नियोजितशिक्षक, सांख्यिकी सहायक और वित्त रहित शिक्षण संस्थानों को लेकर
भाजपा ने गुरुवार को विधानसभा में जमकर हंगामा किया। भाजपा के डॉ.प्रेम
कुमार और तारकिशोर प्रसाद ने इस मुद्दे पर कार्यस्थगन का प्रस्ताव दिया था।
शून्यकाल शुरू होने से ठीक पहले स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने खारिज कर दिया। इसी के साथ भाजपा के तमाम सदस्य नारेबाजी करते हुए वेल में गए। विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव ने मोर्चा संभालते हुए सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। जवाब में संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने सत्ता पक्ष की ओर से मोर्चा संभाल लिया। आखिरकार भाजपा के सदस्यों पर समझाने-बुझाने का कई असर नहीं पड़ता देख स्पीकर ने कार्यवाही को भोजनावकाश तक के लिए स्थगित कर दिया।
सरकारकी नाकामी से हो रही हड़ताल
भाजपासदस्यों का कहना था कि जदयू सरकार की नाकामियों के कारण हर दिन कहीं ना कहीं हड़ताल, धरना और प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार पहले तो हड़ताली संगठनों से बात ही नहीं करती और जब मामला बिगड़ जाता है तो बात करने की कोशिश होती है। इसके कारण हड़ताली संगठनों को सरकार पर भरोसा नहीं हो रहा है। कभी आंगनबाड़ी सेविकाओं की हड़ताल तो कभी रसोइयों की, कभी नियोजित शिक्षकों की हड़ताल तो कभी सांख्यिकी स्वयंसेवकों की, हालात ऐसे बन गए हैं कि लगता है जैसे पूरा बिहार हड़ताल पर हो। जदयू सरकार को इन संगठनों से बात करके, उनकी जायज मांगों पर उचित फैसला लेना चाहिए।
विधानसभा के मुख्य द्वार पर सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध जताते भाजपा नेता।
पॉलिटिकल रिपोर्टर | पटना
नेताप्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव ने कहा कि नियोजित शिक्षक, सांख्यिकी सहायक और वित्तरहित शिक्षाकर्मी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को काला झंडा दिखाने का दंश झेल रहे हैं। इन कर्मियों से जुड़े संगठनों ने कभी कभी नीतीश का विरोध किया और काला झंडा तक दिखाया। सिर्फ इतनी सी बात के लिए सरकार इन कर्मियों को सबक सिखाना चाहती है। मुख्यमंत्री राग-द्वेष के साथ काम रहे हैं। नंदकिशोर ने कहा कि राज्य में 3 लाख से अधिक नियोजित शिक्षक हैं। उन्हें सम्मानजनक राशि मिलनी चाहिए। यूपी और उड़ीसा में नियोजित शिक्षकों को ग्रेड-पे मिलता है। बिहार में भी यही व्यवस्था लागू होनी चाहिए। सांख्यिकी सहायकों की संख्या लगभग 75 हजार है। इन कर्मियों ने दिन-रात मेहनत करके 96 प्रतिशत डीसी बिल का समायोजन करा दिया। सरकार ने इन्हें पुरस्कृत करने के स्थान पर कॉन्ट्रैक्ट की अवधि एक वर्ष से घटा कर 11 माह कर दी। इसी तरह वित्त रहित डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज और माध्यमिक स्कूलों को पांच साल से अनुदान बंद है। सरकार हर पंचायत में हाईस्कूल खोलना चाहती है। राज्य में 715 वित्तरहित माध्यमिक स्कूल हैं। इनके पास पर्याप्त जमीन है और भवन भी। सरकार चाहती तो इनका अधिग्रहण कर सकती थी। असली समस्या यह है कि सरकार समस्या का समाधान करने की बजाय इसे जीवित रखना चाहती है।
शून्यकाल शुरू होने से ठीक पहले स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने खारिज कर दिया। इसी के साथ भाजपा के तमाम सदस्य नारेबाजी करते हुए वेल में गए। विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव ने मोर्चा संभालते हुए सरकार पर ताबड़तोड़ हमले शुरू कर दिए। जवाब में संसदीय कार्य मंत्री श्रवण कुमार ने सत्ता पक्ष की ओर से मोर्चा संभाल लिया। आखिरकार भाजपा के सदस्यों पर समझाने-बुझाने का कई असर नहीं पड़ता देख स्पीकर ने कार्यवाही को भोजनावकाश तक के लिए स्थगित कर दिया।
सरकारकी नाकामी से हो रही हड़ताल
भाजपासदस्यों का कहना था कि जदयू सरकार की नाकामियों के कारण हर दिन कहीं ना कहीं हड़ताल, धरना और प्रदर्शन हो रहे हैं। सरकार पहले तो हड़ताली संगठनों से बात ही नहीं करती और जब मामला बिगड़ जाता है तो बात करने की कोशिश होती है। इसके कारण हड़ताली संगठनों को सरकार पर भरोसा नहीं हो रहा है। कभी आंगनबाड़ी सेविकाओं की हड़ताल तो कभी रसोइयों की, कभी नियोजित शिक्षकों की हड़ताल तो कभी सांख्यिकी स्वयंसेवकों की, हालात ऐसे बन गए हैं कि लगता है जैसे पूरा बिहार हड़ताल पर हो। जदयू सरकार को इन संगठनों से बात करके, उनकी जायज मांगों पर उचित फैसला लेना चाहिए।
विधानसभा के मुख्य द्वार पर सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध जताते भाजपा नेता।
पॉलिटिकल रिपोर्टर | पटना
नेताप्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव ने कहा कि नियोजित शिक्षक, सांख्यिकी सहायक और वित्तरहित शिक्षाकर्मी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को काला झंडा दिखाने का दंश झेल रहे हैं। इन कर्मियों से जुड़े संगठनों ने कभी कभी नीतीश का विरोध किया और काला झंडा तक दिखाया। सिर्फ इतनी सी बात के लिए सरकार इन कर्मियों को सबक सिखाना चाहती है। मुख्यमंत्री राग-द्वेष के साथ काम रहे हैं। नंदकिशोर ने कहा कि राज्य में 3 लाख से अधिक नियोजित शिक्षक हैं। उन्हें सम्मानजनक राशि मिलनी चाहिए। यूपी और उड़ीसा में नियोजित शिक्षकों को ग्रेड-पे मिलता है। बिहार में भी यही व्यवस्था लागू होनी चाहिए। सांख्यिकी सहायकों की संख्या लगभग 75 हजार है। इन कर्मियों ने दिन-रात मेहनत करके 96 प्रतिशत डीसी बिल का समायोजन करा दिया। सरकार ने इन्हें पुरस्कृत करने के स्थान पर कॉन्ट्रैक्ट की अवधि एक वर्ष से घटा कर 11 माह कर दी। इसी तरह वित्त रहित डिग्री कॉलेज, इंटर कॉलेज और माध्यमिक स्कूलों को पांच साल से अनुदान बंद है। सरकार हर पंचायत में हाईस्कूल खोलना चाहती है। राज्य में 715 वित्तरहित माध्यमिक स्कूल हैं। इनके पास पर्याप्त जमीन है और भवन भी। सरकार चाहती तो इनका अधिग्रहण कर सकती थी। असली समस्या यह है कि सरकार समस्या का समाधान करने की बजाय इसे जीवित रखना चाहती है।