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जब कोई खास फैसला लेना हो तो दिल की आवाज़ सुने या दिमाग़ की?

जब कोई खास फैसला लेना हो तो दिल की आवाज़ सुने या दिमाग़ की?
बड़ा गंभीर सवाल है, शायद कोई ही शख़्स इस सवाल से बचा हो। फैसला लेना पड़ता है, कभी-कभी व्यक्ति, वस्तु, स्थान के चुनाव या संदर्भ में।

जिसे हम मुहब्बत करते हैं उसे दिल से लेते हैं उसकी बुराई भी अच्छी लगती है और जिसे हम नफरत करते हैं या पसंद नहीं करते उसे दिमाग़ से लेते हैं उसकी अच्छाई भी बुरी लगती है। अक्सर ऐसा ही करते हैं हम सब यही म्यार है हमारे चांचने परखने का।
कई बार दिल भी धोखा दे जाता है कई बार दिमाग़ भी ग़लत साबित हो जाता है। अब ऐसे में क्या करें किसकी सुने असमंजस की स्थिति है।
क्यों न ताल - मेल बिठा कर रखें दिल और दिमाग़ का।जहाँ दिमाग़ की सुननी चाहिए वहाँ दिमाग़ की सुनें, जहाँ दिल की आवाज़ सुनना ज़्यादा ज़रूरी है वहाँ दिल की ही बात सुने।
मसलन अगर किसी सामान और जगह का इंतख़ाब करना है तो बेशक़ दिमाग़ की बात सुनें।
मगर जहाँ इंसान का इंतख़ाब करना है वहाँ दिल की ही बात सुनें।
किसी-किसी स्थिति में जगह का इंतख़ाब करने के लिए भी दिल की भी सुन लेनी चाहिए जैसे आप कहाँ रहना चाहते हैं कहाँ पढ़ना चाहते हैं। ऐसे ही कभी-कभी इंसान का इंतख़ाब करते वक्त भी दिमाग़ की सुन लेनी चाहिए कहीं ग़लत इंसान को न चुन लें किसी की ग़लत मशविरे पर न अमल कर लें ।
जहाँ दिल की ही आवाज़ सुनना बेहतर है दिल की ही आवाज़ सुनें किसी के दबाव में आकर ग़लत फैसला न करें, ज़ल्दबाज़ी न करें, अगर डरकर - दबकर या मुफाद के लिए ग़लत फैसला इंतख़ाब कर लिया तो बाद में मुश्क़िल होगी जीना दूभर हो जाएगा, साँसें घुटने लगेंगी। और यह घुटन धुँए की घुटन से भी बुरी है जिसे देखा नहीं जा सकता, सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बिना दमे के भी दम घुटता है, इस घुटन से राहत पाने के लिए कोई हेलर नहीं नेमुलाइज़र नहीं, यह घुटन खुलवा देगी आपकी शर्ट पर लगी क़ीमती टाई को, कानों में पहनी महंगी झुमकियों को नोच देगी, हार को उतार देगी, आईना नहीं देख सकेंगे सकून से आप। गुज़र जाएगी शाम - ओ- सहर बीत जाएगी आँखें फाड़े - फाड़े रात भी।
एक छत के लिए दो रोटी के लिए चार लत्तों के लिए पुरी ज़िंदगी जहन्नुम में बितानी होगी, एक साँप मुसल्लद है आपके बिस्तर पर जो रोज डसेगा, उसका जहर जिस्म में फैल जाएगा, आपकी रुह कांपेगी रोज़, लेकिन आप कुछ कर नहीं सकेंगी आपके पास उस वक्त मना करने के लिए कोई विकल्प नहीं होगा किसी से शेयर करेंगी तो ज्वाब मिलेगा मना नहीं करनी चाहिए तुम बनी ही हो उसकी ज़रूरत पूरा करने के लिए मना करोगी तो फरिश्ते लानत भेजेंगे। आपके अजीज़ भी आपको इसी आग में जलने के लिए सिसक सिसक के मरने के लिए भेजेंगे तरह-तरह के उदाहरणों से समझा कर। ऐसे में दम घटेगा तिल तिल करके मरना होगा अगर बचना है इस घुटन से तो सिर्फ अपने दिल की और अपने ही दिमाग़ की बात सुनें यहाँ दिल और दिमाग़ से ज़्यादा ज़रूरी है कि अपने आप फैसला करें, अपने ही दिल दिमाग़ की सुनें किसी दूसरे को इख़्तियार न दें कि आपके ऊपर आपने फैसले थोपे। चाहे कैसी भी धमकी दे लालच दे हवाला दे। सियासत वाले ही नहीं हमारे अपने भी अजीज़ रिश्ते भी अपनों की लाशों पर चढ़कर अपना घर बसाते हैं आगे जाते हैं। किसे वोट दें किसे वोट दें इस सवाल से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि किसी की बात न मानें, अपनी मर्ज़ी से अपना स्थान सामान इंसान चुने। इंसान का मतलब नेता भी और हमसफर भी दोनों ही अपने दिल दिमाग़ के मुताबिक चुनें। और हां घुटन से बाहर आने की वाजिद दँवाई औरत के लिए ताअलीम, मज़बूत रोज़गार, ख़ुदमुख़्तारी है।

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