मुंगेर । शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति का खेल जारी है। इसके कारण
विद्यालयों के संचालन व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मुहैया कराने की मुहिम पर
इसका प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इसको लेकर अब तक कई बार जिलाधिकारी एवं जिला
शिक्षा पदाधिकारी स्तर पर यह आदेश जारी किया गया कि सभी प्रतिनियुक्ति रद्द
की जा चुकी है।
इसके बाद भी यदि कोई प्रतिनियुक्ति की जाती है, तो इसकी जानकारी जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिलाधिकारी को दें। लेकिन इस आदेश का कोई असर शिक्षा विभाग पर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। आदेश जारी होने के बाद भी दर्जनों की संख्या में प्रारंभिक से लेकर माध्यमिक शिक्षक वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर बने हुए हैं। क्योंकि प्रतिनियुक्ति रद्द किए जाने का आदेश केवल कागज तक ही सिमट कर रह गया है। वहीं कई शिक्षक तो ऐसे हैं जो स्कूल में पढ़ाना चाहते ही नहीं हैं। उन्हें शिक्षक से अधिक कहीं किरानी बाबू कहलाना पसंद है। वे हमेशा इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि उन्हें विद्यालय नहीं जाना पड़े। इधर शिक्षा विभाग के कार्यालय को भी यह पता नहीं है कि उनके कितने शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर हैं। इससे यह पता चलता है कि प्रतिनियुक्ति को लेकर कितना बड़ा खेल चल रहा है। सूत्रों की मानें तो प्रखंड कार्यालय से लेकर जिला स्तर के विभिन्न कार्यालयों में कई स्तर से शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति की जाती है। इसके बाद वर्षों तक उन्हें वहां से रिलीव नहीं किया जाता है। जबकि उनका वेतन शिक्षा विभाग के द्वारा भुगतान जाता है। इसके लिए संबंधित कार्यालय जहां शिक्षक प्रतिनियुक्त होते हैं वहां से शिक्षा विभाग को संबंधित शिक्षक की अनुपस्थिति भेजी जाती है। फिर भी विभागीय अधिकारी इस बात को स्पष्ट नहीं करना चाहते हैं कि उनके कितने शिक्षक एवं कहां प्रतिनियुक्ति पर हैं। बताते चलें कि माध्यमिक विद्यालयों के कई शिक्षक विगत तीन वर्षों से अधिक समय से डायट कॉलेज में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वहीं कई शारीरिक शिक्षक खेल विभाग में, तो कई शिक्षक कई वर्ष से विभिन्न नियोजन इकाईयों तथा प्रखंड कार्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर हैं।
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इसके बाद भी यदि कोई प्रतिनियुक्ति की जाती है, तो इसकी जानकारी जिला शिक्षा पदाधिकारी एवं जिलाधिकारी को दें। लेकिन इस आदेश का कोई असर शिक्षा विभाग पर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है। आदेश जारी होने के बाद भी दर्जनों की संख्या में प्रारंभिक से लेकर माध्यमिक शिक्षक वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर बने हुए हैं। क्योंकि प्रतिनियुक्ति रद्द किए जाने का आदेश केवल कागज तक ही सिमट कर रह गया है। वहीं कई शिक्षक तो ऐसे हैं जो स्कूल में पढ़ाना चाहते ही नहीं हैं। उन्हें शिक्षक से अधिक कहीं किरानी बाबू कहलाना पसंद है। वे हमेशा इस जुगाड़ में लगे रहते हैं कि उन्हें विद्यालय नहीं जाना पड़े। इधर शिक्षा विभाग के कार्यालय को भी यह पता नहीं है कि उनके कितने शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर हैं। इससे यह पता चलता है कि प्रतिनियुक्ति को लेकर कितना बड़ा खेल चल रहा है। सूत्रों की मानें तो प्रखंड कार्यालय से लेकर जिला स्तर के विभिन्न कार्यालयों में कई स्तर से शिक्षकों की प्रतिनियुक्ति की जाती है। इसके बाद वर्षों तक उन्हें वहां से रिलीव नहीं किया जाता है। जबकि उनका वेतन शिक्षा विभाग के द्वारा भुगतान जाता है। इसके लिए संबंधित कार्यालय जहां शिक्षक प्रतिनियुक्त होते हैं वहां से शिक्षा विभाग को संबंधित शिक्षक की अनुपस्थिति भेजी जाती है। फिर भी विभागीय अधिकारी इस बात को स्पष्ट नहीं करना चाहते हैं कि उनके कितने शिक्षक एवं कहां प्रतिनियुक्ति पर हैं। बताते चलें कि माध्यमिक विद्यालयों के कई शिक्षक विगत तीन वर्षों से अधिक समय से डायट कॉलेज में प्रतिनियुक्ति पर हैं। वहीं कई शारीरिक शिक्षक खेल विभाग में, तो कई शिक्षक कई वर्ष से विभिन्न नियोजन इकाईयों तथा प्रखंड कार्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर हैं।
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