यूपी बोर्ड की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं का समापन हो गया। सरकार ने आंकड़े देकर अपनी पीठ थपथपाई है कि उसके नए प्रयोगों और प्रयासों से इस बार साफ-सुथरी परीक्षाएं हुई। नकल की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा है। कुछ हद तक यह सही हो सकता है लेकिन कुछ और भी आंकड़े हैं जिन पर टिप्पणी नहीं आयी।
यह तथ्य है कि यूपी बोर्ड देश के सबसे बड़े राज्य बोर्डो में गिना जाता है लेकिन इसकी साख हमेशा से निचले पायदान पर रही है। यही वजह है कि कुछ दशक में अच्छे विद्यालयों और विद्यार्थियों ने केंद्रीय बोर्डो का रुख किया है। सबसे ज्यादा फजीहत नकल कारोबार के उद्योग का रूप ले लेने से रही है।
बहरहाल, यह अतीत की बात है। अब दावा है कि बोर्ड ने नकल रोकने के जो प्रयास किए उनके अच्छे परिणाम निकले हैं। पिछली परीक्षाओं में 69,93,462 विद्यार्थियों ने हाईस्कूल व इंटर के लिए पंजीकरण कराया था। इस बार यह संख्या घटी और 64,23,198 विद्यार्थी ही पंजीकृत हुए। पंजीकृत छात्र संख्या में 5,70,264 की गिरावट को सरकार उपलब्धि मान रही है। तर्क है कि कक्षा नौ और ग्यारह में दाखिले के बाद ही बोर्ड परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की प्रणाली शुरू होने के कारण यह गिरावट आयी है। यानी, फर्जी परीक्षार्थियों पर अंकुश लगा है। इसी तरह पंजीकरण के बाद परीक्षा न देने वालों की संख्या भी इस बार 6,75,701 रही। यह कुल पंजीकृत परीक्षार्थियों के सापेक्ष 10.52 फीसद है। बोर्ड इसे भी व्यवस्था में चुस्ती का परिणाम मान रहा है। इससे इतर नकल का आंकड़ा भी है जो गंभीर सवाल खड़ा करता है। इस बार हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में कुल 2309 परीक्षार्थी नकल करते पकड़े गए। करीब 65 लाख पंजीकृत परीक्षार्थियों में यह आंकड़ा बहुत मायने नहीं रखता लेकिन जो बात मायने रखती है वह है कदाचरण के आरोप में शिक्षकों के खिलाफ कदम। यह हैरान करने वाला है कि 137 केंद्र व्यवस्थापक और 227 कक्ष निरीक्षक संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त मिले। इनमें से 88 के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई। दो प्रधानाध्यापक और एक परीक्षा सहायक के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज हुई। यानी कुल 367 शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई हुई जो पकड़े गए नकलचियों की तुलना में करीब 17 फीसद बैठती है। इतनी बड़ी संख्या में कदाचरण पकड़ा जाना इस बात की ओर भी इशारा करता है, कहीं ऐसा तो नहीं कि ऊपर से सब ठीकठाक लेकिन अंदरखाने संगठित रूप से नकल कारोबार चल रहा है। इस नई प्रवृत्ति पर ध्यान देने की जरूरत है।
यह तथ्य है कि यूपी बोर्ड देश के सबसे बड़े राज्य बोर्डो में गिना जाता है लेकिन इसकी साख हमेशा से निचले पायदान पर रही है। यही वजह है कि कुछ दशक में अच्छे विद्यालयों और विद्यार्थियों ने केंद्रीय बोर्डो का रुख किया है। सबसे ज्यादा फजीहत नकल कारोबार के उद्योग का रूप ले लेने से रही है।
बहरहाल, यह अतीत की बात है। अब दावा है कि बोर्ड ने नकल रोकने के जो प्रयास किए उनके अच्छे परिणाम निकले हैं। पिछली परीक्षाओं में 69,93,462 विद्यार्थियों ने हाईस्कूल व इंटर के लिए पंजीकरण कराया था। इस बार यह संख्या घटी और 64,23,198 विद्यार्थी ही पंजीकृत हुए। पंजीकृत छात्र संख्या में 5,70,264 की गिरावट को सरकार उपलब्धि मान रही है। तर्क है कि कक्षा नौ और ग्यारह में दाखिले के बाद ही बोर्ड परीक्षाओं के लिए ऑनलाइन पंजीकरण की प्रणाली शुरू होने के कारण यह गिरावट आयी है। यानी, फर्जी परीक्षार्थियों पर अंकुश लगा है। इसी तरह पंजीकरण के बाद परीक्षा न देने वालों की संख्या भी इस बार 6,75,701 रही। यह कुल पंजीकृत परीक्षार्थियों के सापेक्ष 10.52 फीसद है। बोर्ड इसे भी व्यवस्था में चुस्ती का परिणाम मान रहा है। इससे इतर नकल का आंकड़ा भी है जो गंभीर सवाल खड़ा करता है। इस बार हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में कुल 2309 परीक्षार्थी नकल करते पकड़े गए। करीब 65 लाख पंजीकृत परीक्षार्थियों में यह आंकड़ा बहुत मायने नहीं रखता लेकिन जो बात मायने रखती है वह है कदाचरण के आरोप में शिक्षकों के खिलाफ कदम। यह हैरान करने वाला है कि 137 केंद्र व्यवस्थापक और 227 कक्ष निरीक्षक संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त मिले। इनमें से 88 के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हुई। दो प्रधानाध्यापक और एक परीक्षा सहायक के खिलाफ भी एफआइआर दर्ज हुई। यानी कुल 367 शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई हुई जो पकड़े गए नकलचियों की तुलना में करीब 17 फीसद बैठती है। इतनी बड़ी संख्या में कदाचरण पकड़ा जाना इस बात की ओर भी इशारा करता है, कहीं ऐसा तो नहीं कि ऊपर से सब ठीकठाक लेकिन अंदरखाने संगठित रूप से नकल कारोबार चल रहा है। इस नई प्रवृत्ति पर ध्यान देने की जरूरत है।