साथियों,
माध्यमिक शिक्षक संघ के हड़ताल समाप्ति की घोषणा के बाद से ही बहुत सारे साथियों के द्वारा मेरी प्रतिक्रिया की मांग की जा रही थी .....बहुत सारे साथी WhatsApp, मैसेंजर तथा मेरे व्यक्तिगत नंबर पर मैसेज कर यह जानना चाह रहे थे कि अब आगे क्या होगा........
साथीयों जिस प्रकार से इस आंदोलन का अंत हुआ है,इसकी कल्पना किसी भी आम एवं खास नियोजित शिक्षकों में से किसी ने भी नहीं की थी | व्यक्तिगत रूप से मुझे इससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ | मै पहले से समझ रहा था कि बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के आंदोलन का अंत कुछ ऐसा ही होगा | आपको शायद याद होगा कि मैं लगातार Facebook तथा WhatsApp के माध्यम से बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के इस दोगली नीति को लेकर हमलावर था | मैं लगातार आम नियोजित माध्यमिक एवं उत्तर माध्यमिक शिक्षकों को यह बताने का प्रयास कर था कि जिस हक की लड़ाई को आप लड़ना चाहते हैं वह कभी भी नियमित शिक्षकों के संगठन के बैनर तले संभव नहीं है | दरसल बिहार में दो चार ऐसे शिक्षक संगठन ( बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ,बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ एवं अराजपत्रित शिक्षक संघ ) है ,जो शिक्षकों के हित के नाम पर आंदोलन तो करती है लेकिन वह अप्रत्यक्ष रुप से सरकार को आंदोलन के दबाव से मुक्त करने में सहायक होती है | साथियों इस चीज को समझने एंव मूल्यांकन करने का समय अब आ गया है अन्यथा आप हर बार इसी प्रकार से ठगे जाएंगे और आपके हाथ कुछ नहीं लगेंगा........
साथियों जो भी सरकार सत्ता में होती है उसे हर प्रकार के दबाव को झेलने तथा नियंत्रित करने का ज्ञान होता है | पब्लिक व कर्मचारी डोमेन में दो चार ऐसे दबाव समूह बनाए जाते हैं जो सरकार के द्वारा नियंत्रित होते हैं ताकि समय-समय पर कर्मचारियों के आंदोलन को दबाने के लिए इस दबाव समूह का इस्तेमाल किया जा सके | इस प्रकार के संघऔर संगठन के सारे आंदोलन तथा उसके परिणाम पूर्व से निर्धारित कर लिए जाते हैं | उसके बाद पूरे प्लानिंग के साथ उस संगठन को आंदोलन में उतारा जाता है | आप 2015 के आंदोलन का विश्लेषण करगें तो यह स्पष्ट रूप से आपको समझ में आ जाएगा कि उस समय भी शिक्षकों के आंदोलन को तितर-बितर करने का गौरव सरकार द्वारा नियंत्रित इन्हीं संगठन बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ एवं बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ को ही प्राप्त हुआ | इन दोनों संघों के आंदोलन वापस लेते ही नियोजित शिक्षकों के महासंघ पर स्वत: आंदोलन समाप्त करने को लेकर नैतिक दबाव बनना प्रारंभ हो गया और धीरे-धीरे सभी संगठनों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया |
साथियों दरअसल जब कभी भी नियोजित शिक्षको के संगठन द्वारा अपने हक-हूकुक के लिए आंदोलन किया जाता है तो उसके आंदोलन को कुचलने कुचक्र रचा जाता है | यह कई चरणों में सम्पन्न होता है |
#प्रथम_चरण :-
पहले तो उसके आंदोलन को मीडिया ( प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक) कवरेज नही दी जाती है, जिससे कि आमलोगो व आम शिक्षको को यह पता भी नहीं चल पाता कि किसी शिक्षक संगठन ने आंदोलन भी किया है |
#द्वितीय_चरण :-
इस चरण मे सरकार वेट एंड वॉच के नीति अपनाती है | सरकार आंदोलन करने वाले संगठन को ऐसे ही छोड़ देती है ताकि वह कुछ दिन तक आंदोलन करने के बाद थक-हार कर स्वयं ही आंदोलन को वापस ले ले |
#तृतीय_चरण :-
जब यह दोनों हथियार अचूक हो जाता है,तब आंदोलन को तीतर-बीतर करने के लिए सरकार द्वारा नियंत्रित इन संगठनो का आंदोलन में प्रवेश होता है | जैसे ही ये संगठन आंदोलन की घोषणा करते हैं, उसी दिन से प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इसे जबरदस्त स्थान दिया जाता है, जिससे कि आमलोगो व आम शिक्षको को लगे कि इसी संगठन ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया है | लझेदार व मनमोहक भाषन से यह आम नियोजित शिक्षक को यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाते है कि यही निजोजितो के सबसे बड़े हितैषी है |
#चौथा_व_अंतिम_चरण :-
यह चरण आंदोलन के क्लाईमैक्स का होता है | अब ये सरकार से वार्ता का खेल शुरु करते है और अपने पहले से तय ऐजेडें के अनुसार आंदोलन को वापस लेने की घोषणा करते है | आंदोलन समाप्त होने के घोषणा के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक चैनलो पर Big Braking बनता है कि " शिक्षको का आंदोलन हुआ समाप्त ".....इस समाचार को इस प्रकार फ्लैश किया जाता है कि जैसे सभी संगठन ने ही अपने आंदोलन को खत्म कर दिया है,और इस प्रकार नियोजित शिक्षको के आंदोलन का क्रिया-कर्म कर दिया जाता है |
अब हमे सोचना है कि आगे हम सभी अपनी लड़ाई को कैसे लड़े.......... प्रतिक्रिया अपेक्षित है
आपका
राजेन्द्र कुमार
माध्यमिक शिक्षक, सीतामढ़ी
माध्यमिक शिक्षक संघ के हड़ताल समाप्ति की घोषणा के बाद से ही बहुत सारे साथियों के द्वारा मेरी प्रतिक्रिया की मांग की जा रही थी .....बहुत सारे साथी WhatsApp, मैसेंजर तथा मेरे व्यक्तिगत नंबर पर मैसेज कर यह जानना चाह रहे थे कि अब आगे क्या होगा........
साथीयों जिस प्रकार से इस आंदोलन का अंत हुआ है,इसकी कल्पना किसी भी आम एवं खास नियोजित शिक्षकों में से किसी ने भी नहीं की थी | व्यक्तिगत रूप से मुझे इससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ | मै पहले से समझ रहा था कि बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के आंदोलन का अंत कुछ ऐसा ही होगा | आपको शायद याद होगा कि मैं लगातार Facebook तथा WhatsApp के माध्यम से बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के इस दोगली नीति को लेकर हमलावर था | मैं लगातार आम नियोजित माध्यमिक एवं उत्तर माध्यमिक शिक्षकों को यह बताने का प्रयास कर था कि जिस हक की लड़ाई को आप लड़ना चाहते हैं वह कभी भी नियमित शिक्षकों के संगठन के बैनर तले संभव नहीं है | दरसल बिहार में दो चार ऐसे शिक्षक संगठन ( बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ,बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ एवं अराजपत्रित शिक्षक संघ ) है ,जो शिक्षकों के हित के नाम पर आंदोलन तो करती है लेकिन वह अप्रत्यक्ष रुप से सरकार को आंदोलन के दबाव से मुक्त करने में सहायक होती है | साथियों इस चीज को समझने एंव मूल्यांकन करने का समय अब आ गया है अन्यथा आप हर बार इसी प्रकार से ठगे जाएंगे और आपके हाथ कुछ नहीं लगेंगा........
साथियों जो भी सरकार सत्ता में होती है उसे हर प्रकार के दबाव को झेलने तथा नियंत्रित करने का ज्ञान होता है | पब्लिक व कर्मचारी डोमेन में दो चार ऐसे दबाव समूह बनाए जाते हैं जो सरकार के द्वारा नियंत्रित होते हैं ताकि समय-समय पर कर्मचारियों के आंदोलन को दबाने के लिए इस दबाव समूह का इस्तेमाल किया जा सके | इस प्रकार के संघऔर संगठन के सारे आंदोलन तथा उसके परिणाम पूर्व से निर्धारित कर लिए जाते हैं | उसके बाद पूरे प्लानिंग के साथ उस संगठन को आंदोलन में उतारा जाता है | आप 2015 के आंदोलन का विश्लेषण करगें तो यह स्पष्ट रूप से आपको समझ में आ जाएगा कि उस समय भी शिक्षकों के आंदोलन को तितर-बितर करने का गौरव सरकार द्वारा नियंत्रित इन्हीं संगठन बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ एवं बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ को ही प्राप्त हुआ | इन दोनों संघों के आंदोलन वापस लेते ही नियोजित शिक्षकों के महासंघ पर स्वत: आंदोलन समाप्त करने को लेकर नैतिक दबाव बनना प्रारंभ हो गया और धीरे-धीरे सभी संगठनों ने अपना आंदोलन वापस ले लिया |
साथियों दरअसल जब कभी भी नियोजित शिक्षको के संगठन द्वारा अपने हक-हूकुक के लिए आंदोलन किया जाता है तो उसके आंदोलन को कुचलने कुचक्र रचा जाता है | यह कई चरणों में सम्पन्न होता है |
#प्रथम_चरण :-
पहले तो उसके आंदोलन को मीडिया ( प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक) कवरेज नही दी जाती है, जिससे कि आमलोगो व आम शिक्षको को यह पता भी नहीं चल पाता कि किसी शिक्षक संगठन ने आंदोलन भी किया है |
#द्वितीय_चरण :-
इस चरण मे सरकार वेट एंड वॉच के नीति अपनाती है | सरकार आंदोलन करने वाले संगठन को ऐसे ही छोड़ देती है ताकि वह कुछ दिन तक आंदोलन करने के बाद थक-हार कर स्वयं ही आंदोलन को वापस ले ले |
#तृतीय_चरण :-
जब यह दोनों हथियार अचूक हो जाता है,तब आंदोलन को तीतर-बीतर करने के लिए सरकार द्वारा नियंत्रित इन संगठनो का आंदोलन में प्रवेश होता है | जैसे ही ये संगठन आंदोलन की घोषणा करते हैं, उसी दिन से प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इसे जबरदस्त स्थान दिया जाता है, जिससे कि आमलोगो व आम शिक्षको को लगे कि इसी संगठन ने इतना बड़ा आंदोलन खड़ा किया है | लझेदार व मनमोहक भाषन से यह आम नियोजित शिक्षक को यह विश्वास दिलाने में सफल हो जाते है कि यही निजोजितो के सबसे बड़े हितैषी है |
#चौथा_व_अंतिम_चरण :-
यह चरण आंदोलन के क्लाईमैक्स का होता है | अब ये सरकार से वार्ता का खेल शुरु करते है और अपने पहले से तय ऐजेडें के अनुसार आंदोलन को वापस लेने की घोषणा करते है | आंदोलन समाप्त होने के घोषणा के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक चैनलो पर Big Braking बनता है कि " शिक्षको का आंदोलन हुआ समाप्त ".....इस समाचार को इस प्रकार फ्लैश किया जाता है कि जैसे सभी संगठन ने ही अपने आंदोलन को खत्म कर दिया है,और इस प्रकार नियोजित शिक्षको के आंदोलन का क्रिया-कर्म कर दिया जाता है |
अब हमे सोचना है कि आगे हम सभी अपनी लड़ाई को कैसे लड़े.......... प्रतिक्रिया अपेक्षित है
आपका
राजेन्द्र कुमार
माध्यमिक शिक्षक, सीतामढ़ी