इस संदर्भ में बिहार के स्थानीय अखबारों में खबरें भी छपी थीं. ये भी कहा था कि अगर कोई ये अफवाह फैलाता है कि डीएलएड का कोर्स मान्य नहीं है, तो उसपर ऐक्शन भी लिया जाएगा.
शिक्षा विभाग के सारे अधिकारियों ने कहा था कि एनआईओएस का कोर्स मान्य है. लेकिन जब भर्ती की बारी आई तो सारे अधिकारी मुकर गए.
शिक्षा विभाग के सारे अधिकारियों ने कहा था कि एनआईओएस का कोर्स मान्य है. लेकिन जब भर्ती की बारी आई तो सारे अधिकारी मुकर गए.
लेकिन फिर आरके महाजन की ओर से ही आदेश जारी करके कहा गया कि ऐसे लोग बिहार सरकार की शिक्षक भर्ती में शामिल नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनका कोर्स महज 18 महीने का है.
छात्रों का क्या कहना है?
एनआईओएस से डीएलएड पास कर चुके शिक्षकों का कहना है कि सरकार ने निजी बीएड कॉलेजों के दबाव में आकर ऐसा फैसला किया है. डीएलएड पास एक शिक्षक ने दी लल्लनटॉप से बातचीत करने में कहा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो अधिकारी कह रहा था कि डीएलएड पास शिक्षकों को भर्ती में मौका मिलेगा, जो अधिकारी उन लोगों के खिलाफ केस दर्ज करने का आदेश दे रहा था, जो ऐसी अफवाह फैला रहे थे कि डीएलएड पास शिक्षकों को मौका नहीं मिलेगा, अब वही अधिकारी आदेश जारी कर कह रहा है कि बिना बीएड किए शिक्षकों को शिक्षक भर्ती में मौका नहीं मिलेगा. डीएलएड पास शिक्षकों का आरोप है कि अधिकारियों ने निजी बीएड कॉलेजों के दबाव में आकर ये फैसला किया है, जिससे डीएलएड पास शिक्षक निजी बीएड कॉलेजों में बीएड करने के लिए एडमिशन ले सकें.
छात्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी बीएड कॉलेजों के दबाव में आकर ऐसा काम कर रहे हैं.
छात्रों का कहना है कि कुछ अधिकारी बीएड कॉलेजों के दबाव में आकर ऐसा काम कर रहे हैं.
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग का क्या कहना है?
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आरके महाजन का कहना है कि नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन ने 22 सितंबर, 2017 के अपने आदेश में कहा है कि NIOS की ओर से चलाया जा रहा डीएलएड कोर्स सिर्फ 18 महीने का है. इसके अलावा छह महीने की इंटर्नशिप का प्रावधान है. लिहाजा बिहार की शिक्षक भर्ती के लिए वो लोग पात्र नहीं हैं, जिन्होंने डीएलएड किया है.
बिहार प्राथमिक शिक्षा के निदेशक ने अपने आदेश में कहा है कि डीएलएड पास लोग बिहार शिक्षक नियोजन भर्ती में शामिल नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनका कोर्स सिर्फ 18 महीने का है.
बिहार प्राथमिक शिक्षा के निदेशक ने अपने आदेश में कहा है कि डीएलएड पास लोग बिहार शिक्षक नियोजन भर्ती में शामिल नहीं हो सकते हैं, क्योंकि उनका कोर्स सिर्फ 18 महीने का है.
11 सितंबर, 2019 को बिहार प्राथमिक शिक्षा के निदेशक रंजीत सिंह ने भी एक आदेश जारी करके कहा है कि एनआईओएस से डीएलएड पास कर चुके लोगों को बिहार शिक्षक भर्ती में शामिल होने का मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि इनकी डिग्री मात्र 18 महीने की ही है.
एनसीटीई ने क्या कहा है?
केंद्र सरकार की एक संस्था है एनसीटीई. पूरा नाम नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन. हिंदी में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद. काम है देश के शिक्षकों की योग्यता तय करना. जब बिहार में बवाल बढ़ा तो बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आरके महाजन ने एनसीटीई ने राय ली. एनसीटीई की ओर से अंडर सेक्रेटरी डॉ. प्रभु कुमार यादव ने जवाब दिया. कहा कि एनसीटीई के 23 अगस्त, 2010 और 29 जुलाई, 2011 के आदेश में साफ कहा गया है कि पहली से लेकर पांचवीं और छठी से लेकर आठवीं तक के शिक्षकों के लिए दो साल का डीएलएड ज़रूरी है. एनआईओएस के डीएलएड के बारे में भी एनसीटीई के अंडर सेक्रेटरी डॉ. प्रभु कुमार ने कहा है कि 22 जुलाई, 2017 के एनसीटीई के आदेश के मुताबिक 18 महीने का डीएलएड सिर्फ उनके लिए मान्य है, जो 10 अगस्त, 2017 से पहले से किसी सरकारी या सरकारी मान्यता प्राप्त स्कूल में पढ़ा रहे हों.
एनसीटीई ने भी डीएलएड को मान्यता देने मना कर दिया है.
एनसीटीई ने भी डीएलएड को मान्यता देने मना कर दिया है.
NIOS क्या कह रहा है?
NIOS यानी कि The National Institute of Open Schooling. हिंदी में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान. बिहार के जिन ढाई लाख से ज्यादा लोगों ने यहां से अपना डीएलएड पूरा किया, उन्होंने एक आरटीआई लगाई. जानना चाहा कि क्या वो लोग अपनी डीएलएड की डिग्री के साथ बिहार शिक्षक भर्ती में शामिल हो सकते हैं. NIOS के चीफ पीआरओ यानी कि प्रमुख जन सूचना अधिकारी डॉ. आरएन मीना ने जवाब दिया कि वो बिहार राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा के योग्य हैं. NIOS का विज्ञापन भी यही कहता है कि कोर्स 2 साल का है. एनआईओएस के चेयरमैन सीबी शर्मा ने भी दावा किया कि NIOS डीएलएड का कोर्स पूरे देश में मान्य है. इस कोर्स के जरिए किसी भी राज्य में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षक भर्ती हो सकती है. अभी सिक्किम राज्य में भर्ती हो भी रही है.
एनआईओएस ने एक आरटीआई में कहा था कि डीएलएड की डिग्री बिहार में होने वाली शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए मान्य है.
एनआईओएस ने एक आरटीआई में कहा था कि डीएलएड की डिग्री बिहार में होने वाली शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए मान्य है.

NIOS के चेयरमैन भले ही ये दावा करें, लेकिन NCTE ने तो इसे अवैध करार दे ही दिया है. NCTE की मानें तो ये ढाई लाख लोग अपनी इस डिग्री के सहारे बिहार में प्राथमिक शिक्षक नहीं बन पाएंगे. और इसी वजह से पहले तो डीएलएड पास इन लोगों ने सड़कों पर उतरकर अपनी मांगे मनवाने की कोशिश की और जब नाकाम हुए तो ये लोग लोग पटना हाई कोर्ट पहुंच गए. अब ये लोग NCTE और बिहार सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं. फैसला क्या होगा, नहीं पता. लेकिन इतना तय है कि फिलहाल तो ढाई लाख लोगों की दो साल की ये मेहनत बेकार होती दिख रही है, जिसे उन्होंने केंद्र सरकार के कहने पर किया था. और ये तो सिर्फ बिहार की बात है. अगर पूरे देश की बात करें तो ऐसे 15 लाख लोग हैं, जिन्होंने NIOS के जरिए डीएलएड किया है. अगर बिहार की ही तरह दूसरे राज्यों की सरकारें भी ऐसी ही दलीलें दें, तो इन 15 लाख लोगों के दो साल की मेहनत और उनका पैसा दोनों ही डूब जाएगा और इसकी जिम्मेदारी किसी एक की नहीं सबकी होगी. NIOS की भी, जिन्होंने ये पढ़ाई करवाई और NCTE की भी, जिन्होंने इस डिग्री को वैधता नहीं दी.

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