महोदय,
बिहार के हजारों उच्च माध्यमिक एवं संबंध महाविद्यालयों के शिक्षक अपनी वाजिब माॅगों को लेकर आंदोलन पर हैं।मूल्यांकन बहिष्कार सहित अन्य प्रजातांत्रिक तरीकों के सहारे अपनी बात सरकार के जेहन में डालना चाहते हैं ।सामाजिक न्याय एवं सुशासन की सरकार से न्याय की अपेक्षा रखते हुए संघर्षरत् हैं ।
परंतु सरकार और प्रशासन द्वारा उनकी आवाज को नक्कार खाने में डालने की असफल और अदूरदर्शी प्रयास किया जा रहा है।
इतना ही नही बिहार के मुख्य सचिव जी शिक्षकों की गिरफ्तारी और सी. बी. एस. ई. के शिक्षकों से मूल्यांकन कार्य कराने की प्रशासनिक गिदरभभकी दिये चले जा रहे हैं ।यह आग में घी का काम कर रहा है।
महोदय, आप भी इसी बिहार की उपज हैं और बखूबी जानते हैं कि शिक्षकों पर इस तरह की अव्यवहारिक धमकियों से कोई खास फर्क नही पड़ता है।भूखा,बेहाल और त्रस्त शिक्षक प्रशासनिक गिदरभभकी से बिलकुल नहीं डरता।मुख्यसचिव के बयानबाजी की प्रशासनिक मजबूरी हम सभी समझते हैं ।
मुख्यमंत्री मंत्री जी,
यह प्रजातंत्र है।आंदोलन संवैधानिक अधिकार है और जब सारे रास्ते बंद हों,तो फिर आंदोलन के सिवा कोई रास्ता भी कहाॅ बचता है(?)।
सर्वोच्च न्यायालय 'समान कार्य के लिए समान वेतन ' की बात करता है।क्या आप इसे नहीं मानते?,यही तो आपके नियोजित शिक्षक माँग रहे हैं ।
संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षक ,जिन्हें सालाना ग्रांट भी आपका अकर्मण्य प्रशासन नही भेज पाता,वेतनमान की मांग कर रहे हैं तो क्या गलत है?
आप सामाजिक न्याय के साथ विकास का नारा लिए दिल्ली की ओर कूच करने को उतारू हैं, क्या इन शिक्षकों को छोड़कर(?) ,सर्वथा असंभव है।
बिहार के हरेक सकारात्मक बदलाव में शिक्षकों का अभूतपूर्व योगदान रहा है,आज भी है।लेकिन आपकी चुप्पी और मुख्य सचिव का बडबोलापन बहुत कुछ कह रहा है।राज्य और देश का शासन अहंकार और शुतुरमुर्गी चाल से हरगिज नही चलता है।पूरे देश के शिक्षक देख रहे हैं कि आप को बात करने की फुर्सत भी नही है।भ्रष्टाचार को खाद पानी देने वाले अफसरशाह शिक्षकों की समस्या का हल कभी नही निकाल सकते।इतिहास गवाह है कि राजनीतिक इच्छा शक्ति से ही ऐसे मसलों का समाधान होता रहा है।बिहार में भी और बिहार के बाहर भी।शिक्षकों को बिना विश्वास में लिए और उनकी न्यूनतम आवश्यकता (वेतनमान )को पूरा किये बिना बिहार को आगे बढ़ाने और दिल्ली की राह एक कठिन डगर है।
आपसे सादर अपील करता हूँ कि यदि शराब बंदी जैसा यशस्वी फैसला आप कर सकते हैं तो फिर 'समान कार्य के लिए समान वेतन और वेतनमान 'की अपेक्षा भी आप ही पूरा करेंगे ।
केवल आपको राजनीतिक संकल्प की जरूरत है।समय की मांग है कि आप फैसला करे,यही मेरी नेक सलाह है।
#COPIED
#एक_आम_शिक्षक
बिहार के हजारों उच्च माध्यमिक एवं संबंध महाविद्यालयों के शिक्षक अपनी वाजिब माॅगों को लेकर आंदोलन पर हैं।मूल्यांकन बहिष्कार सहित अन्य प्रजातांत्रिक तरीकों के सहारे अपनी बात सरकार के जेहन में डालना चाहते हैं ।सामाजिक न्याय एवं सुशासन की सरकार से न्याय की अपेक्षा रखते हुए संघर्षरत् हैं ।
परंतु सरकार और प्रशासन द्वारा उनकी आवाज को नक्कार खाने में डालने की असफल और अदूरदर्शी प्रयास किया जा रहा है।
इतना ही नही बिहार के मुख्य सचिव जी शिक्षकों की गिरफ्तारी और सी. बी. एस. ई. के शिक्षकों से मूल्यांकन कार्य कराने की प्रशासनिक गिदरभभकी दिये चले जा रहे हैं ।यह आग में घी का काम कर रहा है।
महोदय, आप भी इसी बिहार की उपज हैं और बखूबी जानते हैं कि शिक्षकों पर इस तरह की अव्यवहारिक धमकियों से कोई खास फर्क नही पड़ता है।भूखा,बेहाल और त्रस्त शिक्षक प्रशासनिक गिदरभभकी से बिलकुल नहीं डरता।मुख्यसचिव के बयानबाजी की प्रशासनिक मजबूरी हम सभी समझते हैं ।
मुख्यमंत्री मंत्री जी,
यह प्रजातंत्र है।आंदोलन संवैधानिक अधिकार है और जब सारे रास्ते बंद हों,तो फिर आंदोलन के सिवा कोई रास्ता भी कहाॅ बचता है(?)।
सर्वोच्च न्यायालय 'समान कार्य के लिए समान वेतन ' की बात करता है।क्या आप इसे नहीं मानते?,यही तो आपके नियोजित शिक्षक माँग रहे हैं ।
संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षक ,जिन्हें सालाना ग्रांट भी आपका अकर्मण्य प्रशासन नही भेज पाता,वेतनमान की मांग कर रहे हैं तो क्या गलत है?
आप सामाजिक न्याय के साथ विकास का नारा लिए दिल्ली की ओर कूच करने को उतारू हैं, क्या इन शिक्षकों को छोड़कर(?) ,सर्वथा असंभव है।
बिहार के हरेक सकारात्मक बदलाव में शिक्षकों का अभूतपूर्व योगदान रहा है,आज भी है।लेकिन आपकी चुप्पी और मुख्य सचिव का बडबोलापन बहुत कुछ कह रहा है।राज्य और देश का शासन अहंकार और शुतुरमुर्गी चाल से हरगिज नही चलता है।पूरे देश के शिक्षक देख रहे हैं कि आप को बात करने की फुर्सत भी नही है।भ्रष्टाचार को खाद पानी देने वाले अफसरशाह शिक्षकों की समस्या का हल कभी नही निकाल सकते।इतिहास गवाह है कि राजनीतिक इच्छा शक्ति से ही ऐसे मसलों का समाधान होता रहा है।बिहार में भी और बिहार के बाहर भी।शिक्षकों को बिना विश्वास में लिए और उनकी न्यूनतम आवश्यकता (वेतनमान )को पूरा किये बिना बिहार को आगे बढ़ाने और दिल्ली की राह एक कठिन डगर है।
आपसे सादर अपील करता हूँ कि यदि शराब बंदी जैसा यशस्वी फैसला आप कर सकते हैं तो फिर 'समान कार्य के लिए समान वेतन और वेतनमान 'की अपेक्षा भी आप ही पूरा करेंगे ।
केवल आपको राजनीतिक संकल्प की जरूरत है।समय की मांग है कि आप फैसला करे,यही मेरी नेक सलाह है।
#COPIED
#एक_आम_शिक्षक