सीतामढ़ी। बिहार
विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा कड़ाई से आयोजित की गई इंटरमीडिएट परीक्षा
में खराब रिजल्ट आने के बाद सबकी नजर संसाधनविहीन स्कलों पर टिक गई है।
प्रधानाध्यापक शिक्षकों की कमी और संसाधनों के अभाव का रोना रो रहे हैं तो अभिभावक को¨चग में मनमाने फी की वसूली पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। शिक्षा विभाग ने खराब रिजल्ट को देखते हुए शिक्षा सचिव का स्थानांतरण कर दिया है जबकि संसाधन के अभाव में स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था चौपट है। मान्यताप्राप्त कॉलेज हो या फिर अंतरवर्तीय महाविद्यालय सभी का हाल कमोवेश एक ही जैसा है जहां पढ़ाई होती नहीं है और नामांकन पर ही टिका है स्कूल एवं कॉलेजों का वजूद। कहीं शिक्षक का अभाव तो कही भवन नहीं। हम चलते हैं सोनबरसा मुख्यालय स्थित श्री नन्दीपंत जीतू अंतरवर्तीय विद्यालय। 1985 में इस विद्यालय को अंतरवर्तीय महाविद्यालय का दर्जा मिला। लेकिन बच्चे का नामांकन नहीं हुआ। यह दर्जा कागज में सिमट कर रहा गया। लंबे समय के बाद इस महाविद्यालय में वर्ष 2011 से बच्चे का नामांकन शुरू हुआ। बच्चे आने भी लगे लेकिन शिक्षकों के अभाव में शिक्षण कार्य बाधित रहा। धीरे-धीरे बच्चे विद्यालय आना छोड़ दिए और निजी को¨चग एवं ट्यूशन के सहारे तैयारी को मजबूर होने लगे। चार वर्ष बाद अनुबंध पर सरकार ने दो शिक्षक की बहाली की। लेकिन तीन साल बीत जाने के बावजूद भी एक भी शिक्षक माहविद्यालय में योगदान नहीं दिए। नतीजतन बच्चे की आस टूटी और फिर से को¨चग के सहारा लेने को मजबूर होना पड़ा। इस वर्ष भी इस महाविद्यालय के करीब 300 छात्र-छात्राओं का नामांकन किया गया। प्राचार्य लक्ष्मी महतो बताते हैं कि इस महाविद्यालय में भवन की कमी नहीं है सारी व्यवस्था है लेकिन शिक्षकों के कमी के कारण पढ़ाई नहीं होती है। अगर शिक्षक रहे तो पढ़ाई होगी।
परिहार संवाददाता के अनुसार इस बार गांधी उच्च विद्यालय से इंटर विज्ञान व कला में करीब 450 छात्र परीक्षा में शामिल हुए। इनमें से 40 प्रतिशत से भी कम छात्र उतीर्ण हुए हैं। हालांकि राहत देने वाली बात यह है कि जिला के टॉप टेन में इस विद्यालय की तीन छात्रा शामिल हैं। लेकिन टॉप टेन में जगह बनाने वाली इन छात्राओं की सफलता में को¨चग सेंटर की अहम भूमिका है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक अता करीम ने बताया कि प्लस टू के लिए संसाधनों का घोर अभाव है। भवन निर्माणाधीन है। यहां प्लस टू के लिए कम से कम बारह शिक्षकों की आवश्यकता है। लेकिन केवल चार ही पदस्थापित हैं। कहा कि यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अगर संसाधन उपलब्ध हो तो यहां के छात्र हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएंगे। इसी विद्यालय के एक अन्य शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एक तो शिक्षकों का अभाव है, जो कार्यरत हैं वह भी समय से विद्यालय नहीं आते हैं। अक्सर गायब ही रहते हैं। जिसके कारण छात्र यहां क्लास करने नहीं पहुंचते हैं।
प्रधानाध्यापक शिक्षकों की कमी और संसाधनों के अभाव का रोना रो रहे हैं तो अभिभावक को¨चग में मनमाने फी की वसूली पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। शिक्षा विभाग ने खराब रिजल्ट को देखते हुए शिक्षा सचिव का स्थानांतरण कर दिया है जबकि संसाधन के अभाव में स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था चौपट है। मान्यताप्राप्त कॉलेज हो या फिर अंतरवर्तीय महाविद्यालय सभी का हाल कमोवेश एक ही जैसा है जहां पढ़ाई होती नहीं है और नामांकन पर ही टिका है स्कूल एवं कॉलेजों का वजूद। कहीं शिक्षक का अभाव तो कही भवन नहीं। हम चलते हैं सोनबरसा मुख्यालय स्थित श्री नन्दीपंत जीतू अंतरवर्तीय विद्यालय। 1985 में इस विद्यालय को अंतरवर्तीय महाविद्यालय का दर्जा मिला। लेकिन बच्चे का नामांकन नहीं हुआ। यह दर्जा कागज में सिमट कर रहा गया। लंबे समय के बाद इस महाविद्यालय में वर्ष 2011 से बच्चे का नामांकन शुरू हुआ। बच्चे आने भी लगे लेकिन शिक्षकों के अभाव में शिक्षण कार्य बाधित रहा। धीरे-धीरे बच्चे विद्यालय आना छोड़ दिए और निजी को¨चग एवं ट्यूशन के सहारे तैयारी को मजबूर होने लगे। चार वर्ष बाद अनुबंध पर सरकार ने दो शिक्षक की बहाली की। लेकिन तीन साल बीत जाने के बावजूद भी एक भी शिक्षक माहविद्यालय में योगदान नहीं दिए। नतीजतन बच्चे की आस टूटी और फिर से को¨चग के सहारा लेने को मजबूर होना पड़ा। इस वर्ष भी इस महाविद्यालय के करीब 300 छात्र-छात्राओं का नामांकन किया गया। प्राचार्य लक्ष्मी महतो बताते हैं कि इस महाविद्यालय में भवन की कमी नहीं है सारी व्यवस्था है लेकिन शिक्षकों के कमी के कारण पढ़ाई नहीं होती है। अगर शिक्षक रहे तो पढ़ाई होगी।
परिहार संवाददाता के अनुसार इस बार गांधी उच्च विद्यालय से इंटर विज्ञान व कला में करीब 450 छात्र परीक्षा में शामिल हुए। इनमें से 40 प्रतिशत से भी कम छात्र उतीर्ण हुए हैं। हालांकि राहत देने वाली बात यह है कि जिला के टॉप टेन में इस विद्यालय की तीन छात्रा शामिल हैं। लेकिन टॉप टेन में जगह बनाने वाली इन छात्राओं की सफलता में को¨चग सेंटर की अहम भूमिका है। विद्यालय के प्रधानाध्यापक अता करीम ने बताया कि प्लस टू के लिए संसाधनों का घोर अभाव है। भवन निर्माणाधीन है। यहां प्लस टू के लिए कम से कम बारह शिक्षकों की आवश्यकता है। लेकिन केवल चार ही पदस्थापित हैं। कहा कि यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अगर संसाधन उपलब्ध हो तो यहां के छात्र हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाएंगे। इसी विद्यालय के एक अन्य शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि एक तो शिक्षकों का अभाव है, जो कार्यरत हैं वह भी समय से विद्यालय नहीं आते हैं। अक्सर गायब ही रहते हैं। जिसके कारण छात्र यहां क्लास करने नहीं पहुंचते हैं।