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RESULT SCAM : जांच में परत-दर-परत खुल रहे लालकेश्वर के काले कारनामे

पटना [वेब डेस्क]। रिजल्ट घोटाले में तहकीकात के बाद पता चला है कि बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने काॅपी जांच के लिए सुपौल जिले के माध्यमिक विद्यालयों के प्रधानाध्यापक व शिक्षकों को प्रधान परीक्षक व परीक्षक नियुक्त किया था, लेकिन बोर्ड द्वारा नियुक्त परीक्षकों में बड़े पैमाने पर बोर्ड के दिशा निर्देश का उल्लंघन किया गया।

दरअसल सुपौल जिले के कई वरीय शिक्षक को परीक्षक नहीं बना कर कनीय व नियोजित शिक्षक को परीक्षक बनाया गया। इतना ही नहीं, परीक्षक नियुक्त करने में विषय को भी नजर अंदाज किया गया। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मूल्यांकन केंद्र निदेशक द्वारा परीक्षकों की रिक्ति के विरुद्ध वैकल्पिक व्यवस्था के तहत परीक्षक नियुक्त करने में मनमानी रवैया अपनाया गया।
बोर्ड का स्पष्ट निर्देश था कि मूल्यांकन केंद्र निदेशक संबंधित डीइओ की सहमति से आकस्मिता की स्थिति में योग्य परीक्षक की वैकल्पिक नियुक्ति करेंगे, लेकिन केंद्र निदेशक द्वारा न तो रिक्ति का खयाल रखा गया और न ही शिक्षक के नियुक्ति के विषय को ध्यान में रखा गया।
परीक्षकों पर गिर सकती है गाज
बिहार बोर्ड द्वारा नियुक्त किये गये कई प्रधान परीक्षक व परीक्षकों ने बिहार बोर्ड के आदेश का उल्लंघन कर मूल्यांकन केंद्र पर योगदान नहीं किया। इसके कारण कई विषयों में परीक्षकों की कमी हो गयी। जिले के दोनों मूल्यांकन केंद्र पर लगभग छह सौ परीक्षकों ने मूल्यांकन का कार्य किया।
मूल्यांकन केंद्र निदेशक द्वारा स्थानीय स्तर पर परीक्षकों के नियुक्ति में भी नियम एवं दिशा निर्देश का उल्लंघन किया गया। परीक्षकों की नियुक्ति में केंद्र निदेशक द्वारा न तो शिक्षकों के वरीयता का ख्याल रखा गया और न ही शिक्षकों नियुक्ति के विषय को ही आधार बनाया गया।
एक ही परीक्षक से दो-दो विषयों के काॅपी की जांच करवायी गयी। उर्दू के शिक्षक द्वारा अंग्रेजी व संस्कृत के काॅपी की जांच कराई गयी, जबकि हिंदी के शिक्षक ने समाजिक विज्ञान की काॅपियों का मूल्यांकन किया। शिक्षकों ने भी मूल्यांकन केंद्र निदेशक को अपने दिये गये आवेदन में भी अपने विषय को छिपा कर दूसरे विषयों की काॅपी जांच करने के लिए नियुक्ति पत्र प्राप्त कर लिया। स्क्रूटनी के दौरान कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। काॅपी के अंदर के अंक व ऊपरी भाग में किये गये कुल अंक में अंतर पाया गया है।
एसडीओ द्वारा पकड़ी गयी थी गड़बड़ी
स्वच्छ व गुणवत्तापूर्ण उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए बिहार बोर्ड ने डीएम की देखरेख में मूल्यांकन का कार्य संपन्न कराने का निर्देश दिया था। मूल्यांकन केंद्रों पर मूल्यांकन अवधि में सीसीटीवी कैमरा केंद्र के बाहर एवं मूल्यांकन कक्ष में लगाने का निर्देश दिया गया था। सीसीटीवी कैमरा का प्रसारण डीएम के जिला नियंत्रण कक्ष अथवा उनके द्वारा प्रतिनियुक्त पदाधिकारी के समक्ष करने का निर्देश दिया गया था। मूल्यांकन केंद्र पर मूल्यांकन अवधि के लिए दंडाधिकारी के साथ पुलिस बल की भी व्यवस्था की गयी थी।
जिला मुख्यालय स्थित विलियम्स उच्च विद्यालय मूल्यांकन केंद्र पर सदर एसडीओ ने निरीक्षण के दौरान कई परीक्षकों को बिना काॅपी जांच किये ही सीधे मूल पृष्ठ पर अंक देते पकड़ा था, लेकिन मूल्यांकन में शामिल सभी परीक्षकों ने एकजुट होकर मूल्यांकन कार्य को बहिष्कार करते हुए डीएम से मिल कर एसडीओ को मूल्यांकन केंद्र पर जाने पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। जिसके बाद एसडीओ ने भी मूल्यांकन केंद्र पर जाने से परहेज किया और परीक्षकों के द्वारा मनमाने तरीके से काॅपियाें की जांच पूरी की गयी।
लालकेश्वर की और भी कई लीलाएं
बिहार बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिर्फ टॉपर बनाने का खेल ही नहीं करते थे, बल्कि इंटर के फर्जी सर्टिफिकेट को ऑरिजनल करने का काम भी करते थे। महाराष्ट्र निवासी एयर इंडिया के एक पायलट अजय खादतले के फर्जी सर्टिफिकेट को ऑरिजनल करने के लिए पूरी कोशिश भी उन्होंने की थी। इसके लिए लाखों रुपये की बड़ी डील भी हुई थी, लेकिन समिति कार्यालय के कुछ कर्मचारियों के विराेध करने के कारण खादतले के फर्जी सर्टिफिकेट को ऑरिजनल नहीं बनाया जा सका।
मालूम हो खादतले अजय ने एयर इंडिया में पायलट की नौकरी इंटर के फर्जी प्रमाणपत्र के तौर पर प्राप्त किया था। एयर इंडिया की इंक्वायरी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पास पहुंचे, इससे पहले खादतले अजय ने पूर्व अध्यक्ष से मिल कर फर्जी सर्टिफिकेट को ऑरिजनल बनाना चाहा।
खुद बना डाला रोल नंबर, और तैयार कर दिया सर्टिफिकेट
खादतले अजय को इंटर का छात्र बनाने के लिए पूर्व अध्यक्ष ने खादतले अजय को भगवान बुद्ध महाविद्यालय, मीठापुर से फर्जी रॉल नंबर 10316 बनाया। इसके बाद उसका मार्क्सशीट तैयार करने लगे. लेकिन जब भगवान बुद्ध महाविद्यालय, मीठापुर का टीआर निकाला गया तो पता चला कि 1995 में इस कॉलेज से 310 ही छात्र इंटर की परीक्षा में शामिल हुए थे। इसके बाद पूर्व अध्यक्ष ने 10310 से 10316 के बीच पांच छात्रों का नाम दुहरा दिया। टीआर में तो कॉलेज के छात्रों की संख्या बढ़ गयी. खादतले अजय को इंटर साइंस में प्रथम श्रेणी में पास भी करवा दिया।
सीडी में अंक चढ़ाने पर फंस गया मामला
खादलते अजय को बिहार बोर्ड के इंटर का छात्र बनाने के लिए पूर्व अध्यक्ष ने काफी कोशिश किया। मार्क्स सीट गुम होने की कहानी रची गयी। मार्क्स सीट फर्जी बनाया गया। मार्क्स सीट से टीआर बना और फिर मार्क्स को सीडी में डलवाने के लिए संचिका बनायी गयी। इस संचिका के फाइल काे आगे बढ़ाया गया। लेकिन कंप्यूटर विभाग और निगरानी विभाग से इस संचिका को अध्यक्ष के पास से यह कह कर लौटा दिया गया कि इस मार्क्स सीट सही नहीं है और यह सीडी में लोड नहीं हो पायेगा। सीडी में मार्क्स लोडिंग कॉलेज से ही आता है और यह काम प्रोसेसर का होता है।
एयर इंडिया ने भेजा सर्टिफिकेट, वेरिफिकेशन में निकला गलत
खादतले अजय की नियुक्ति एयर इंडिया में इंटरनेशनल पायलट के तौर पर हुयी थी। मुंबई से दुबई की फ्लाइट खादतले अजय के जिम्मे था। नियुक्ति के बाद एयर इंडिया खादतले अजय के इंटर के शैक्षणिक प्रमाण पत्र को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पास 2014 फरवरी में भेजा।
खादतले अजय का जो इंटर सर्टिफिकेट समिति कार्यालय के पास अाया। इंटर के निगरानी विभाग में खादतले के इंटर के प्रमाणपत्र का मिलान टीआर से किया गया, लेकिन इस नाम का कोई छात्र इंटर की परीक्षा 1995 में शामिल ही नहीं हुआ था। इसके बाद समिति की ओर से एयर इंडिया काे इसकी सूचना दी गयी कि खादतले के इंटर का प्रमाणपत्र का अभिलेख समिति के पास मौजूद नहीं है।
इंटर के प्रमाणपत्र पर होता है प्रमाणपत्र का सीरियल नंबर
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा जारी इंटर के प्रमाण पत्र पर रॉल नंबर के साथ रॉल कोड अंकित होता है।इसके अलावा प्रमाण पत्र का सीरियल नंबर भी अंकित होता है। लेकिन खादतले अजय के इंटर प्रमाण पत्र पर ना रॉल नंबर था और नही रॉल कोड था।
इसके अलावा सर्टिफिकेट पर इंटरमीडिएट काउंसिल द्वारा दिया गया प्रमाणपत्र का नंबर भी नहीं था। प्रमाणपत्र पर केवल कॉलेज का नाम भगवान बुद्ध महाविद्यालय, मीठापुर और 1997 में उत्तीर्ण की जानकारी दी हुई थी।जांच में पूरा मामला ही गड़बड़ निकला।
डीडीसी की हो रही खोजबीन
बिहार बोर्ड घोटाला मामले में एसआइटी की जांच वैशाली, मुजफ्फरपुर, नालंदा, समस्तीपुर के बाद अब मुंगेर पहुंची है। एसआइटी ने मुंगेर के जिला प्रशासन को पत्र भेजा है। पत्र में उस डीडीसी का नाम पूछा गया है, जो वर्ष 2014 में तैनात थे और जिन्होंने अनिल कुमार को एनओसी दी गयी थी। इसके बाद अनिल कुमार बिहार बोर्ड में प्रतिनियुक्त हुए थे और लालकेश्वर प्रसाद ने उसे अपना पीए बनाया था। एसआइटी ने तत्कालीन डीडीसी को शक के दायरे में लिया है। अब मुंगेर से जवाब आने के बाद उनसे पूछताछ की जायेगी।
फरार चल रहे तीन टॉपर्स, उनके परिजनों की तलाश में एसआइटी की छापेमारी जारी है। गुरुवार को भी कई ठिकानों पर दबिश हुई है, लेकिन, किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। यहां बता दें कि एसआइटी की एक टीम बिहार के बाहर भी छापेमारी कर रही है लेकिन, अब तक कोई सुराग नहीं लगा है। एसआइटी को बिहार बोर्ड घोटाले से जुड़े कुछ नये दस्तावेज हाथ लगे हैं। इस कड़ी में विकास चंद्रा से कुछ और पूछताछ की जानी है।
उम्मीद है कि कुछ और राज खुलेंगे, कुछ नये चेहरे भी उजागर हो सकते हैं। इसलिए एसआइटी ने विकास चंद्रा को रिमांड पर लेने की तैयारी की है। अगर एसआइटी का यह तीर निशाने पर लगा, तो वे घोटालेबाज भी जाल में फसेंगे, जो अब तक सामने नहीं आ सके हैं।
फरार इंटर टॉपरों की उम्र की होगी जांच
एसआइटी फरार चल रहे तीन अन्य टॉपरों की उम्र का पता लगायेगी। हाल में रूबी राय के मामले में जब कोर्ट को पता चला कि वह नाबालिग है, तो उसके केस को सामान्य कोर्ट से जुवेनाइल बोर्ड में ट्रांसफर कर दिया गया। साथ ही उसे जेल से रिमांड होम में भेज दिया गया। कोर्ट की तरफ से दिये गये इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद टॉपर घोटाले में फंसे तीन अन्य छात्रों को भी राहत मिल सकती है। वर्तमान में पुलिस को इनकी उम्र बताने के लिए इनके मैट्रिक के सर्टिफिकेट को एसआइटी या कोर्ट के सामने प्रस्तुत करनेवाला कोई नहीं है। इस कारण से पुलिस को यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि ये तीनों नाबालिग हैं या नहीं।
अब एसआइटी इनकी उम्र का पता भी लगायेगी, ताकि रूबी राय वाली गलती अन्य टॉपरों के साथ नहीं हो।जुवेनाइल साबित होने पर पुलिस इनके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार नहीं कर सकती है। न ही इनके घर पर फरार चल रहे अन्य घोटालेबाजों की तरह इश्तेहार चिपकायेगी और न ही इनकी गिरफ्तारी के बाद इन्हें सामान्य कैदियों की तरह जेल में ही रखा जा सकेगा। इनके मामलों की सुनवाई भी जुवेनाइल बोर्ड में होगी। इस तरह की कई सहूलियतें इन्हें मिल जायेगी, जो नाबालिग दोषियों को दिया जाता है।
जुवेनाइल बोर्ड से जुड़े एडवोकेट केडी मिश्रा का कहना है कि अगर फरार चल रहे छात्रों के बारे में यह साबित हो जाता है कि वे नाबालिग हैं, तो उन्हें हर तरह से कानूनी सहायता मिल सकती है। इसके लिए उसके माता-पिता या अन्य कोई अभिभावक भी कोर्ट या जुवेनाइल बोर्ड में उसके मैट्रिक के प्रमाण-पत्र को लेकर उपस्थित होकर यह बता सकते हैं कि वे अभी नाबालिग हैं।

इंटर कला संकाय की पूर्व टॉपर रूबी राय के मामले में न पुलिस ने उसकी उम्र पता करने की जहमत उठायी और न ही उसकी गिरफ्तारी के बाद उसकी तरफ से किसी घरवाले ने ही उसके नाबालिग होने का प्रमाण कोर्ट में पेश किया था। इस कारण उसे दो-तीन तक बेऊर जेल में रहना पड़ा, बाद में उसके नाबालिग होने की बात साबित होने के बाद कोर्ट ने से रिमांड होम में ट्रांसफर करते हुए उसके केस को जुवेनाइल बोर्ड के पास भेज दिया।
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