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बिहार नियोजित शिक्षक : वेतनमान मिला पर सेवा शर्त चार साल बाद भी तय नहीं

राज्य के सरकारी विद्यालयों में नियोजित शिक्षकों को वेतनमान तो राज्य सरकार ने 1 जुलाई 2015 के प्रभाव से ही दे दिया पर इनकी सेवाशर्त चार साल बाद भी नहीं बन सकी है। सूबे में नियोजन नियमावली 2006 में ही लागू होने के बावजूद इस श्रेणी के शिक्षकों को करीब 12 साल की सेवा पूरी करने के बाद भी एक भी प्रमोशन नहीं मिल सका है।

यह बात दीगर है कि ज्यादातर विद्यालयों में वेतनमान वाले सभी शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने की वजह से अब नियोजित शिक्षक ही प्रधानाध्यापकों के प्रभार में हैं और ये ही विद्यालय चला रहे हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में नियोजित शिक्षकों ने वेतनमान और सेवा शर्त के लिए बड़ा आंदोलन चलाया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी की अनुशंसा पर राज्य सरकार ने करीब पौने चार लाख नियोजित शिक्षकों के लिए एक नया वेतनमान लागू कर दिया और इन्हें सम्मानजनक वेतन राशि मिलने लगी। नौकरी भी सेवानिवृत्ति की आयु तक के लिए सुरक्षित हो गई। पर यह कमेटी सेवा शर्त की गुत्थियां तब सुलझा नहीं सकी। उधर ऐसे शिक्षकों की बड़ी तादाद है जो मानमाफिक तबादले के लिए सेवा शर्त बनने की प्रतीक्षा में हैं। इनमें बड़ी संख्या महिलाओं की है।
सेवा शर्त के लिए शिक्षा विभाग में एक उप समिति भी तब बनी थी जिसने बड़ी ही तन्मयता के साथ इसका एक प्रारूप तैयार किया। कई बैठकों के बाद उप समिति ने शीर्षस्थ कमेटी की अनुशंसा पर सुधार भी किए लेकिन नियोजित शिक्षकों का मामला कोर्ट में जाने के बाद यह लटका ही रहा।

कोई ठोस कदम उठता नहीं दिख रहा
शिक्षक खुद मानते हैं कि सेवा शर्त गठन नियोजित शिक्षकों की वजह से भी लंबित रह गया। समान वेतन को लेकर वे पटना हाईकोर्ट गए। कोर्ट ने 31 अक्टूबर 2017 को समान वेतन का फैसला दिया, साथ ही नियोजन नियमावली ही निरस्त हो गई। अगले सवा डेढ़ साल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चलता रहा। वहां से फैसला होने के बाद फिर सरकार में नियोजित शिक्षकों की सेवा शर्त को लेकर सुगबुगी तो हुई है लेकिन कोई ठोस कदम उठता नहीं दिख रहा।

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