सुपौल। भले ही विभाग विद्यालयों में शैक्षणिक व्यवस्था को ले लाख दावा कर ले, सच है कि आज भी सबकुछ व्यवस्थित नहीं हो पा रहा है। स्थानीय स्तर पर ही बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करें इसके लिए विभाग ने जिले में पूर्व संचालित सभी 111 उच्च विद्यालयों को उत्क्रमित कर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय का दर्जा दे दिया।
परन्तु इन विद्यालयों की स्थिति क्या है, इनमें नामांकित बच्चों का हाल क्या है इसको जानने की फूर्सत किसी को नहीं है। हालांकि पिछले छह वर्षो के प्रयास के बाद जिले के कुल 31 विद्यालयों में उच्चतर माध्यमिक भवन के निर्माण के साथ ही 30 विद्यालयों में प्लस टू की पढ़ाई शुरू की गई। परन्तु विडंबना देखिये कि इन विद्यालयों में प्लस टू में नामांकित छात्र-छात्रा बिना गुरू ही ज्ञान प्राप्त करने को मजबूर हैं।
- फाइलों में तीस विद्यालयों में हो रही पढ़ाई
विभागीय फाइलों में जिले के 30 उच्च विद्यालयों में प्लस टू की पढ़ाई हो रही है। जिसमें सैकड़ों बच्चे विज्ञान और कला संकाय में नामांकित हैं। परन्तु इन तीस विद्यालयों में 99 शिक्षक वर्तमान में कार्यरत हैं। औसतन लगभग 3 शिक्षक प्रत्येक विद्यालय पड़ता है। जबकि कला और विज्ञान संकायों में लगभग 24 विषयों की अलग-अलग किताबें हैं। नियमानुसार प्लस टू में कम से कम 24 विषयवार शिक्षक प्रत्येक विद्यालय में होना चाहिए। लेकिन वर्तमान हाल है कि तीन से चार शिक्षक प्रति स्कूल है। इससे तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस विद्यालयों में नामांकित बच्चे बिना पढ़े कक्षा उतीर्ण करने को मजबूर हैं।
-बच्चों की उपस्थिति रहती नदारद
जबसे विभाग ने प्रत्येक उच्चतर कक्षा में बच्चों के नामांकन की सीटें निर्धारित कर दी है। तब से नामांकन के आपाधापी में बच्चे इन उत्क्रमित विद्यालयों में तो नामांकन ले लेते हैं। परन्तु जब उन्हें पता चलता है कि वे जो विषय रखे हैं उन विषय में शिक्षक ही नहीं है तो वे फिर विद्यालय आना ही छोड़ देते हैं। विद्यालय से उनका रिश्ता समय-समय पर परीक्षा व फार्म भराई तक ही रहता है।
-सुविधा का घोर अभाव
जिन विद्यालयों में भवन बना दिये गये हैं। वहां इसका मतलब यह नहीं कि सारी सुविधा उपलब्ध है। कक्षा चलाने लायक भवन है परन्तु प्रयोगशाला, पुस्तकालय जैसी सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। अधिकांश ऐसे विद्यालयों के प्रयोगशाला की सामग्री उच्च विद्यालयों में गिरवी रखा है।
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''सरकार द्वारा समय-समय पर शिक्षक नियोजन प्रक्रिया की जा रही है। नियोजन के माध्यम से ही शिक्षकों की बहाली की जाती है। नियोजन के क्रम में देखा गया है कि विषयवार अभ्यर्थियों की ही कमी रह जाती है।''
-मो.जाहिद हुसैन
जिला शिक्षा पदाधिकारी
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