गुठनी प्रखंड के चिताखाल उच्च विद्यालय में मौत के साए में शिक्षक पढ़ाने को
मजबूर हैं। विद्यालय के बनाए गए पुराने भवन को विभाग ने परित्यक्त घोषित
कर दिया है।
जिससे शिक्षक व छात्रों के बैठने के लिए पेड़ ही एक मात्र सहारा बना हुआ है। जिसके चलते वर्ष 2018-19 में नामांकन कराने वाले बच्चों की संख्या में काफी कमी आई है। विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि विभाग के द्वारा 2014 में ही उच्च विद्यालय के भवन को परित्यक्त घोषित कर दिया गया था। लेकिन इसका पत्र 2017 में विद्यालय को प्राप्त हुआ।
भवन के विषय में विभाग के द्वारा पत्र मिलते ही सभी शिक्षक व बच्चों में डर का माहौल बन गया। माहौल इतना बदला कि पहले जहां एक वर्ग में 450 छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए आते थे। अब नामांकन कराने से भी कतरा रहे हैं। इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। उसी समय विद्यालय में 5 कमरे का एक भवन बनाया गया था। तब से उसी भवन में बच्चों की पढ़ाई की जाती है। कई वर्षों से बारिश होते ही इस भवन से पानी टपकने लगता है जिसकी जानकारी विद्यालय के एचएम के द्वारा जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर प्रमंडल शिक्षा पदाधिकारी को भी दिया जा चुका है। वर्तमान में वर्ग 10 में 452 तथा वर्ग 9 में मात्र 45 छात्र नामांकित हैं।
बदहाल भवन में पढ़ते बच्चे।
पांच किलोमीटर में नहीं है कोई हाईस्कूल
इस विद्यालय के आस-पास 5 किलोमीटर में कोई हाई स्कूल नही है,जिसमें छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर सके। भवन नही रहने के चलते आस-पास के 10 गांव के छात्रों को दूर मैरवा तथा बेलौर आदि गांव में पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है। इस विद्यालय से पढ़कर सैकड़ों छात्र-छात्रा कई ऊंचे पदों पर आसीन हैं।
भवन निर्माण विभाग ने की जांच, भवन जर्जर घोषित
भवन की स्थिति खराब होने के बाद छपरा से आई भवन निर्माण विभाग की टीम ने इस पूरे भवन को जर्जर घोषित करते हुए इसमें पठन-पाठन नही करने की सलाह वर्ष 2014 में ही दे दिया था। हद तो तब हो गई जब तीन साल बाद वर्ष 2017 में भवन परित्यक्त घोषित का पत्र प्रमंडल कार्यालय छपरा से चिताखाल विद्यालय में पहुंचा। तीन साल बाद पत्र मिलते ही विद्यालय के शिक्षक व छात्रों में खौफ का खाका खिंच गया। सभी सकते में आ गए। इस गंभीर परिस्थिती में एचएम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र लिखकर अगले सत्र में बच्चों के नामांकन नही लेने की मजबूरी बताई। लेकिन विभाग ने बिना भवन बनाए ही नामांकन लेने का आदेश जारी कर दिया। अब डर के साये में शिक्षक नामांकन लेने से कतरा रहे हैं। वहीं छात्र भी नामांकन कराने नही आ रहे हैं।
जिससे शिक्षक व छात्रों के बैठने के लिए पेड़ ही एक मात्र सहारा बना हुआ है। जिसके चलते वर्ष 2018-19 में नामांकन कराने वाले बच्चों की संख्या में काफी कमी आई है। विद्यालय के शिक्षकों ने बताया कि विभाग के द्वारा 2014 में ही उच्च विद्यालय के भवन को परित्यक्त घोषित कर दिया गया था। लेकिन इसका पत्र 2017 में विद्यालय को प्राप्त हुआ।
भवन के विषय में विभाग के द्वारा पत्र मिलते ही सभी शिक्षक व बच्चों में डर का माहौल बन गया। माहौल इतना बदला कि पहले जहां एक वर्ग में 450 छात्र-छात्राएं पढ़ने के लिए आते थे। अब नामांकन कराने से भी कतरा रहे हैं। इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। उसी समय विद्यालय में 5 कमरे का एक भवन बनाया गया था। तब से उसी भवन में बच्चों की पढ़ाई की जाती है। कई वर्षों से बारिश होते ही इस भवन से पानी टपकने लगता है जिसकी जानकारी विद्यालय के एचएम के द्वारा जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर प्रमंडल शिक्षा पदाधिकारी को भी दिया जा चुका है। वर्तमान में वर्ग 10 में 452 तथा वर्ग 9 में मात्र 45 छात्र नामांकित हैं।
बदहाल भवन में पढ़ते बच्चे।
पांच किलोमीटर में नहीं है कोई हाईस्कूल
इस विद्यालय के आस-पास 5 किलोमीटर में कोई हाई स्कूल नही है,जिसमें छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर सके। भवन नही रहने के चलते आस-पास के 10 गांव के छात्रों को दूर मैरवा तथा बेलौर आदि गांव में पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है। इस विद्यालय से पढ़कर सैकड़ों छात्र-छात्रा कई ऊंचे पदों पर आसीन हैं।
भवन निर्माण विभाग ने की जांच, भवन जर्जर घोषित
भवन की स्थिति खराब होने के बाद छपरा से आई भवन निर्माण विभाग की टीम ने इस पूरे भवन को जर्जर घोषित करते हुए इसमें पठन-पाठन नही करने की सलाह वर्ष 2014 में ही दे दिया था। हद तो तब हो गई जब तीन साल बाद वर्ष 2017 में भवन परित्यक्त घोषित का पत्र प्रमंडल कार्यालय छपरा से चिताखाल विद्यालय में पहुंचा। तीन साल बाद पत्र मिलते ही विद्यालय के शिक्षक व छात्रों में खौफ का खाका खिंच गया। सभी सकते में आ गए। इस गंभीर परिस्थिती में एचएम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को पत्र लिखकर अगले सत्र में बच्चों के नामांकन नही लेने की मजबूरी बताई। लेकिन विभाग ने बिना भवन बनाए ही नामांकन लेने का आदेश जारी कर दिया। अब डर के साये में शिक्षक नामांकन लेने से कतरा रहे हैं। वहीं छात्र भी नामांकन कराने नही आ रहे हैं।