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जब मांगी नहीं सूची तो कैसे किया भुगतान

बक्सर : करीब दो करोड़ रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले में जिला शिक्षा पदाधिकारी ओंकार प्रसाद ¨सह द्वारा सौंपे गये प्रतिवेदन में कई बिन्दुओं पर सवाल खड़े किए गये हैं। यही नहीं जिला शिक्षा पदाधिकारी ने इस छात्रवृत्ति घोटाले में आठ से अधिक विद्यालयों के शामिल होने की संभावना जतायी है। जिलाधिकारी रमण कुमार ने बताया कि उक्त मामले में गठित प्रशासनिक टीम द्वारा जांच चल रही है।
इसका निष्कर्ष आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
जिला शिक्षा पदाधिकारी द्वारा भेजे गये प्रतिवेदन में कहा गया है कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान द्वारा उच्च विद्यालयों के बच्चों की सूची कल्याण विभाग को भेजी जाती है। ऐसे में कोई सूची अगर डीपीओ लेखा रामनाथ राम द्वारा भेजी गयी तो उस पर कल्याण विभाग को भुगतान नहीं करना चाहिए था। यह सोचने वाली बात है कि कल्याण विभाग ने जब डीपीओ लेखा से सूची मांगी ही नहीं तो उस पर भुगतान कैसे हो गया। यही नहीं, रामनाथ राम द्वारा हस्ताक्षरित सूची के साथ कोई अग्रसारण पत्र नहीं लगा है और न ही उस पर कार्यालय का पत्रांक या दिनांक अंकित है। जिला शिक्षा पदाधिकारी ने लिखा है कि जिला कल्याण पदाधिकारी द्वारा उन्हें व जिलाधिकारी को उपलब्ध करायी गयी विद्यालयों की सूची में भी अंतर है। ऐसे में यह संभावना जतायी जा रही है कि ये विद्यालय केवल आठ ही नहीं अपितु इससे ज्यादा हैं। डीईओ ने यह भी लिखा है कि छात्रवृत्ति का भुगतान अब तक नियमानुसार विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों द्वारा छात्रों को नगद दिया जाता रहा है। ऐसे में फर्जी विद्यालयों के जिन प्रधानध्यापकों द्वारा बैंक से राशि की निकासी की गयी है उनके बैंक खाते का पूरा ब्योरा प्राप्त किया जा सकता है। बहरहाल, डीईओ के जांच प्रतिवेदन से यह स्पष्ट हो रहा है कि इसमें कल्याण विभाग ने सतर्कता नहीं बरती या फिर उसकी मिलीभगत से ऐसा हुआ। शिक्षा विभाग ने अगर सूची भेजी तो उसका क्या राज है और जो बैंक एक आम आदमी का खाता खोलने में कई तरह की जांच करता है, गैरेंटर रखता है वह इस मामले में कैसे चूक खा गया या फिर उसकी भी मिलीभगत इसमें शामिल है। जो भी हो, यह तो जांच का विषय है कि सबकुछ फर्जी तरीके से कैसे हो गया और किसी की नजर उस पर नहीं पड़ी। अब देखना है कि प्रशासन इस फर्जीबाड़े का खुलासा कर पाता है अथवा नहीं।

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