पटना। हिन्दुस्तान ब्यूरो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि शिक्षा की सरकारी प्रणाली ही बेहतर है। इसे कैसे दुरुस्त करें, इस पर शिक्षा मंत्री-अधिकारी मंथन करें। राज्य सरकार शिक्षा पर 24 हजार करोड़ यानी कुल बजट का 20 फीसदी पैसा लगा रही है।
श्री कुमार ने सवाल किया कि आखिर प्राइवेट स्कूलों को पब्लिक स्कूल क्यों कहा जाता है। क्या एसी घरों और एसी गाड़ी से आने वाले बच्चे निजी स्कूलों के एसी कमरे में पढ़कर ढंग का आईएएस, आईएफएस, डीएम, एसपी या जन प्रतिनिधि बन सकते हैं? एक आईएएस अधिकारी को घंटों धूप-पानी में भी खड़ा रहना पड़ता है। सुबह अखबार पढ़कर भी वह अधिकारियों से ही जवाब-तलब करते हैं। प्राइवेट में पढ़ा देंगे तो कोई इतना खटेगा क्या? कदाचार और शिक्षा से जुड़े संस्थानों में गड़बड़ी पर कहा कि वह नहीं मानते कि अकेले शासन से समाज ठीक हो जाएगा। इसके लिए मानवीय प्रवृत्ति में भी सुधार जरूरी है।
*जरूरी लगे तो छात्रों की उपस्थिति बढ़ाएं*
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब देखा कि तमाम उपाय करने पर भी बच्चे स्कूल नहीं आ रहे तो 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई। इसका अच्छा परिणाम आया। शिक्षा मंत्री और बड़े अधिकारी विचार करें। जरूरत हो तो छात्रों की हाजिरी बढ़ाकर 80-85 फीसदी तक ले जाएं। केन्द्रीय मंत्रियों पर तंज कसा कि यहां भाषण दे जाते हैं, मगर साल के अंत तक शिक्षा का पैसा नहीं देते।
*छात्र और शिक्षक का अनुपात सही करें*
सीएम ने कहा कि शहरों के स्कूलों में छात्र कम और शिक्षक अधिक हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति उलट है। विभाग छात्र और शिक्षकों के अनुपात को ठीक करे। जरूरत के हिसाब से शिक्षकों को लगाए। शिक्षकों की उपस्थिति पर भी नजर रखे। हाईस्कूल और जमा दो में शिक्षकों की कमी है तो अब नई तकनीक के सहारे स्कूलों को आपस में जोड़कर पढ़ाई शुरू कराए विभाग।
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श्री कुमार ने सवाल किया कि आखिर प्राइवेट स्कूलों को पब्लिक स्कूल क्यों कहा जाता है। क्या एसी घरों और एसी गाड़ी से आने वाले बच्चे निजी स्कूलों के एसी कमरे में पढ़कर ढंग का आईएएस, आईएफएस, डीएम, एसपी या जन प्रतिनिधि बन सकते हैं? एक आईएएस अधिकारी को घंटों धूप-पानी में भी खड़ा रहना पड़ता है। सुबह अखबार पढ़कर भी वह अधिकारियों से ही जवाब-तलब करते हैं। प्राइवेट में पढ़ा देंगे तो कोई इतना खटेगा क्या? कदाचार और शिक्षा से जुड़े संस्थानों में गड़बड़ी पर कहा कि वह नहीं मानते कि अकेले शासन से समाज ठीक हो जाएगा। इसके लिए मानवीय प्रवृत्ति में भी सुधार जरूरी है।
*जरूरी लगे तो छात्रों की उपस्थिति बढ़ाएं*
मुख्यमंत्री ने कहा कि जब देखा कि तमाम उपाय करने पर भी बच्चे स्कूल नहीं आ रहे तो 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई। इसका अच्छा परिणाम आया। शिक्षा मंत्री और बड़े अधिकारी विचार करें। जरूरत हो तो छात्रों की हाजिरी बढ़ाकर 80-85 फीसदी तक ले जाएं। केन्द्रीय मंत्रियों पर तंज कसा कि यहां भाषण दे जाते हैं, मगर साल के अंत तक शिक्षा का पैसा नहीं देते।
*छात्र और शिक्षक का अनुपात सही करें*
सीएम ने कहा कि शहरों के स्कूलों में छात्र कम और शिक्षक अधिक हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति उलट है। विभाग छात्र और शिक्षकों के अनुपात को ठीक करे। जरूरत के हिसाब से शिक्षकों को लगाए। शिक्षकों की उपस्थिति पर भी नजर रखे। हाईस्कूल और जमा दो में शिक्षकों की कमी है तो अब नई तकनीक के सहारे स्कूलों को आपस में जोड़कर पढ़ाई शुरू कराए विभाग।
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