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बिहार के स्थापना दिवस पर जो हुआ, क्या उसे महागठबंधन में टूट का संकेत माना जा सकता है?

बिहार के सत्ताधारी महागठबंधन (राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और कांग्रेस) में सब कुछ ठीक न होने के संकेत बार-बार मिल रहे हैं. अभी मार्च के दूसरे पखवाड़े में ही खबर आई थी कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तख्ता पलट की योजना बनाई
थी. बस उसमें शर्त यह थी कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को बहुमत मिल जाए. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और योजना रद्द हो गई. लेकिन अब खबर मिली है कि बिहार स्थापना दिवस के मौके पर राज्य सरकार की ओर से आयोजित कार्यक्रम में लालू और उनके पुत्र तथा प्रदेश के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी ने शामिल होना भी जरूरी नहीं समझा.

खबर के मुताबिक, लालू और तेजस्वी इससे नाराज थे कि तीन दिन तक चलने वाले स्थापना दिवस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह के लिए जो निमंत्रण पत्र छपे, उनमें उपमुख्यमंत्री का नाम नहीं था. यह कार्यक्रम गुरुवार को हुआ था. इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थे. जबकि राजद का प्रतिनिधित्व प्रदेश सरकार में मंत्री शिवचंदर राम और रामविचार राय कर रहे थे. यह आयोजन शिक्षा विभाग की ओर से किया गया था, जिसका जिम्मा कांग्रेस के नेता अशोक चौधरी देख रहे हैं. इस मसले पर हालांकि, लालू और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन राजद नेताओं की बयानबाजी लगातार जारी है.

राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, ‘निमंत्रण पत्र पर उपमुख्यमंत्री का नाम न होना, बड़ी चूक है. इसकी जांच की जानी चाहिए. जो लोग इस गलती के जिम्मेदार हों, उन पर कार्रवाई की जानी चाहिए.’ इसी तरह पार्टी विधायक भाई बीरेंद्र सिंह ने कहा, ‘महागठबंधन में राजद सबसे बड़ी साझेदार है. लिहाजा, किसी भी आधिकारिक समारोह में उसका और उसके नेताओं का सम्मान कायम रखा जाना चाहिए.’ राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री और विपक्षी भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा, ‘लोकनिर्माण विभाग के विज्ञापनों में मुख्यमंत्री का नाम गायब रहता है. इस विभाग को उपमुख्यमंत्री तेजस्वी संभाल रहे हैं. ऐसे ही, मुख्यमंत्री जिन कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि होते हैं, वहां राजद नेताओं को जगह नहीं मिलती. इससे साफ है कि महागठबंधन में सब ठीक नहीं है.

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