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कभी 'ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट' कहलाती थी पटना यूनिवर्सिटी

पटना विश्वविद्यालय (पीयू) ने अपनी स्थापना के सौ साल पूरे कर लिए हैं. इसका स्वर्णिम इतिहास रहा है. राजनीति के अलावा सामाजिक कार्यों व अन्य क्षेत्रों में कई दिग्गज देने वाला यह देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है.


अपने स्वर्णिम अतीत से लेकर कई उतार-चढ़ाव देख चुका यह विश्वविद्यालय इन दिनों अपना शताब्दी समारोह मना रहा है. यहां 14 अक्टूबर को होने जा रहे समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होंगे और अपना उद्गार प्रकट करेंगे.

पटना विश्वविद्यालय के इतिहास पर गौर करें तो, इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 में हुई थी और आज भी यह विश्वविद्यालय बिहार के सर्वाधिक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है. स्थापना से पहले इसके अंतर्गत आनेवाले आने वाले कॉलेज कलकता विश्वविद्यालय के अंग थे.

गंगा नदी के किनारे स्थित है पीयू

देश में ऐसे कम ही विश्वविद्यालय हैं, जो नदी किनारे हैं. उनमें से एक पीयू पटना में गंगा के किनारे अशोक राजपथ में अवस्थित है. विश्वविद्यालय का मुख्य भवन दरभंगा हाउस के नाम से जाना जाता है, जिसका निर्माण दरभंगा के महाराज ने करवाया था.

इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले प्रमुख महाविद्यालयों में साइंस कॉलेज, पटना कॉलेज, वाणिज्य महाविद्यालय, बी़ एऩ कॉलेज, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लॉ कालेज, मगध महिला कॉलेज सहित 10 महाविद्यालय हैं.

पटना विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद तीन कॉलेज, पांच एडेड कॉलेज और वोकेशनल कॉलेज इससे जुड़े. इसकी स्थापना पटना विश्वविद्यालय एक्ट, 1917 के तहत हुई थी और इसका कार्यक्षेत्र नेपाल और उड़ीसा (ओडिशा) तक था. कहा जाता है कि स्थापना के 25 वर्ष में यह विश्वविद्यालय 'ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट' कहलाने लगा.

पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह कहते हैं, "यह बेहद गर्व की बात है कि पटना विश्वविद्यालय ने अपने सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं. यह विश्वविद्यालय बिहार के गौरवशाली इतिहास को भी दर्शाता है."

जॉर्ज ज़े जिनिंग्स थे प्रथम कुलपति

पटना विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति जॉर्ज ज़े जिनिंग्स थे. वह उन दिनों बिहार-बंगाल और उड़ीसा के प्रशासनिक अधिकारी भी थे. हालांकि कहा जाता है कि उस समय यह पद अवैतनिक था. यहां के कुलपतियों को पटना विश्वविद्यालय एक्ट, 1951 लागू होने के बाद वेतन मिलने लगा. सवैतनिक कुलपति के रूप में पहली नियुक्ति क़े एऩ बहल की हुई थी. इस विश्वविद्यालय का प्रशासन अब तक 51 कुलपति संभाल चुके हैं.

पीयू को इसकी शैक्षिक पद्धति के गौरवशाली इतिहास के लिए जाना जाता है. इस समय हालांकि इसकी हालत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती. राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह यहां भी प्राध्यापकों की बेहद कमी है. इसका अतीत भले ही सुनहरा रहा हो, लेकिन वर्तमान स्थिति को संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता.

इनका रहा है पटना यूनिवर्सिटी से नाता

इस विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों में लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, फिल्म अभिनेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा, केंद्रीय मंत्री ज़े पी़ नड्डा, पूर्व रेलमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी, सामाजिक कार्यकर्ता व सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक समेत कई विशिष्ठ लोग शामिल हैं. खास बात यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पटना कॉलेज के प्राध्यापक भी रह चुके हैं.

ऐसा नहीं कि यहां पढ़े लोग केवल राजनीति के क्षेत्र में ही सफल हुए हैं. यहां के पूर्व छात्रों में कई नौकरशाह भी शामिल हैं, जिन्होंने देश और दुनिया में अपने कार्यो के बल पर इस विश्वविद्यालय का नाम रौशन किया है. इनमें राजीव गौवा, बिहार के मुख्य सचिव अंजनी कुमार सिंह, पूर्व विदेश सचिव मुचकुंद दूबे, पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल भी शामिल हैं.

पीयू से 52 साल तक छात्र और शिक्षक के रूप में जुड़े रहे पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी कहते हैं, "शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री का स्वागत है, लेकिन अब जरूरत पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की है."

उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय का स्वर्णिम इतिहास रहा है, मगर धन की कमी के कारण इसके संचालन में अब परेशानियां हो रही हैं. अगर केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिल जाए, तो काफी धन भी आएगा और इसकी जरूरतें पूरी हो जाएंगी.

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