शिक्षकों को चुनाव से जुड़े काम में उलझाए रखना देश सेवा के उलट काम है

ऐसा लगता है कि हमें अज्ञानियों से प्रेम है. इसके सबूत उनकी टिप्पणियों और नीतियों के रूप में बिखरे पड़े हैं जिन्हें हम संसद और विधानसभाओं में चुनकर भेजते हैं. उन्हें कुछ खबर नहीं कि शिक्षा क्या है. एक शिक्षक के काम को घंटों में नहीं बांधा जा सकता : पढ़ाने से पहले तैयारी भी जरूरी होती है.
अगर शिक्षकों से जबरन मतदाता सूचियां बनाने और मिडडे मील यानी दोपहर के भोजन की निगरानी करने जैसे काम करवाए जाएंगे तो इससे न सिर्फ उनके पढ़ाने के वक्त में कमी आएगी बल्कि शिक्षण की गुणवत्ता भी गिरेगी. फिर भी शिक्षकों से ऐसे कई काम करवाए जाते हैं.


यह हमारे राजनेताओं के उस अज्ञान का नतीजा है जिसमें गहरा असम्मान भी घुला हुआ है. हाल ही में कानून राज्य मंत्री पीपी चौधरी का कहना था कि सिर्फ शिक्षक ही नहीं बल्कि छात्रों की भी चुनाव में ड्यूटी लगाई जानी चाहिए. वे राज्य सभा के एक सदस्य की उस टिप्पणी का जवाब दे रहे थे जिसमें कहा गया था कि शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी से छूट दी जानी चाहिए क्योंकि इससे उनके शिक्षण कार्य में बाधा पड़ती है. भारतीय जनता पार्टी के नेता चौधरी ने इस पर नैतिक और राष्ट्रभक्ति वाला दृष्टिकोण अपना लिया. वे बुनियादी कर्तव्यों और देश सेवा की बात करने लगे जिसमें बच्चों को शामिल होना चाहिए और इसे भी अपनी शिक्षा का हिस्सा मानना चाहिए. साफ है कि चौधरी शिक्षा से भी अनभिज्ञ हैं.

इससे एक बात और साफ होती है. कानून राज्य मंत्री चाहते हैं कि जिस काम को उनकी पार्टी देशसेवा कहे उसमें पूरा देश बिना सवाल किए लग जाए. इस सवाल में जो मुद्दे छिपे थे, उनको लेकर भी चौधरी की उदासीनता साफ दिखती है. शिक्षा कानून और फिर शिक्षा के अधिकार कानून में कहा गया था कि जनगणना, आपदा राहत और चुनाव संबंधी काम के लिए शिक्षकों का इस्तेमाल किया जा सकता है. संविधान भी कहता है कि चुनाव के काम में सारे सरकारी कर्मचारी हिस्सा ले सकते हैं. हैरानी की बात है कि शिक्षा का अधिकार कानून दो कर्मचारियों उदाहरण के लिए एक बैंक कर्मचारी और एक शिक्षक में फर्क नहीं करता. शिक्षकों को चुनाव के काम में झोंकने की परंपरा बहुत फैली हुई है. कभी-कभी तो उनका एक महीना इसी में निकल जाता है. यह तब है जब 2007 में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि शिक्षकों को चुनाव संबंधी काम पर सिर्फ चुनाव और मतगणना के दिन लगाया जाए जिस दिन स्कूलों की भी छुट्टी होती है. इसी तरह शिक्षकों से जबरन मिड डे मील की निगरानी करने के मामले में अलग-अलग हाईकोर्टों द्वारा दिए गए आदेशों की भी अक्सर उपेक्षा हो रही है. हो सकता है पीपी चौधरी को लगता हो कि कानून राज्य मंत्री होने की हैसियत से वे कानूनों और अदालतों की अवहेलना कर सकते हैं. ‘देश की सेवा’ के लिए बच्चों को चुनाव के काम में लगाने का उनका विचार एक तरह से बाल श्रम के खिलाफ कानूनों को भी नजरअंदाज करता है. करेगा ही. आखिर इस ‘श्रेष्ठ कोटि की देश सेवा’ ने ही उन्हें उनकी मौजूदा कुर्सी तक पहुंचाया है.

Recent Articles


teacher recruitment , primary teacher vacancy , samvida shikshak , shikshak bharti , shikshak shikshak , atithi shikshak , shikshak bharti 2019 , shikshak bharti news today , shikshak bharti application , pavitra portal shikshak bharti 2019 , shikshak bharti merit list , shikshak bharti qualification , prathmik shikshak bharti , sahayak adhyapak bharti 2019 , sahayak adhyapak bharti pariksha 2019 , sahayak adhyapak bharti news , sahayak adhyapak bharti latest news , 12460 sahayak adhyapak bharti counselling , sahayak adhyapak bharti news today