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Result Scam : बुरे काम के 40 साल, अच्छा तीन महीने भी नहीं चला

 पटना [सुनील राज]। 1977 से बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के खिलाफ शिकायतें आम हैं। 'दाग' चालीस साल से लग रहे, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर शुरू हुआ एक शानदार प्रयोग असफल रहा। पांच साल पहले नीतीश कुमार ने टॉपरों के लिए बाल परिषद बनाने का निर्देश दिया था। तीन महीने तक यह व्यवस्था चली, फिर ध्वस्त हो गई।


मुख्यमंत्री ने टॉपरों के लिए बनवाया था बाल परिषद
पांच साल पहले बिहार बोर्ड के मैट्रिक और इंटर के रिजल्ट जारी होने के बाद परीक्षा के टॉपरों से मुलाकात करने खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आए। मुख्यमंत्री ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष राजमणि प्रसाद सिंह से कहा था कि राज्य के कोने-कोने से बच्चे टॉप होकर बिहार का नाम रोशन करते हैं।
लेकिन, क्या कभी बोर्ड ने यह जानने का प्रयास किया कि छात्र-छात्राएं कैसी विपरीत परिस्थितियों में यहां तक आ पाते हैं। अगर ऐसे छात्रों को मदद दी जाए तो वे आगे और भी बेहतर कर सकते हैं। टॉप करने वाले बच्चों के अनुभव और पढ़ाई की रणनीति भविष्य में मैट्रिक-इंटर के परीक्षार्थियों के लिए मददगार हो सकती है। मुख्यमंत्री ने बोर्ड अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि 2011 के जो टॉपर हैं उन्हें जोड़कर बाल परिषद का गठन किया जाए।
परिषद बना, तीन महीने चला
मुख्यमंत्री के निर्देश के तत्काल बाद आनन-फानन में बोर्ड ने बाल परिषद का गठन कर दिया। बच्चों से संवाद कायम कर उनकी कठिनाई जानने के लिए भी एक कमेटी बनाई गई। इसकी अध्यक्षता शिक्षाविद् ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी को सौंपी गई। चार सदस्यीय इस कमेटी में कई शिक्षाविद् और पत्रकार शामिल किए गए।
बच्चों की बाल परिषद और कमेटी का अधिकतम कार्यकाल तीन से चार महीने का रहा। शिक्षा विभाग ने अपनी मासिक पत्रिका 'विद्या' में बाल परिषद की सराहना भी की। लेकिन यह सिलसिला तीन महीने में ही ध्वस्त हो गया।
फिर कोई नहीं लेता टॉपरों की सुध

तीन महीने के बाद बोर्ड ने कभी टॉपर बच्चों की सुध नहीं ली। अनदेखी से आहत टॉपरों की उपस्थिति भी बाल परिषद में कम होती गई। यानी जिस बाल परिषद का सपना मुख्यमंत्री ने देखा था, वह तीन महीने ठीक से चल पाया।
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