सहार : शिक्षा में सुधार का ढिंढ़ोरा पीटनेवाली सरकार अब तक
विद्यालयों में छात्रों को पुस्तकें भी उपलब्ध नहीं करा पायी है. इससे
बच्चों की पढ़ाई के प्रति सरकार की संवेदनशीलता का सहज ही अंदाजा लगाया जा
सकता है.
उत्क्रमित मध्य विद्यालय, खैरा, सहार में संसाधनों का काफी अभाव है.
पुस्तकों के अभाव में छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है. जबकि इस
सत्र के शुरू हुए तीन माह हो चुके हैं. छात्रों की हालात उस सैनिक की तरह
है, जिससे बिना आग्नेयास्त्र की लड़ाई के मैदान में भेज दिया जाये. सरकार
तथा न्यायालय शिक्षा में विकास एवं सभी के लिए अनिवार्य शिक्षा के नियम का
विद्यालय में हवा निकल रहा है.
वहीं विद्यालय में बेंच व डेस्क की कमी है. हालांकि विद्यालय का भवन
सही स्थिति में है. पर शिक्षकों की कर्तव्यहीनता छात्रों की पढ़ाई पर भारी
पड़ रही है. शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के बदले अन्य कार्यों में मशगूल रहते
हैं.
इतना ही नहीं, ग्रामीणों की मानें तो दो शिक्षक विद्यालय आते ही नहीं
है. पर वेतन समय पर उठाते हैं. विद्यालय में कमरों की कमी नहीं है, पर
पढ़ाई सीमित कमरों में ही होती है. विद्यालय में छात्रों की सुविधा के लिए
बेंच व डेस्क की काफी कमी है. इस कारण छात्रों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़
रहा है.
सरकार द्वारा विगत कई वर्षों से विद्यालयों में संसाधन की पूर्ति के
लिए उपाय कर रही है, पर प्रशासनिक लापरवाही और सरकार की उदासीनता से
विद्यालय आज भी संसाधन विहीन है. वहीं विद्यालय में साफ-सफाई की काफी कमी
है. विद्यालय में दो शौचालय है, पर गंदगी को लेकर शौचालय का उपयोग न तो
छात्र करते हैं और न ही शिक्षक करते हैं. इससे सरकार की स्वच्छ भारत मिशन
की विद्यालय में धज्जी उड़ रही है. छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन में भी कई
तरह की गड़बड़ियां की जाती हैं. शिक्षा से छल अभियान के तहत प्रभात खबर की
टीम ने जब विद्यालय पहुंच कर तथ्यों की पड़ताल की, तो कई सच्चाई उभर कर
सामने आयी.
आठ कमरों में चलती हैं कक्षाएं : विद्यालय में आठ कमरे हैं. वहीं
प्रथम कक्षा से आठ कक्षा तक की पढ़ाई होती है. पर प्रभात खबर की टीम जब
विद्यालय पहुंची, तो कई वर्ग में शिक्षक नहीं थे. इस कारण छात्रों की पढ़ाई
नहीं हो रही थी.
छात्र इधर-उधर टहलते नजर आये. हालांकि कुछ क्लास रूम में शिक्षक
उपस्थित थे और छात्रों को पढ़ा रहे थे. विद्यालय की इस व्यवस्था से छात्रों
की पढ़ाई पूरी तरह चरमरायी हुई है. इसे लेकर ग्रामीणों में काफी आक्रोश
है. वहीं छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है.
विद्यालय में नहीं हैं चापाकल : विद्यालय में बच्चों के लिए पीने के
पानी की व्यवस्था नहीं है. यह अव्यवस्था की चरम सीमा है. चापाकल नहीं होने
के कारण छोटे-छोटे बच्चे मुख्य सड़क पर जाकर चापाकल से पानी पीते हैं. इससे
दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. पर विभाग व जन प्रतिनिधि या प्रखंड
प्रशासन भी विद्यालय में चापाकल की व्यवस्था नहीं कर रहा है.
विद्यालय में शौचालय की है दयनीय स्थिति
विद्यालय में दो शौचालयों का निर्माण कराया गया है. पर साफ-सफाई के
अभाव में शौचालय गंदगी के पर्याय बन गये हैं. इस कारण शौचालय का उपयोग न तो
छात्र करते हैं और नहीं शिक्षक करते हैं. सफाई के अभाव में शौचालय की
उपयोगिता पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है. वहीं विद्यालय प्रबंधन की
लापरवाही के कारण केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन पूरी तरह विफल है.
शिक्षा के मंदिर में भी जब गंदगी होगी तो अन्य जगहों की बात कौन कहे.
10 शिक्षकों का है पदस्थापन
विद्यालय में छात्र व शिक्षक का अनुपात सरकारी आंकड़ों के अनुसार है.
सरकार के 40 छात्र पर एक शिक्षक के मानदंड को विद्यालय में पूरा किया गया
है. पर इसमें से दो शिक्षक विद्यालय आते ही नहीं हैं. इस कारण छात्रों की
पढ़ाई पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. शिक्षकों की अनुपस्थिति को लेकर विभाग
के उच्च पदाधिकारियों द्वारा भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है. इससे
विद्यालय में ऊहा-पोह की स्थिति है. एक शिक्षिका बच्चों को पढ़ाने के बदले
मोबाइल पर चैटिंग करने में मशगूल थीं. वहीं एक शिक्षक छुट्टी पर थे.
जबकि एक शिक्षक की प्रतिनियुक्ति सीआरसीसी में की गयी है. दो शिक्षक
विद्यालय नहीं आते हैं पर प्रतिमाह वेतन उठाते हैं. इस हालत में विद्यालय
की व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो जाता है.
चार सौ छात्रों का है नामांकन
विद्यालय में चार सौ छात्रों का नामांकन है. पर ऑन द स्पॉट पड़ताल
करने पर विद्यालय में महज 210 छात्र ही उपस्थित थे. बाकी के छात्र विद्यालय
नहीं आये थे. जबकि सरकार ने शिक्षकों को आदेश है कि सभी छात्रों को हर हाल
में विद्यालय में लाया जाये. पर शिक्षकों के कर्तव्य परायणता का यह
जीता-जागता उदाहरण है कि विद्यालय में महज 50 प्रतिशत छात्र ही उपस्थित थे.
जमीन पर बैठ कर करते हैं पढ़ाई : मध्य विद्यालय केवल कक्षा आठ में
बेंच की व्यवस्था है. जबकि अन्य सात कक्षाओं में बेंच व डेस्क नहीं है.
इससे छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है. सरकार के लाख प्रचार और
प्रयास के बाद विद्यालयों में संसाधन पूरा नहीं हो पाये हैं. छात्रों को
जमीन पर बैठ कर पढ़ाई करनी पड़ती है.
क्या कहते हैं एचएम
विद्यालय की चहारदीवारी काफी नीची है. इससे कुछ असामाजिक तत्वों
द्वारा शौचालय का ताला तोड़ दिया जाता है. इसके कारण शौचालय में काफी गंदगी
रहती है. उन्होंने कहा कि छात्रों के बीच पुरानी पुस्तकों का वितरण किया
गया है. लेकिन सभी छात्रों को पुस्तक उपलब्ध नहीं हो सकी है. वहीं उपलब्ध
संसाधनों मे अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है.
फतेहबाबू, प्रधानाध्यापक