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वित्तीय अनियमितता के मामले में दर्जनों पंचायत सचिव हैं आरोपित

सुपौल। ग्राम स्वराज के सपनों को साकार बनाने के लिए सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को लागू किया। ताकि गांव के विकास का खाका जमीनी स्तर से खींचा जा सके। इसमें पंचायत सचिव की भूमिका न सिर्फ अहम होती है, बल्कि वे सरकारी महकमे का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
परंतु विडंबना देखिए कि ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात यह सरकारी मुलाजिम ही आज सवालों के घेरे में है। आज जिले के अधिकांश सचिव वित्तीय अनियमितता में फंसे हुए हैं। एक तो जिले में पंचायत की संख्या के मुताबिक सचिव उपलब्ध नहीं है और जो है भी तो उनमें से आधे से अधिक सचिवों पर या तो वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं या फिर उनके ऊपर किसी न किसी थाने में मामला दर्ज है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अनियमितता के आरोप लगने के बाद भी इन्हीं सचिवों से विकास के काम लिए जाते हैं। प्राथमिकी दर्ज रहने के बावजूद ये तमाम सरकारी कार्यों का निपटारा करते हैं और इन्हें न तो कानून का भय है और ना ही विधि व्यवस्था की कमान संभाले अधिकारी ही इस मामले में गंभीर दिखाई देते हैं। फिलहाल 181 पंचायत वाले इस जिले में 92 सचिव तैनात हैं। जिसमें करीब 47 पंचायत सचिवों के विरुद्ध वित्तीय अनियमितता से लेकर अन्य विकास कार्यों में बरती गई अनियमितता का आरोप है। करीब आधे दर्जन से अधिक पर थाने में मुकदमा दर्ज है तो कई के वेतन पर रोक लगी हुई है। अनियमितता के आरोप में फिलहाल दो पंचायत सचिव पर निलंबन की भी कार्यवाही चल रही है। बावजूद ऐसे ही आरोपित सचिवों से पंचायत के विकास कार्य के साथ-साथ अन्य कार्य लिए जा रहे हैं। सोलर लाइट सहित शिक्षक नियोजन के कई मामले पंचायतों में सोलर लाइट लगाने की बात हो या फिर शिक्षक नियोजन जहां भी इन्हें मौका मिला दामन पर दाग लगाने से परहेज नहीं किया। जिले में करीब 06 पंचायत सचिवों के विरुद्ध सोलर लाइट लगाने में घोर अनियमितता का आरोप है। इसके अलावा शिक्षक नियोजन में भी उन्होंने मार्गदर्शिका का पालन नहीं किया। हाल के दिनों में सरकार के विभिन्न योजनाओं में ली गई अग्रिम राशि का जब हिसाब-किताब जिला स्तर से लिया जाने लगा तो करीब दो दर्जन के लगभग पंचायत सचिवों पर वित्तीय अनियमितता की बात सामने आई। ऐसे सचिव अग्रिम राशि उठाव के बावजूद भी विकास कार्यों को अंतिम रूप नहीं दे पाए थे। जिसके एवज में जिला स्तर से करीब डेढ़ दर्जन सचिवों का वेतन रोका गया तो करीब आधे दर्जन पर कार्यवाही की जा चुकी है।

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हाल के दिनों में इन पर हुई कार्रवाई अग्रिम राशि समायोजन मामले में इसी माह जिले के चार पंचायत सचिवों पर जिलाधिकारी ने मुकदमा दर्ज करने का आदेश पारित किया है। इन सचिवों पर आरोप है कि सरकार के विभिन्न योजनाओं में अग्रिम राशि लेने के बाद भी यह काम को अंतिम रूप नहीं दे पाए। बार-बार कहने के बाद भी वे समायोजन के कार्य में रुचि नहीं लिए परिणाम स्वरूप जिला प्रशासन ने संबंधित प्रखंड विकास पदाधिकारी को इनके विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने का आदेश पारित किया है। मजबूरी या फिर बाध्यता ऐसा नहीं कि जो पंचायत सचिव किसी वित्तीय अनियमितता में आरोपित किए गए हैं उनसे अगला काम नहीं लिया जाता। इसे जिला प्रशासन की मजबूरी कहे या बाध्यता। आरोपित होने के बाद भी ऐसे ही पंचायत सचिवों से आगे का कार्य लिया जाता है। परिणाम होता है कि जब कभी भी उनके कामों का हिसाब लिया जाता है तो फिर अनियमितता की बात सामने आती है।

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