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कदाचार से मुक्ति बेहतर भविष्य का आगाज किंतु..

 औरंगाबाद । कदाचारमुक्त परीक्षा हो रही है। उच्च न्यायालय ने जब संज्ञान लिया तो यह पहल प्रारंभ हुई है। तब जब नकल को लेकर बिहार की बदनामी पूरे देश-विदेश में हो गई। यह अच्छी बात है कि बिना नकल की परीक्षा हो, किंतु इसके साथ कई सवाल भी उठने स्वाभाविक हैं।
हर कोई कह रहा है कि देर से ही सही, किंतु आगाज बेहतर भविष्य के लिए हुआ है। सबको 1996 की वे परीक्षाएं याद आ रही हैं जब उच्च न्यायालय का परीक्षा पर नियंत्रण था और नकल मुक्त परीक्षा बिना सीसी कैमरे के ही संपन्न हो गई थी। अभिभावकों, शिक्षकों और छात्रों से जब बात की तो कई मामले सामने आए। स्कूलों में पढ़ाई का माहौल नहीं है। कहीं शिक्षक नहीं हैं तो कहीं नामाकित बच्चे पढ़ने नहीं जाते। कहीं पुस्तकालय बेकार पड़ा हुआ है तो कहीं विज्ञान के लैब हैं ही नहीं। अभिभावक बच्चों को खिचड़ी खिलाने, पोशाक दिलाने, छात्रवृति और साइकिल के पैसे दिलाने के लिए स्कूल पहुंचकर बवाल मचाते हैं। कभी यह नहीं हुआ कि वे स्कूल पहुंचकर शिक्षक से पूछें, जानें कि वे क्यों नहीं पढ़ाते? बच्चों से नहीं पूछा जाता है कि स्कूल क्यों नहीं जाते? पूरे प्रकरण में ठोस बात यह कि जब तक अभिभावक नहीं जगेंगे बदलाव नहीं होने वाला। न शिक्षक कुछ कर सकते हैं, न छात्र-छात्रा? करना अभिभावकों को ही होगा, अन्यथा सरकार के भरोसे बैठ जाने से कोई क्रांति नहीं होने वाली है।
सरकारी स्कूलों के बच्चों का भविष्य संकट में
फोटो फाइल - 26 एयूआर 14
दाउदनगर (औरंगाबाद) : कदाचारमुक्त परीक्षा उन गरीबों के भविष्य के लिए संकट है, जो सिर्फ सरकारी स्कूलों के भरोसे पढ़े हैं। कोटा और कोचिंग पढ़ने वालों को कोई परेशानी नहीं है, क्योंकि उन्होंने बेहतर संस्थान से शिक्षा ग्रहण किया है। बावजूद इसके कि वे नामांकित सरकारी स्कूलों में हैं। परीक्षा देने आए ओबरा के अमृतेश कुमार, रजवारी के रंजीत यादव, शिवगंज के अंशुमान कुमार और बडे़म के सुनील कुमार ऐसे ही छात्र हैं जिन्होंने सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की है। कहा कि अब स्कूल होटल बन गए हैं। एमडीएम खिलाकर दिमाग और शरीर मोटा कर दिया है। बच्चा कमाने सूरत चला जाता है। स्कूल में लैब नहीं हैं। अच्छे और विषयवार शिक्षक नहीं हैं। मास्टर हो या छात्र सिगरेट खैनी स्कूल में खाता पीता है, तब किसी को अनुशासन नहीं दिखता। परीक्षा केंद्र पर अनुशासन सिखाया जाता है। सिलेबस पूरा नहीं होता, कैसे लिखेंगे? सही है कदाचार रोके सरकार, किंतु व्यवस्था करे अन्यथा गरीब पढ़ नहीं सकेगा।
15 साल से शिक्षक नहीं : कृष्ण
फोटो फाइल - 26 एयूआर 15
दाउदनगर (औरंगाबाद) : राष्ट्रीय इंटर स्कूल के प्रधनाध्यापक कृष्ण कुमार सिंह बताते हैं कि 15 साल से संस्कृत के शिक्षक स्कूल में नहीं हैं। कैसे पढ़ाई होगी। कई बार विभाग से मागा गया है, कोई फर्क नहीं पड़ा। यह आवश्यक विषय है, इसमें फेल तो फेल। अगर नकल रोकना है तो वर्तमान व्यवस्था को निरंतर बनाए रखना होगा। पहले शिक्षकों पर दबाव था अब नहीं है।
शिक्षकों को दोषी बताना गलत : श्रवण
फोटो फाइल - 26 एयूआर 16
दाउदनगर (औरंगाबाद) : अशोक इंटर स्कूल के प्रधानाध्यापक श्रवण कुमार संत ने बताया कि यह बेहतर भविष्य का आगाज है। कुछ साल में स्थिति सुधर जाएगी। शिक्षकों को बिना मतलब दोषी ठहराया जाता है। जहा जितने विषय के शिक्षक हैं वहा पढ़ाई उतनी होती है। शिक्षक नहीं रहेंगे, बच्चे नहीं रहेंगे तो पढ़ाई क्या और किसको होगी। यहा तो रजिस्ट्रेशन कराने का भी समय छात्र-छात्राओं को नहीं मिलता है।
व्यवस्था बदलाव के लिए आवश्यक सुधार
दाउदनगर (औरंगाबाद) : व्यवस्था में बदलाव और कदाचारमुक्त परीक्षा की निरंतरता के लिए कुछ आवश्यक उपाय करने होंगे-
- स्कूलों में शिक्षकों के तमाम रिक्त पद भरने होंगे।
- कोचिंग की व्यवस्था खत्म करनी होगी या उसके लिए सुबह 9 बजे तक और शाम को 5 बजे के बाद का समय तय करना होगा।
- निजी और अन्य शहर में पढ़ने वालों का नामाकन हर हाल में सरकारी स्कूलों में नहीं होने चाहिए।
- अभिभावकों को इसके लिए जागरूक करना होगा कि वे स्कूलों पर पढ़ाई के लिए दबाव बनाएं।
- अपने छात्र-छात्राओं को स्कूल भेजने के प्रति अभिभावक सजग हों।

- सरकार के भरोसे बैठना छोड़ आंदोलन करना होगा, अन्यथा गरीब बच्चे पढ़ नहीं सकेंगे।


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