बांका। शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन की सुप्रीम कोर्ट में
गुरुवार को होने वाली सुनवाई को लेकर जिला के सक्रिय शिक्षकों की रात
मुश्किल से कटी। उन्हें सुबह होने का इंतजार था। गुरुवार को सुनवाई शुरू
होने के साथ जिला के पांच हजार से अधिक शिक्षक मोबाइल सेट लिए सोशल साइट या
फिर टीवी के आसपास रहे।
सुनवाई शुरू होने और फिर इस संबंध में कोर्ट की
टिप्पणी आनी शुरू होते ही शिक्षकों के चेहरे पर खुशी छाने लगी। वे अपने
नाते रिश्तेदारों और एक दूसरे शिक्षकों को इस खुशी की खबर भेजने लगे। एक
घंटे की सुनवाई के बाद ही कोर्ट में मौजूद शिक्षकों से जीत की खबर फैलने
लगी। दरअसल, कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही शिक्षकों के अधिवक्ता ने अपना
पक्ष रखा। फिर कोर्ट ने बिहार सरकार और केंद्र सरकार के अधिवक्ता से सवाल
पूछा। कोर्ट ने कहा कि जब आप एक चपरासी को 36 हजार वेतन दे रहे हैं तो
शिक्षकों को कम वेतन क्यों। आपको समान काम के बदले समान वेतन देना होगा।
सरकार के राशि के अभाव की बात पर कोर्ट ने केंद्र और राज्य को मिल कर इस
समस्या को सुलझाने के लिए कहा। कोर्ट के फैसले पर बांका के नियोजित शिक्षक
नेताओं ने जमकर खुशी मनाई। कहीं अबीर गुलाल उड़ा तो कहीं मिठाईयां बंटी।
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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मौजूद नियोजित प्रारंभिक शिक्षक संघ
के जिलाध्यक्ष संजय कुमार ने कहा कि शिक्षकों को समान वेतन नहीं देने पर
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। साथ ही हर हाल में
समान वेतन देने की व्यवस्था करने को कहा है। इससे हजारों शिक्षक परिवारों
में खुशी है। इसी महीने अगली सुनवाई में एरियर देने पर भी फैसला होगा।
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माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य मनोज कुमार ने कहा कि
बिहार सरकार शिक्षा से खिलवाड़ कर रही थी। इससे विद्यालय पढ़ाई के बदले
राजनीति और योजना वितरण का केंद्र बन गया था। अब शिक्षक पेट की ¨चता से
निश्चित होकर बच्चों को मनोयोग से पढ़ाएंगे। इससे बिहार की शिक्षा व्यवस्था
पटरी पर आएगी। मुख्यमंत्री को शिक्षकों के कोपभाजन का शिकार बनना होगा।
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उच्च माध्यमिक शिक्षक अब्दुल हन्नान कहते हैं बिहार सरकार ने शिक्षा को
हाशिये पर ढकेल दिया था। सरकार की नीतियों के कारण बिहार की शिक्षा
व्यवस्था खराब हुई। शिक्षकों को न्यायालय पर ही भरोसा था। जिसने शिक्षकों
का मान और बिहार का सम्मान रख लिया है। निश्चित रूप से यह फैसला बिहार में
शिक्षा सुधार की दिशा में बड़ा कदम साबित होगा।
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टेट-एसटेट शिक्षक संघ के प्रदेश पदाधिकारी हिमांशु शेखर मिश्रा कहते
हैं कि न्याय की जीत हुई है। अदालत ने शिक्षकों पर लगे नियोजित शब्द का
कलंक हटा दिया है। नियोजित शिक्षक अब अपने को उपेक्षित नहीं समझेंगे। जिससे
बच्चों के साथ बिहार की शिक्षा का भला होगा। उनका संगठन सुप्रीम कोर्ट में
मजबूती से लड़ा। सभी शिक्षकों को यह लड़ाई जीतने की खुशी है।
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नियोजित प्रारंभिक शिक्षक संघ के जिला महासचिव हीरालाल प्रकाश यादव ने
कहा कि शिक्षकों ने अपनी लड़ाई जीती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले
को लागू करने का निर्देश बिहार सरकार को दिया है। वह भी 27 मार्च से पहले
इसे लागू कर इस तिथि को एरियर पर बहस करने को कहा है। उम्मीद है कि
शिक्षकों को अब एरियर का लाभ भी सुप्रीम कोर्ट दिलाएगी।
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माध्यमिक शिक्षक धीरेंद्र भारती कहते हैं कि बिहार के शिक्षकों को
कोर्ट पर भी भरोसा था। सरकार कभी भरोसे लायक नहीं रही। आंदोलन के वक्त
शिक्षकों से समझौता कर संगठनों को ठगने का काम कर रही थी। सेवा शर्त तीन
महीने के बदले तीन साल बाद भी नहीं आ सका। राज्य को सरकार को शिक्षा और
शिक्षक से कोई मतलब नहीं रह गया था। अब जीत से शिक्षकों में खुशी का ठिकाना
नहीं है।
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