समान काम समान वेतन के मुद्दे पर अधिकतर संघों ने एकमत होकर महासंघ का निर्माण किया ,जो निश्चित रूप से सराहनीय कदम है। यह पता चलता है कि अब संघ जाग गये हैं और शिक्षकों की हितैषी है।
महासंघ को ध्यान में रखकर संवाद करने के लिए कई वाट्सप ग्रुपों का निर्माण किया गया है,जिसकी सीमा समाप्त होने पर नए ग्रुप बनाए गए। वहाँ सभी संघों के तथा बाहर वाले संघों के भी अंधभक्त सदस्य भी हैं। वहां नहीं लगता कि हम शिक्षकों के समुदाय से हैं। ज्यादातर सदस्य घमण्डी ,अहंकारी,आत्मकेंद्रित और स्वार्थी हैं। सरकार ने जिस मकसद से हमारा नियोजन अलग -अलग किया था वो मकसद उनका हमेशा सफल होता है।और हम आपस में ही हमेश लड़तेें रहतें हैं।जाहिर सी बात है हम बच्चों को ये सब ही पढातें होंगे।
जब कोई समाज त्रस्त होता है,तो विरोध करता है, जैसे फ्रांस की क्रांती।जनता का स्वतः विद्रोह था, और सफल हुआ। आज जिस मूलाधिकार की बात करतें हैं उसे इंग्लैंड के लोंगों के स्वतः विद्रोह से 1215 ईस्वी में मैग्नाकार्टा में प्राप्त हुआ। तो हमारे यहां इसप्रकार की एकता,स्वतःप्रेरण,एकजुटता क्यों नहीं।जबकि हमलोग चाणक्य और आर्यभटृ की संतान हैं।
क्या हमने कभी सोंचा है कि अगर हम साढ़े चार लाख में से एक लाख भी स्वतःप्रेरित होकर महासंघ के मार्गदर्शन में हड़ताल कर पटना पहुंच जाएं तो सरकार घुटने टेक देगी। अब भी वक्त है साथियों जागो और चिंतन करो, सफलता जरूर मिलेगी।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे महासंघ में है,
देखना है एकता कितनी अब इनके सदस्यों में है ।।
धन्यवाद,
मिडिया प्रभारी,
TSS, पटना ज़िला।
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जब कोई समाज त्रस्त होता है,तो विरोध करता है, जैसे फ्रांस की क्रांती।जनता का स्वतः विद्रोह था, और सफल हुआ। आज जिस मूलाधिकार की बात करतें हैं उसे इंग्लैंड के लोंगों के स्वतः विद्रोह से 1215 ईस्वी में मैग्नाकार्टा में प्राप्त हुआ। तो हमारे यहां इसप्रकार की एकता,स्वतःप्रेरण,एकजुटता क्यों नहीं।जबकि हमलोग चाणक्य और आर्यभटृ की संतान हैं।
क्या हमने कभी सोंचा है कि अगर हम साढ़े चार लाख में से एक लाख भी स्वतःप्रेरित होकर महासंघ के मार्गदर्शन में हड़ताल कर पटना पहुंच जाएं तो सरकार घुटने टेक देगी। अब भी वक्त है साथियों जागो और चिंतन करो, सफलता जरूर मिलेगी।
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