नई दिल्ली : बिहार के
नियोजित शिक्षकों को समान काम-समान वेतन देने के मामले में हुई सुनवाई में
देश की शीर्ष अदालत ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की, कि जो शिक्षक छात्रों
का भविष्य तय करते हैं, उनका वेतन चपरासी के वेतन से कम क्यों है ?
गौरतलब है कि इस मामले में बिहार सरकार ने
एक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की जिसे देखकर कोर्ट ने अपनी नाराज़ी
ज़ाहिर की.सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों से कहा कि
दोनों सरकारें मिलकर यह सुनश्चित करें कि शिक्षकों की हालत कैसे
सुधरेगी.बता दें कि बिहार के शिक्षकों को समान काम-समान वेतन देने में करीब
52 हजार करोड़ रुपये की जरूरत है.लेकिन इतनी बड़ी राशि के लिए सरकार ने
अपनी असमर्थता व्यक्त की है.बिहार के शिक्षकों के सुप्रीम कोर्ट में समान
काम-समान वेतन मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी.
आपको याद दिला दें कि बिहार के नियोजित
शिक्षकों को समान काम-समान वेतन देने के मामले की पहली सुनवाई गत 29 जनवरी
को हुई थी.पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पंचायत के जरिए चुने
गए शिक्षकों को नियमित अध्यापकों के बराबर वेतन देने के हाईकोर्ट के आदेश
पर रोक लगाने से मना कर दिया था. इसके बाद आज 15 मार्च को इस मामले की
दूसरी सुनवाई हुई. लेकिन बिहार सरकार की आर्थिक समस्या ने इसे फिर उलझा
दिया है.