पटना.माध्यमिक
शिक्षकों की हड़ताल के कारण मध्य विद्यालय के शिक्षकों से मैट्रिक की
कॉपियों का मूल्यांकन करा लिया गया। बोर्ड के नियमों के अनुसार, मैट्रिक की
कॉपियों के मूल्यांकन के लिए शिक्षकों के पास मैट्रिक या इंटर में कम से
कम तीन साल पढ़ाने का अनुभव होना जरूरी है। इस साल मैट्रिक परीक्षा की
उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए मिडिल स्कूल के वैसे शिक्षकों को
मूल्यांकन कार्य में लगाया गया है, जो सातवीं और आठवीं तक के छात्रों को
पढ़ाते हैं।
इस वजह से स्तरहीन मूल्यांकन की संभावना और खराब रिजल्ट की आशंका जताते हुए राम पुकार यादव द्वारा हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की गई। याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति चक्रधारीशरण सिंह की एकलपीठ ने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से एक सप्ताह में वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हुए जवाब देने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता की ओर वरीय अधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कोर्ट को बताया कि अनुभवहीन शिक्षकों से मैट्रिक की काॅपियों का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं हो पाएगा और परीक्षार्थियों को इससे काफी परेशानियां हो सकती हैं।
वहीं परीक्षा समिति की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि ऐसा कोई स्पष्ट नियम बोर्ड का नहीं है। एक परिपाटी चली आ रही है। याचिकाकर्ता के आरोप आधारहीन हैं। टॉपर घोटाले से खराब हुई छवि से उबर कर परीक्षा समिति हरेक कदम फूंक-फूंक कर रख रही है। शिक्षा विभाग के उच्चस्तरीय निर्णय पर ही समिति कोई भी कदम उठाती है। कोर्ट ने संदर्भित नियमों के आलोक में बिहार बोर्ड को एक हफ्ते में जवाब दायर करने का आदेश दिया। अगली सुनवाई 8 मई को होगी।
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शिक्षकों ने किया था बहिष्कार
हाईस्कूलों में नियुक्त्त नियोजित शिक्षकों ने वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर वर्ष 2017 की मैट्रिक की परीक्षा की काॅपियों के मूल्यांकन बहिष्कार किया था। इसके कारण ही बिहार बोर्ड ने मूल्यांकन का कार्य मिडिल स्कूल के शिक्षकों से कराने का निर्णय लिया था।