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पीयू के गले की फांस बना नियमावली में विरोधाभास

पटना । छात्रसंघ चुनाव के लिए बनी नियमावली में विरोधाभास अब पटना विश्वविद्यालय प्रशासन के गले की फांस बन गया है। इसकी जद में आने वाले प्रत्याशियों के साथ ही शिक्षकों ने भी चुनाव प्रक्रिया में दोष के
खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू कर दिया है। पटना विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (पूटा) के अध्यक्ष डॉ. रणधीर कुमार सिंह ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के लिए पूरी तरह से चीफ इलेक्शन ऑफिसर जिम्मेदार हैं। स्क्रूटनी में दो दिनों तक क्या जांच हुई? इसका जवाब कमेटी को देना चाहिए। इसके लिए प्राचार्य या विभागाध्यक्ष दोषी नहीं हैं। चुनाव में विश्वविद्यालय प्रबंधन ने 20 लाख रुपये खर्च किए हैं। प्राचार्यो और विभागाध्यक्षों का कहना है कि दो का निर्वाचन रद होना स्क्रूटनी में नाकामी का परिणाम है। कॉलेज और विभाग से जो भी जानकारी मांगी गई वह उपलब्ध कराई गई। विश्वविद्यालय प्रशासन इसे लेकर किसी भी शिक्षक पर किसी भी स्तर की कार्रवाई करता है तो आगामी चुनाव में एक भी शिक्षक चुनाव प्रक्रिया में शामिल नहीं होगा। नियमावली की व्याख्या चुनाव कमेटी में शामिल अधिकारी अपने-अपने स्तर से करते रहे हैं। नामांकन के लिए जो अनिवार्य था, उसकी फोटोकॉपी आवेदन के साथ मांगी जानी चाहिए थी।

एकेडमिक एरियर को लेकर ऊहापोह की स्थिति :
पीयू वेबसाइट पर नॉमिनेशन की योग्यता के पैरा नंबर चार में कहा गया है कि वैसे विद्यार्थी नामांकन पत्र दाखिल नहीं कर सकते हैं जो एक से अधिक अकादमिक सत्र में एक ही कक्षा में रहे हैं। इस पर कुलपति का कहना है यह पैरा वर्तमान सत्र से संबंधित है।
पैरा नंबर छह में कहा गया है कि विश्वविद्यालय या कॉलेज में नामांकन लेने के पांच साल तक ही कोई विद्यार्थी नॉमिनेशन पत्र दाखिल कर सकता है। संयुक्त सचिव मो. असजद उर्फ आजाद चांद इसी में आरोपी बनाया गए। उसने पटना कॉलेज में नामांकन 2011 में लिया था। आरोपपत्र के अनुसार उसने पांच साल में बीए किया है। ऐसी स्थिति में वह एकेडमिक एरियर का दोषी है। वहीं, कुलपति का कहना है कि यह अवधि कॉलेज और विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग है। यदि कोई विद्यार्थी कॉलेज या विश्वविद्यालय में पांच साल बिता लेता है तो वह नॉमिनेशन नहीं कर सकता है। जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि लिंग्दोह कमेटी की रिपोर्ट में दोनों को एक ही माना गया है।

अध्यक्ष का नामांकन रद करने से पहले ही निर्वाचन रद : कई शिक्षक और विशेषज्ञ विश्वविद्यालय प्रशासन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष दिव्यांशु भारद्वाज पर कार्रवाई को आनन-फानन में लिया गया निर्णय बता रहे हैं। मंगलवार को जारी प्रेस नोट के अनुसार अध्यक्ष का निर्वाचन रद करने का आधार अवैध तरीके से पीजी में नामांकन बताया गया है। इस पर विशेषज्ञों का कहना है पहले नामांकन रद करने की प्रक्रिया होनी चाहिए थी। नामांकन रद होने के बाद उसके आधार पर निर्वाचन रद किया जाना चाहिए था। विश्वविद्यालय प्रबंधन ने परीक्षा से पहले ही रिजल्ट जारी कर दिया है। पटना हाईकोर्ट के वकील एके सिन्हा का कहना है कि नामांकन लेने और रद करने की प्रक्रिया है। इसके लिए आरोपित को पहले नोटिस जारी किया जाता है। उसके द्वारा संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर कार्रवाई की जाती है। फिलहाल जो नोटिस दिव्यांशु को दिया गया है वह चुनाव प्रक्रिया से संबंधित है। इसे पीजी नामांकन रद करने का नोटिस स्वत: मान लेना उचित नहीं होगा। बावजूद इसके कुलपति के पास कभी भी नामांकन रद करने का विशेष अधिकार है।
नोटिफिकेशन के अनुसार दिव्यांशु का नामांकन अन्य नियमों के अनुकूल पाया गया है। विश्वविद्यालय प्रबंधन के अनुसार दिव्यांशु ने स्नातक में एक ही एकेडमिक सत्र 2014-17 में बीएन कॉलेज और हिमालयन यूनिवर्सिटी, ईटानगर में नामांकन लिया है। यूजीसी के नियम के अनुसार यह अवैध है। एक छात्र एक सत्र में एक ही विश्वविद्यालय में दाखिला ले सकता है। वहीं, दिव्यांशु का कहना है कि हिमालयन यूनिवर्सिटी में बगैर सीएलसी नामांकन होता है। वहां कक्षा करने की बाध्यता नहीं है। यूजीसी के नियम की जानकारी जब उसे 2016 में मिली तो उसने पीयू से सीएलसी ले लिया। उसके पास स्नातक की एक ही डिग्री है।
हिमालयन यूनिवर्सिटी ही रद कर सकता है डिग्री :
पटना विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों का कहना है कि दिव्यांशु की स्नातक की डिग्री रद करने का अधिकार हिमालयन यूनिवर्सिटी को ही है। पीयू उसकी डिग्री रद नहीं कर सकता है। जो डिग्री जारी करता है उसी को रद करने का अधिकार है। कुलपति प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह ने बताया कि डिग्री रद करने के लिए हिमालयन यूनिवर्सिटी के कुलपति को पत्र भेजने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है।
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पुसु के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का निर्वाचन कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर रद किया गया है। कमेटी ने सभी बिंदुओं पर गहनता से जांच की है। यदि किसी बिंदु पर किसी को आपत्ति है तो चांसलर और कोर्ट में अपील करने के लिए स्वतंत्र है।

- प्रो. रासबिहारी प्रसाद सिंह, कुलपति, पटना विश्वविद्यालय

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