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कोरोना संकट के बीच विपरीत परिस्थितियों में जीत की कहानी सुपर-30 के आनंद कुमार के शब्दों में

कुछ साल पहले की बात है, मेरे मामा जी की तबीयत बहुत ही खराब थी और अचानक एक दिन मां पटना से जमशेदपुर उन्हें देखने जाना चाह रही थीं। किसी ट्रेन में कोई जगह खाली नहीं थी और मेरे लिए मां की उदासी देखना एक मुश्किल घड़ी थी। अचानक मुझे मेरा पढ़ाया हुआ एक शिष्य अमनराज याद आया, जो वर्तमान में रेलवे में बड़ा अधिकारी है। इस मुसीबत के वक्त में मैंने सोचा, हो न हो वही इस समस्या का कोई हल निकाल सकता है, इसलिए मुझे उससे संपर्क करना चाहिए। मैं हमेशा अपने स्टूडेंट्स का संपर्क नंबर अपने पास रखता हूं फिर चाहे वे मुझसे पढ़कर किसी ऊंचे मुकाम पर आसीन ही क्यों न हो गए हों।

मैंने तुरंत अपने संपर्कों की डायरी खंगाली और अमनराज का नंबर ढूंढकर उसको फोन किया और उधर से आवाज आई, ‘प्रणाम सर, कैसे हैं आप?’ मैंने अपनी समस्या बताई, तो बड़े भावुक होकर अमन ने कहा, ‘सर, आपने मुझे पढ़ाकर मेरी जिंदगी की सारी समस्याओं को हल कर दिया है, तो क्या मैं आपकी यह छोटी सी समस्या हल नहीं कर सकता हूं। उसने अपने सूत्रों और लोगों से पता किया कि कहां कैसे मेरी मां के जाने का प्रबंध हो सकता है और थोड़े प्रयास के बाद वह माता जी के लिए ऐसी सीट ढूंढने में कामयाब हुआ जो इत्तेफाक से खाली हो गई थी। इस तरह मेरी मां को मेरे बीमार मामाजी को देखने जाने का टिकट मेरे एक योग्य शिष्य की वजह से मिल सका।
बहरहाल फिर मैंने उन पुराने दिनों को याद किया और आज भी मुझे याद है अमन का वह भोला-भाला चेहरा, जब वह अपने पिता रतन भूषण के साथ हमारे घर पहली बार सुपर 30 में दाखिले के लिए आया था। तब कुल पांच सदस्यों वाले परिवार की आमदनी का कोई खास जरिया नहीं था। अमन का परिवार शहर से दूर बायपास के किनारे खपरैल के एक कच्चे मकान में बड़ी मुसीबतों में गुजारा करता था। लेकिन हां, पैसे के अभाव के बावजूद अमन के पिता शिक्षा का महत्त्व भली-भांति समझते थे और चाहते थे कि अमन की पढ़ाई किसी भी सूरत में न रुके, क्योंकि उसी से उनके सपने थे। जितना भी बन पड़ता, वे अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए रात-दिन मेहनत करते थे। जब अमनराज सुपर 30 में पढ़ाई कर रहा था, तब अक्सर उसके पिता मुझसे मिलने आते थे और अपने बच्चे के बारे में बहुत देर तक बातें करते थे। धीरे-धीरे उनसे मेरी दोस्ती हो गई।
अमन जैसा पढ़ने में होशिया था, उससे भी कहीं ज्यादा अच्छा उसका स्वभाव था। अपने पिता और गुरु की खातिर अमन ने रात-दिन एक करके मेहनत से पढ़ाई की। उसे कविताएं लिखने का भी शौक था। एक दिन उसने चुपके से पता करके मेरे जन्मदिन का भी आयोजन किया था और सुपर 30 तथा मुझ पर लिखी एक कविता भी सुनाई थी। आखिरकार एक दिन वह समय आ ही गया जब 2004 में अमन आईआईटी प्रवेश परीक्षा में शामिल हुआ और बढ़िया रैंक के साथ सफल भी हुआ। पिता-पुत्र की खुशियों का ठिकाना नहीं था। बार-बार अमन मुझे धन्वाद दे रहा था। अभी पहली खुशी खत्म भी नहीं हुई कि दूसरी बड़ी खुशी ने अमन के दरवाजे पर दस्तक दे दी और अमन का चयन स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिस कॉम्पिटिशन में हो गया। अब कई दिनों तक अमन का परिवार परेशान रहा कि आईआईटी में पढ़ाई की जाए या फिर रेलवे में। चूंकि परिवार वाले चाहते थे कि पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी पक्की हो जाए, इसलिए अमन ने रेलवे में ही जाना पसंद किया। वैसे भी इस परीक्षा के बाद लगभग पचास से भी कम विद्यार्थियों का चयन होता है।
कुछ वर्षों के बाद एक दिन अमन का फोन आया कि वह पटना के पास ही दानापुर रेल मंडल में बतौर डिवीजनल मैकेनिकल इंजीनियर पदस्थ है। मुझे उसने अपने आवास पर दानापुर आमंत्रित किया और मैं उसकी मेहनत और लगन का परिणाम देखकर खुश था और आश्चर्य चकित भी था कि वह अब एक अच्छी जिंदगी जी रहा था और पहले कभी जो अभाव उसने देखे थे उन्हें अपनी मेहनत और लगन से खत्म कर एक सुविधा संपन्न जिंदगी उसके पास थी। एक वक्त जब अमन लोगों से सहायता के लिए परेशान था आज आलम यह था कि अब घर और दफ्तर में उसके कई सहायक थे।

मुझे उस दिन सुपर 30 कार्यक्रम चलाने पर फख्र महसूस हुआ। जब मैंने अपने स्टूडेंट को आगे बढ़ते और एक बेहतर जिंदगी बनाते हुए देखा, तब मुझे लगा कि गुरु होने के नाते दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान आज मुझे मिल गया है। आज वह हाजीपुर में पदस्थ है। एक शिक्षक को और क्या चाहिए, उसका पढ़ाया स्टूडेंट ऊंचे मुकाम पर नजर आता रहे यही किसी शिक्षक की बड़ी पूंजी है।

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