नई दिल्ली। बिहार में 3.7 लाख नियोजित शिक्षकों के मामले पर सुनवाई
करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की रिपोर्ट पर नाराजगी जताई है।
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने रिपोर्ट पर असंतोष
जताया। कोर्ट ने कहा कि जब चपरासी का वेतन 36 हजार रुपये है तो नियोजित
शिक्षक का वेतन 26 हजार रुपये क्यों है।
पिछले 13
मार्च को बिहार के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित 3 सदस्यीय कमेटी ने
अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंपी थी। 15 पन्नों की रिपोर्ट में कहा
गया है कि कर्मचारी चयन आयोग के जरिए एक परीक्षा आयोजित होगी। इस परीक्षा
में पास होने वाले शिक्षकों को ही 20 फीसदी बढ़ा हुआ वेतन दिया जाएगा।
परीक्षा पास करने के लिए नियोजित शिक्षकों दो मौके दिए जायेंगे।
पिछले
29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से पूछा था कि शिक्षक को लेकर
नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के समान
वेतन समान काम के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए राज्य के मुख्य सचिव
की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने
इस मामले में केंद्र सरकार को भी एक पक्षकार बनाने का फैसला किया था। बिहार
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि दो तरह से नियोजन और नियमित के तहत
नियुक्तियां होती हैं। इन साढ़े तीन लाख शिक्षकों की नियोजन के तहत
नियुक्ति हुई हैं। ऐसे में इन शिक्षकों को नियमित शिक्षकों के तहत लाभ नहीं
दिया जा सकता है। अगर नियोजित शिक्षकों को नियमित शिक्षकों की तरह लाभ
दिया जाएगा तो बजट 28 हजार करोड़ रुपये बढ़ जाएगा। अभी ये बजट दस हजार
करोड़ रुपये का है। बिहार सरकार ने नियोजित शिक्षकों की योग्यता पर भी सवाल
उठाया।
बिहार के नियोजित शिक्षकों के संगठन ने पटना
हाईकोर्ट में अपील दायर कर समान काम और समान वेतन की मांग की थी। पटना
हाईकोर्ट ने 31 अक्टूबर 2017 को बिहार सरकार को निर्देश दिए थे कि वह
नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान सुविधा प्रदान करे। हाईकोर्ट के
इस फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।