प्रिय संघर्षशील बन्धुवर,
सहृदय नमस्कारम्
शिक्षक समाज के ऊपर हो रही शोषण व दमन के मुद्दे पर बहुत सारे ऑनलाइन बहसबाजी एवं शोसल मिडिया पर लम्बा चौड़ा वक्तव्य से सिर्फ एक उम्मीद किया जा सकता है की दिनों दिन जमीन पर संघर्ष करने वालों की संख्या घटती सी जा रही है और ऐसे में जमीन पर संघर्षरत व्यक्ति के साथ किसी भी तरह की अपमानजनक स्थिति बनती है तो ये उस व्यक्ति की नहीं बल्कि पुरे उस समाज की गरिमा का अपमान है ।
एक कहावत वो सरदार जी वाली बात की मुझे मारा तो मारा लेकिन मेरी .............! ऐसे में इसको उसकी ही समस्या मान लिया जाए तो सफल आंदोलन व क्रांति की बात करना ....... ? बस आगे खुद समझलें .....।
यदि शिक्षक के साथ दमन हुआ तो वो भला कैसे अपने सानिध्य बच्चों को स्वाभिमान की पाठ पढ़ाएंगे। शिक्षक मन पीड़ित हो तो पीड़ा उनकी दिनचर्या में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव जरूर डालती है। अतः अभी जब सभी कोटि के शिक्षक वर्ग अपनी अधिकार सम्मान व शिक्षा व्यवस्था को मजबूती देने हेतु जाग्रत हो रहें हैं तो बस एक ही मकशद स्पष्ट होनी चाहिए " जिस उद्देश्य को पाने निकल चुके उसे पाना ही एकमात्र लक्ष्य " और कूटनीति कहती है की अपने लक्ष्य को पाने में यदि घोर दुश्मन से भी तात्कालिक सहायता लेनी पड़े तो उसकी चालाकी पर विशिष्ट नजर रखते हुए सहयोग लेने से चूकना नहीं चाहिए। यदि हम अपनी जीत पक्की करना चाहते हैं तो इसके लिए सोशल मिडिया को छोड़ सीधे टेलीफोनिक व आमने सामने संपर्क अभियान को अंजाम तक ले जाना होगा साथ ही संघ की उद्देश्यों में उनकी हित से बारीकी के साथ जोड़ना होगा।
जब जनांदोलन की बात हो तो उससे पीछे हटने वाले व्यक्ति स्ययंभू विशेष इर्ष्यवादी स्वमतलबी किस्म के होते है, जो अपनी नेतगिरि प्लेटफॉर्म बनाने की मौका तलाशते रहते और ऐसे लोगों को संघीय उद्देश्यों से कोई सरोकार भी नहीं रहता एवं अपने सानिध्य के लोगों को भी अपने जैसे सोच के बना दिया करते हैं।
अतः अपनी स्वाभिमान की रक्षा व लड़ाई में संघीय उद्देश्यों को सर्बोपरि रखते हुए एकजुट हो सिस्टम से संघर्ष किया जाए तो जीत हर हाल में मिलेगी।
उम्मीद है मेरी विचार से सम्मानित सदस्य सहमत होंगे, यदि विचार से सहमत न हों तो इसकेलिए माफ़ी चाहूँगा।
🌹🙏�🌹
नवल किशोर झा 📞➖9708706191
समाजसेवी व शिक्ष
सहृदय नमस्कारम्
शिक्षक समाज के ऊपर हो रही शोषण व दमन के मुद्दे पर बहुत सारे ऑनलाइन बहसबाजी एवं शोसल मिडिया पर लम्बा चौड़ा वक्तव्य से सिर्फ एक उम्मीद किया जा सकता है की दिनों दिन जमीन पर संघर्ष करने वालों की संख्या घटती सी जा रही है और ऐसे में जमीन पर संघर्षरत व्यक्ति के साथ किसी भी तरह की अपमानजनक स्थिति बनती है तो ये उस व्यक्ति की नहीं बल्कि पुरे उस समाज की गरिमा का अपमान है ।
एक कहावत वो सरदार जी वाली बात की मुझे मारा तो मारा लेकिन मेरी .............! ऐसे में इसको उसकी ही समस्या मान लिया जाए तो सफल आंदोलन व क्रांति की बात करना ....... ? बस आगे खुद समझलें .....।
यदि शिक्षक के साथ दमन हुआ तो वो भला कैसे अपने सानिध्य बच्चों को स्वाभिमान की पाठ पढ़ाएंगे। शिक्षक मन पीड़ित हो तो पीड़ा उनकी दिनचर्या में भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव जरूर डालती है। अतः अभी जब सभी कोटि के शिक्षक वर्ग अपनी अधिकार सम्मान व शिक्षा व्यवस्था को मजबूती देने हेतु जाग्रत हो रहें हैं तो बस एक ही मकशद स्पष्ट होनी चाहिए " जिस उद्देश्य को पाने निकल चुके उसे पाना ही एकमात्र लक्ष्य " और कूटनीति कहती है की अपने लक्ष्य को पाने में यदि घोर दुश्मन से भी तात्कालिक सहायता लेनी पड़े तो उसकी चालाकी पर विशिष्ट नजर रखते हुए सहयोग लेने से चूकना नहीं चाहिए। यदि हम अपनी जीत पक्की करना चाहते हैं तो इसके लिए सोशल मिडिया को छोड़ सीधे टेलीफोनिक व आमने सामने संपर्क अभियान को अंजाम तक ले जाना होगा साथ ही संघ की उद्देश्यों में उनकी हित से बारीकी के साथ जोड़ना होगा।
जब जनांदोलन की बात हो तो उससे पीछे हटने वाले व्यक्ति स्ययंभू विशेष इर्ष्यवादी स्वमतलबी किस्म के होते है, जो अपनी नेतगिरि प्लेटफॉर्म बनाने की मौका तलाशते रहते और ऐसे लोगों को संघीय उद्देश्यों से कोई सरोकार भी नहीं रहता एवं अपने सानिध्य के लोगों को भी अपने जैसे सोच के बना दिया करते हैं।
अतः अपनी स्वाभिमान की रक्षा व लड़ाई में संघीय उद्देश्यों को सर्बोपरि रखते हुए एकजुट हो सिस्टम से संघर्ष किया जाए तो जीत हर हाल में मिलेगी।
उम्मीद है मेरी विचार से सम्मानित सदस्य सहमत होंगे, यदि विचार से सहमत न हों तो इसकेलिए माफ़ी चाहूँगा।
🌹🙏�🌹
नवल किशोर झा 📞➖9708706191
समाजसेवी व शिक्ष