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हर कोई अपनी लापरवाही और निकम्मेपन को पचाने के लिए शिक्षकों को ही बलि का बकरा बनाता है

बिहार में जिसे देखो हर कोई अपनी लापरवाही और निकम्मेपन को पचाने के लिए शिक्षकों को ही बलि का बकरा बनाता है। कोई भी कमी हो, शिक्षक जिम्मेदार। मैं मानता हूं कि शिक्षकों में भी कमियां हैं।
कुछ शिक्षक अयोग्य या लापरवाह हो सकते हैं परन्तु इसके लिए सभी शिक्षकों को बदनाम करना क्या सही है? नई सरकार का गठन हो तो मुमं और शिक्षा मंत्री के समीक्षा बैठक के निशाने पर शिक्षक। बडे अधिकारियों का तबादला हो तो उनके समीक्षा बैठकों में हर कमी का ठिकरा सिर्फ शिक्षकों पर ही फूटता है। ऐसा लगता है मानो शिक्षा विभाग और खास तौर पर शिक्षकों से बुरा कोई है ही नहीं।
मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कुछ ही विद्यालय ऐसे होंगे जो नियत समय पर न खुलते हों या कुछ ही शिक्षक ऐसे होंगे जो ससमय विद्यालय उपस्थित न होते होंगे। कम से कम 11 बजे या उसके बाद तो नहीं ही आते होंगे। 10-15 मिनट या आपातकालीन परिस्थितियों में बडी हद आधे घंटे लेट पहुंचते होंगे। किन्तु कभी किसी ने तमाम सरकारी दफ्तरों में आने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के आने जाने के समय पर ध्यान दिया है...इसके विरूद्ध कभी आवाज उठाया है? इनकी लापरवाही, निकम्मेपन और गैरजिम्मेदार आचरण के लिए कोई समीक्षा बैठक हुई है...कोई आचार संहिता लागू हुई है? बिल्कुल नहीं। जबकि बिहार के सरकारी कार्यालयों में इनके लिए कहावत प्रसिद्ध है कि 11 बजे लेट नहीं और 2 बजे के बाद भेंट नहीं। नियोजित शिक्षक तो बेचारा पूर्ण तनख्वाह भी नहीं पाता। जो भी आधा अधूरा मिलता है....वह भी समय पर नहीं मिलता। गाहे बगाहे ईद, होली या दिवाली पर 'तोहफे' के रूप में मिलता है...'मेहनताने' के रूप में नहीं। छ:-छ: महिने तक यह निरीह प्राणी कर्ज, उधारी या किसी अन्य जुगाड़ से दूर दराज के इलाकों में जाकर अपनी ड्यूटी करता है और इसके प्रतिफल के रूप में 5-6 महीनों पर आधा अधूरा तोहफा पाता है और बोनस में ढेर सारा अपमान, प्रताडना, तथा बदनामी पाता है। जबकि अन्य मुफ्तखोर सरकारी कर्मचारी आधी अधूरी ड्यूटी कर ससमय और उनके कार्यों की तुलना में कई गुना वेतन पाते हैं जोकि दलाल मीडिया या किसी के भी निगाह में 'तोहफा' भी नहीं होता। जनता को भी वह गलत नहीं लगते। सारी गलती शिक्षकों में ही नजर आती है जबकि अधिकांश कार्य शिक्षक ही सम्पादित करते हैं...जनगणना से लेकर मतगणना तक। मानो शिक्षक, शिक्षक न हो...कोल्हू का बैल हो।

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