पटना [जेएनएन]। बिहार के आर्थिक हालात बेहतर नहीं हैं, बावजूद इसके
नीतीश सरकार ने शिक्षा के लिए सबसे ज्यादा बजट दे रखा है। यह कुल बजट का
लगभग 25 प्रतिशत है, बावजूद इसके बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर लगातार
सवालिया निशान लग रहे हैं।
महागठबंधन सरकार के दो साल में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिसने शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी सवालों के घेरे में हैं।
बिहार के भविष्य के साथ क्रूर मजाक हो रहा है। बजट का कुल 25 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च हो रहा है, ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही कि आखिर गलती कहां हो रही है, जिससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा रही है।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसे लेकर बिहार को लगातार दो साल शर्मिंदा होना पड़ा है।पहला टॉपर्स घोटाला, जिसमे कुछ ऐसे टॉपर्स हुए जिन्हें पैसे के दम पर टॉपर बना दिया गया। इस मामले में बच्चा राय और लालकेश्वर राय जैसे शिक्षा माफिया किंग बने, जिसकी वजह से प्रॉडिकल गर्ल जैसे टॉपर निकले।इससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर करारा तमाचा लगा।
टॉपर्स घोटाले के बाद शिक्षा विभाग सख्त हुआ और दावा किया कि उसने इससे सबक सीखा है और अब ऐसी गलती ना हो इसके लिए कड़ाई की बात की गई, लेकिन इस बार भी इंटर का परिणाम बड़ा सवाल खड़ा कर गया। मात्र 35 प्रतिशत बच्चे ही पास हो पाए. इसके बाद एक बार फिर से इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद बच्चों का परिणाम बेहतर क्यों नहीं हो सका इसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं?
इन सबके लिए जब बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने तर्क दिया कि कुछ बेहतर करने के लिए ऐसे सख्त कदम उठाने होंगे, साथ ही आगे से सब ठीक होगा इस बात का दावा भी किया। हालांकि, शिक्षा मंत्री जो भी तर्क दें, लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा मंत्री पर सवाल तो उठने ही लगे हैं।
परिणाम खराब होने पर शिक्षा विभाग के सचिव पर तो गाज गिर गई लेकिन अब मांग अशोक चौधरी पर भी कार्रवाई की होने लगी है। बहरहाल, ये सवाल सिर्फ बिहार की शिक्षा व्यवस्था या फिर शिक्षा मंत्री पर नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के सुशासन और गुड गर्वनेंस पर भी उठ रहे हैं।
नीतीश सरकार के लिए अब जरूरी है कि वो ठोस और कड़े फैसले ले, ताकि ना सिर्फ बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर उठ रहे सवाल पर विराम लग सके, बल्कि बिहार के मेघा पर जो सवाल उठ रहे हैं उस पर भी लगाम लगे।
महागठबंधन सरकार के दो साल में दो ऐसी घटनाएं हुईं जिसने शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है और शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी सवालों के घेरे में हैं।
बिहार के भविष्य के साथ क्रूर मजाक हो रहा है। बजट का कुल 25 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च हो रहा है, ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही कि आखिर गलती कहां हो रही है, जिससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा रही है।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसे लेकर बिहार को लगातार दो साल शर्मिंदा होना पड़ा है।पहला टॉपर्स घोटाला, जिसमे कुछ ऐसे टॉपर्स हुए जिन्हें पैसे के दम पर टॉपर बना दिया गया। इस मामले में बच्चा राय और लालकेश्वर राय जैसे शिक्षा माफिया किंग बने, जिसकी वजह से प्रॉडिकल गर्ल जैसे टॉपर निकले।इससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर करारा तमाचा लगा।
टॉपर्स घोटाले के बाद शिक्षा विभाग सख्त हुआ और दावा किया कि उसने इससे सबक सीखा है और अब ऐसी गलती ना हो इसके लिए कड़ाई की बात की गई, लेकिन इस बार भी इंटर का परिणाम बड़ा सवाल खड़ा कर गया। मात्र 35 प्रतिशत बच्चे ही पास हो पाए. इसके बाद एक बार फिर से इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बावजूद बच्चों का परिणाम बेहतर क्यों नहीं हो सका इसे लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं?
इन सबके लिए जब बिहार के शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने तर्क दिया कि कुछ बेहतर करने के लिए ऐसे सख्त कदम उठाने होंगे, साथ ही आगे से सब ठीक होगा इस बात का दावा भी किया। हालांकि, शिक्षा मंत्री जो भी तर्क दें, लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा मंत्री पर सवाल तो उठने ही लगे हैं।
परिणाम खराब होने पर शिक्षा विभाग के सचिव पर तो गाज गिर गई लेकिन अब मांग अशोक चौधरी पर भी कार्रवाई की होने लगी है। बहरहाल, ये सवाल सिर्फ बिहार की शिक्षा व्यवस्था या फिर शिक्षा मंत्री पर नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के सुशासन और गुड गर्वनेंस पर भी उठ रहे हैं।
नीतीश सरकार के लिए अब जरूरी है कि वो ठोस और कड़े फैसले ले, ताकि ना सिर्फ बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर उठ रहे सवाल पर विराम लग सके, बल्कि बिहार के मेघा पर जो सवाल उठ रहे हैं उस पर भी लगाम लगे।