पटना। शिक्षा मंत्री पीके शाही ने मंगलवार को बिहार विधान परिषद में स्वीकार किया कि राज्य के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना अभी भी सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती है। शिक्षा के क्षेत्र में बिहार लगातार पिछड़ रहा है। शिक्षा मंत्री मंगलवार को सदन में शिक्षा, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के लिए वर्ष 2015-16 के बजट पर हुई बहस के बाद सरकार की ओर से जवाब दे रहे थे। मंगलवार को सदन में शिक्षा विभाग के 22 अरब, 27 करोड़ रुपये से भी अधिक के बजट को विपक्ष के बहिर्गमन के बीच स्वीकृति प्रदान कर दी गई।शिक्षा मंत्री के जवाब के बीच मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सदस्यों ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। विपक्ष की अनुपस्थिति में शिक्षा मंत्री ने अपने जवाब के क्रम में कहा कि हम जिस राज्य में रह रहे हैं, उस राज्य में आजादी के बाद से वर्ष 2005 तक सरकार के स्तर से एक माध्यमिक स्कूल तक नहीं खोले गए थे और न ही कोई अंगीभूत कॉलेज की स्थापना की गई। जब विपक्ष ने उनके जवाब के क्रम में अपने बहिष्कार से पहले टोका-टोकी की तो शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षा के बजट में बीस प्रतिशत की इस साल कटौती का कारण उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से पूछना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के सदस्यों को केंद्रीय वित्त मंत्री से यह भी पूछना चाहिए कि अब राज्य में सर्वशिक्षा अभियान और मिड डे मिल का संचालन कैसे होगा। फिर क्या था भाजपा के सदस्य सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर बाहर चले गए। शिक्षा मंत्री ने कहा हमें अभी भी पता नहीं है कि उपरोक्त योजनाओं में केंद्र सरकार राज्य को कितना हिस्सा देगी। उन्होंने पिछले नौ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में मिली उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारी सरकार के गठन से पहले राज्य में विश्वविद्यालयों की तो स्थापना की गई लेकिन किसी भी विवि में आधारभूत संरचना तक उपलब्ध नहीं कराए गए थे। हमने पिछले दस वर्षों में हर साल सबसे अधिक राशि शिक्षा के क्षेत्र में खर्च की है। इसका असर यह हुआ है कि 1.60 करोड़ बच्चों को उपस्थिति के आधार पर सरकारी सुविधाओं से जोड़ा गया है। जबकि पूर्व में सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति महज 18 से 23 प्रतिशत तक ही थी। उन्होंने कहा कि इसका असर यह हुआ है कि हमारे स्कूलों में छात्र-छात्राओ के अनुपात में आई गिरावट को भी बहुत हद तक पाटा जा सका है। शिक्षा, कला, संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग के बजट पर मंगलवार को सदन में आयोजित वाद-विवाद में जदयू के दिलीप चौधरी, डा. रामवचन राय, भाजपा के रजनीश कुमार व संजय प्रकाश तथा जदयू के रुदल राय ने भाग लिया।
पटना।
शिक्षा मंत्री पीके शाही ने मंगलवार को बिहार विधान परिषद में स्वीकार
किया कि राज्य के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की परिकल्पना अभी भी सरकार के लिए
एक गंभीर चुनौती है। शिक्षा के क्षेत्र में बिहार लगातार पिछड़ रहा है।
शिक्षा मंत्री मंगलवार को सदन में शिक्षा, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के
लिए वर्ष 2015-16 के बजट पर हुई बहस के बाद सरकार की ओर से जवाब दे रहे
थे। मंगलवार को सदन में शिक्षा विभाग के 22 अरब, 27 करोड़ रुपये से भी अधिक
के बजट को विपक्ष के बहिर्गमन के बीच स्वीकृति प्रदान कर दी गई।
शिक्षा मंत्री के जवाब के बीच मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सदस्यों ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। विपक्ष की अनुपस्थिति में शिक्षा मंत्री ने अपने जवाब के क्रम में कहा कि हम जिस राज्य में रह रहे हैं, उस राज्य में आजादी के बाद से वर्ष 2005 तक सरकार के स्तर से एक माध्यमिक स्कूल तक नहीं खोले गए थे और न ही कोई अंगीभूत कॉलेज की स्थापना की गई। जब विपक्ष ने उनके जवाब के क्रम में अपने बहिष्कार से पहले टोका-टोकी की तो शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षा के बजट में बीस प्रतिशत की इस साल कटौती का कारण उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से पूछना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के सदस्यों को केंद्रीय वित्त मंत्री से यह भी पूछना चाहिए कि अब राज्य में सर्वशिक्षा अभियान और मिड डे मिल का संचालन कैसे होगा। फिर क्या था भाजपा के सदस्य सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर बाहर चले गए। शिक्षा मंत्री ने कहा हमें अभी भी पता नहीं है कि उपरोक्त योजनाओं में केंद्र सरकार राज्य को कितना हिस्सा देगी। उन्होंने पिछले नौ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में मिली उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारी सरकार के गठन से पहले राज्य में विश्वविद्यालयों की तो स्थापना की गई लेकिन किसी भी विवि में आधारभूत संरचना तक उपलब्ध नहीं कराए गए थे। हमने पिछले दस वर्षों में हर साल सबसे अधिक राशि शिक्षा के क्षेत्र में खर्च की है। इसका असर यह हुआ है कि 1.60 करोड़ बच्चों को उपस्थिति के आधार पर सरकारी सुविधाओं से जोड़ा गया है। जबकि पूर्व में सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति महज 18 से 23 प्रतिशत तक ही थी। उन्होंने कहा कि इसका असर यह हुआ है कि हमारे स्कूलों में छात्र-छात्राओ के अनुपात में आई गिरावट को भी बहुत हद तक पाटा जा सका है। शिक्षा, कला, संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग के बजट पर मंगलवार को सदन में आयोजित वाद-विवाद में जदयू के दिलीप चौधरी, डा. रामवचन राय, भाजपा के रजनीश कुमार व संजय प्रकाश तथा जदयू के रुदल राय ने भाग लिया।
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शिक्षा मंत्री के जवाब के बीच मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सदस्यों ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर दिया। विपक्ष की अनुपस्थिति में शिक्षा मंत्री ने अपने जवाब के क्रम में कहा कि हम जिस राज्य में रह रहे हैं, उस राज्य में आजादी के बाद से वर्ष 2005 तक सरकार के स्तर से एक माध्यमिक स्कूल तक नहीं खोले गए थे और न ही कोई अंगीभूत कॉलेज की स्थापना की गई। जब विपक्ष ने उनके जवाब के क्रम में अपने बहिष्कार से पहले टोका-टोकी की तो शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षा के बजट में बीस प्रतिशत की इस साल कटौती का कारण उन्हें केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से पूछना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के सदस्यों को केंद्रीय वित्त मंत्री से यह भी पूछना चाहिए कि अब राज्य में सर्वशिक्षा अभियान और मिड डे मिल का संचालन कैसे होगा। फिर क्या था भाजपा के सदस्य सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर बाहर चले गए। शिक्षा मंत्री ने कहा हमें अभी भी पता नहीं है कि उपरोक्त योजनाओं में केंद्र सरकार राज्य को कितना हिस्सा देगी। उन्होंने पिछले नौ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में मिली उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारी सरकार के गठन से पहले राज्य में विश्वविद्यालयों की तो स्थापना की गई लेकिन किसी भी विवि में आधारभूत संरचना तक उपलब्ध नहीं कराए गए थे। हमने पिछले दस वर्षों में हर साल सबसे अधिक राशि शिक्षा के क्षेत्र में खर्च की है। इसका असर यह हुआ है कि 1.60 करोड़ बच्चों को उपस्थिति के आधार पर सरकारी सुविधाओं से जोड़ा गया है। जबकि पूर्व में सरकारी स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति महज 18 से 23 प्रतिशत तक ही थी। उन्होंने कहा कि इसका असर यह हुआ है कि हमारे स्कूलों में छात्र-छात्राओ के अनुपात में आई गिरावट को भी बहुत हद तक पाटा जा सका है। शिक्षा, कला, संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग के बजट पर मंगलवार को सदन में आयोजित वाद-विवाद में जदयू के दिलीप चौधरी, डा. रामवचन राय, भाजपा के रजनीश कुमार व संजय प्रकाश तथा जदयू के रुदल राय ने भाग लिया।
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