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डेढ़ दर्जन कॉलेज शिक्षकों की दो-दो ज्वाइनिंग डेट, यूनिवर्सिटी ने भी फर्जीवाड़े को सही माना

गया.नवादा श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज के होम साइंस विषय में लेक्चरर की सूची में अंशु सिंह का नाम है। आठ साल पहले राज्य सरकार को जब पहली दफा शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मियों का फॉर्मेट भेजा गया था, उसमें अंशु सिंह की नियुक्ति तिथि 21 मई, 2007 दर्ज थी। लेकिन जब शिक्षकों की सेवा संपुष्टि की प्रक्रिया शुरू हुई, तब अंशु की नियुक्ति तिथि 40 दिन पीछे 11 अप्रैल 2007 दर्शा कर मगध यूनिवर्सिटी भेज दिया गया। ताज्जुब यह कि चयन समिति ने शिक्षकों की नियुक्ति तिथि का मिलान करना भी उचित नहीं समझा।

30 मार्च को मगध यूनिवर्सिटी में सिंडिकेट की बैठक में भी सेवा की संपुष्टि कर दी गई। करीब डेढ़ दर्जन शिक्षक ऐसे हैं, जिनकी एक ही कॉलेज में दो-दो नियुक्ति तिथियां दिखाई गई हैं। खास बात कि यह यूनिवर्सिटी और राज्य सरकार के पास भी यह जानकारी उपलब्ध है।

दरअसल, राज्य सरकार द्वारा वित्त संपोषण की घोषणा के बाद ऐसी नियुक्तियां की गई थीं। तब राज्य सरकार और यूनिवर्सिटी को भेजे गए फॉरमेट में 19 अप्रैल 2007 के बाद की नियुक्ति तिथि दर्शाकर भेजा गया था।
इधर, सेवा संपुष्टि के लिए कॉलेज से युनिवर्सिटी की चयन समिति के पास जो नाम भेजा गया, उसमें नियुक्ति तिथि 19 अप्रैल 2007 के पहले की दर्शा दी गई है।
5 करोड़ से ज्यादा का घोटाला
8 साल पहले बिहार सरकार ने वित्तरहित कॉलेजों को निर्धारित शर्तों पर वित्त संपोषित करने की घोषणा की थी। कॉलेजों से शिक्षक और शिक्षकेतर कर्मियों की सूची मांगी गई थी। 19 अप्रैल 2007 का कट ऑफ डेट निर्धारित किया गया। सरकार ने तय किया कि 19 अप्रैल के पहले बहाल कर्मियों को सरकारी अनुदान दिया जाएगा। कॉलेज प्रबंधन बाद की तारीख में नियुक्त कर्मियों को सरकारी अनुदान की राशि प्रदान करता रहा। 5 करोड़ से ज्यादा की वित्तीय अनियमितता बरती गई। बिहार सरकार के गजट (पटना 971/दिनांक 27 अगस्त 2015) के मुताबिक, 19 अप्रैल 2007 के पहले से कार्यरत कर्मियों की सेवा संपुष्टि की जानी थी। 18 कर्मियों की नियुक्ति तिथि में फेरबदल कर बाद में बहाल कर्मियों को कट ऑफ डेट से पहले कर दी गई।
शासी निकाय का कोरम पूरा नहीं
शासी निकाय का कोरम नहीं पूरा किया गया। न ही यूनिवर्सिटी प्रतिनिधि, न ही प्रशासकीय प्रतिनिधि और जनप्रतिनिधि उपस्थित हुए। मदन मोहन शर्मा आवेदक हैं, जिनकी अध्यक्षता में शासी निकाय की बैठक हुई। हालांकि राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री, कुलपति को पत्र भेज कॉलेज को वित्तीय अनियमितता से उबारने और दोषियों पर कार्रवाई का आग्रह किया गया है।
कार्रवाई का आग्रह करेंगे: विधान पार्षद
विधान पार्षद और शासी निकाय के सदस्य नीरज कुमार ने कहा कि शासी निकाय की प्रोसिडिंग में उन्होंने वित्त संपोषित नीति के मापदंडों और बिहार गजट के प्रावधानों के मुताबिक सेवा संपुष्टि सुनिश्चित किए जाने का जिक्र किया है। इससे अलग फैसला लिया गया है, तो इसके दोषी नहीं बख्शे जाएंगे। कार्रवाई का आग्रह करेंगे।
जांच कमिटी का गठन किया गया है: कुलपति

मविवि के कुलपति प्रो कमर अहसन ने बताया कि संबद्धताप्राप्त कॉलेजों में शासी निकाय सर्वोच्च बॉडी है। सूची व अनुशंसा के आधार पर विवि की सिंडिकेट ने सेवा पुष्टि की है। जांच कमिटी गठित की गई है।
निकाय के अध्यक्ष ने कहा- मुझे जानकारी नहीं
शासी निकाय के अध्यक्ष और यूनिवर्सिटी प्रतिनिधि डॉ भारत भूषण ने कहा कि शासी निकाय की बैठक की उन्हें जानकारी नहीं है। न ही उन्हें कोई सूचना दी गई है। न ही उनके समक्ष कॉलेज की पूरी प्रोसिंडिंग उपलब्ध कराई जाती है।
तकनीकी तौर पर सही है, कोई विवाद नहीं : सचिव

कॉलेज के शासी निकाय के सचिव प्रो केबी शर्मा ने बताया कि ऐसे 8-10 शिक्षक हैं। इनकी नियुक्ति शासी निकाय के तत्कालीन सचिव ने सशर्त किया था। बाद में सेलेक्शन कमिटी के एक्सपर्ट की अनुशंसा के आधार पर इन्हें नियुक्ति पत्र दिया गया। इसलिए नियुक्ति की दो तिथियां दिख रही हैं। इनकी सर्विस को सचिव के पहले पत्र के आधार पर कन्टिन्यूएशन के तहत 19 अप्रैल 2007 के पहले का ही माना गया है। तकनीकी तौर पर सही है, विवाद नहीं है।

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