बिहार में नियोजित शिक्षकों द्वारा विभिन्न मांगों को लेकर लगातार सरकार पर दवाब बनाया जा रहा है। धरना, रैली, पुतला दहन एवं अनशन आदि लोकतान्त्रिक तरीकों के माध्यम से शिक्षक अपनी मांगों को मनवाने के लिये प्रयास कर रहे हैं।
इन तमाम गतिविधियों के चक्कर में शिक्षा व परीक्षा व्यवस्था दोनों प्रभावित हो रही है। सरकार और शिक्षक संघों को बीच का रास्ता निकालने का प्रयास यथाशीघ्र करना चाहिये। सरकार आज बहुमत में है इसलिये हठ कर रही है, संसाधन का रोना तो बस एक बहाना है। सरकार को इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिये एवं शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के भविष्य का ख्याल किया जाना चाहिये। ध्यान देने वाली बात ये है कि वर्ष 2017 से 19 तक तकरीबन 85 फीसदी से अधिक नियमित शिक्षक अवकाशप्राप्त कर चुके होंगे और सारा भार नियोजित शिक्षको पर ही आ जायेगा। कई विद्यालयों में तो अभी से ये स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। अतः शिक्षक-छात्र अनुपात को ठीक करना, समय से वेतन भुगतान, समान काम, समान वेतन जैसे मुद्दे पर अगर सरकार गम्भीर नहीं हुई तो शिक्षा का हाल चौपट हो जायेगा।
अगर शिक्षक सन्तुष्ट नहीं होंगे तो शिक्षण गतिविधि प्रभावित होगी। शिक्षा एक मात्र ऐसा माध्यम है जिसको आधार बनाकर ही बिहार विकास कर सकता है, अतः बिहार में शिक्षा के सुदृढ़ीकरण के लिये आधारभूत संरचना को तंदुरुस्त करने के साथ-साथ शिक्षकों एवं छात्रों की समस्या पर भी गम्भीरता से विचार करना होगा।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों के आलोक में बिहार में अभी ढ़ेर सारे मुद्दे पर काम करना शेष है।
मेरा मानना है कि शिक्षा पर राजनीति नहीं की जानी चाहिये, तुष्टिकरण के चक्कर में बच्चों और शिक्षकों, शिक्षकों एवं अभिभावकों के बीच के रिश्ते में गिरावट आयी है। शिक्षकों के सम्मान में कमी आयी है जिसके लिये सरकार की नीतियां सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
---------------------
रवि रौशन कुमार
दरभंगा, बिहार।
इन तमाम गतिविधियों के चक्कर में शिक्षा व परीक्षा व्यवस्था दोनों प्रभावित हो रही है। सरकार और शिक्षक संघों को बीच का रास्ता निकालने का प्रयास यथाशीघ्र करना चाहिये। सरकार आज बहुमत में है इसलिये हठ कर रही है, संसाधन का रोना तो बस एक बहाना है। सरकार को इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाना चाहिये एवं शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के भविष्य का ख्याल किया जाना चाहिये। ध्यान देने वाली बात ये है कि वर्ष 2017 से 19 तक तकरीबन 85 फीसदी से अधिक नियमित शिक्षक अवकाशप्राप्त कर चुके होंगे और सारा भार नियोजित शिक्षको पर ही आ जायेगा। कई विद्यालयों में तो अभी से ये स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। अतः शिक्षक-छात्र अनुपात को ठीक करना, समय से वेतन भुगतान, समान काम, समान वेतन जैसे मुद्दे पर अगर सरकार गम्भीर नहीं हुई तो शिक्षा का हाल चौपट हो जायेगा।
अगर शिक्षक सन्तुष्ट नहीं होंगे तो शिक्षण गतिविधि प्रभावित होगी। शिक्षा एक मात्र ऐसा माध्यम है जिसको आधार बनाकर ही बिहार विकास कर सकता है, अतः बिहार में शिक्षा के सुदृढ़ीकरण के लिये आधारभूत संरचना को तंदुरुस्त करने के साथ-साथ शिक्षकों एवं छात्रों की समस्या पर भी गम्भीरता से विचार करना होगा।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 एवं उच्चतम न्यायालय के आदेशों के आलोक में बिहार में अभी ढ़ेर सारे मुद्दे पर काम करना शेष है।
मेरा मानना है कि शिक्षा पर राजनीति नहीं की जानी चाहिये, तुष्टिकरण के चक्कर में बच्चों और शिक्षकों, शिक्षकों एवं अभिभावकों के बीच के रिश्ते में गिरावट आयी है। शिक्षकों के सम्मान में कमी आयी है जिसके लिये सरकार की नीतियां सीधे तौर पर जिम्मेदार है।
---------------------
रवि रौशन कुमार
दरभंगा, बिहार।