अब बस करो!बहुत हो गया संघ-संघ का खेल और टुकड़ों में आंदोलन।अब तक तो यह साफ हो चुका कि,"समान काम-समान वेतन"की माँग मनवा लेना किसी भी संघ के अकेले बूते की बात नहीं।सभी संघों को अपना-अपना अहं त्यागना ही होगा जब माँग एक ही है
तो आंदोलन की तिथियाँ अलग-अलग क्यों?जो संघ इस आंदोलन में आगे निकल गए हैं वो थोड़ी उदारता और व्यवहारिकता दिखाएं और अन्य संघों को आमंत्रित करें और जो संघ आगे की तिथियाँ घोषित किये हैं वो थोड़ा पीछे आएँ।किसी भी बड़े उद्देश्य के लिये कभी दो कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे की नीति हमेशा से कारगर रही है। इसलिये शिक्षक हित में सभी संघ अपना अहं और हठधर्मिता छोड़े और शीघ्र ही पूर्ण तालाबंदी की एक तिथि घोषित करे।
आम शिक्षकों का बहुत खून बह चुका है।याद रखें यदि यह खून बेकार गया तो इसके कहर और आह से कोई भी संघ बच नहीं पाएगा।आने वाले दिनों में संघों से शिक्षकों का भरोसा उठ जाएगा।तब,तेरा संघ-मेरा संघ;मैं नेता-तुम नेता करते रहना।और हाँ इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में अपने-अपने संघों का नाम भी दर्ज कराने से नहीं बच पाओगे।
अभी भी समय है,चेत जाओ,आम शिक्षकों की भावना,उनके उबाल और आक्रोश को समझो और शीघ्र ही एक ही तिथि से पूर्ण तालाबंदी की घोषणा करो।
तो आंदोलन की तिथियाँ अलग-अलग क्यों?जो संघ इस आंदोलन में आगे निकल गए हैं वो थोड़ी उदारता और व्यवहारिकता दिखाएं और अन्य संघों को आमंत्रित करें और जो संघ आगे की तिथियाँ घोषित किये हैं वो थोड़ा पीछे आएँ।किसी भी बड़े उद्देश्य के लिये कभी दो कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे की नीति हमेशा से कारगर रही है। इसलिये शिक्षक हित में सभी संघ अपना अहं और हठधर्मिता छोड़े और शीघ्र ही पूर्ण तालाबंदी की एक तिथि घोषित करे।
आम शिक्षकों का बहुत खून बह चुका है।याद रखें यदि यह खून बेकार गया तो इसके कहर और आह से कोई भी संघ बच नहीं पाएगा।आने वाले दिनों में संघों से शिक्षकों का भरोसा उठ जाएगा।तब,तेरा संघ-मेरा संघ;मैं नेता-तुम नेता करते रहना।और हाँ इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों में अपने-अपने संघों का नाम भी दर्ज कराने से नहीं बच पाओगे।
अभी भी समय है,चेत जाओ,आम शिक्षकों की भावना,उनके उबाल और आक्रोश को समझो और शीघ्र ही एक ही तिथि से पूर्ण तालाबंदी की घोषणा करो।