पटना : बिहार में
वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तीन लाख से
ज्यादा नियोजित शिक्षकों, संविदा कर्मियों व पुस्तकालयाध्यक्षों को सातवां
वेतनमान का लाभ नहीं देने के निर्णय का विरोध किया है. उन्होंने कहा कि
सरकार का यह बयान निंदनीय है कि वे उसके कर्मी नहीं हैं. सरकार ने 2015 में
ही उनके नियत वेतन को वेतनमान में परिवर्तित कर दिया था. राज्य सरकार के
कर्मियों के अनुरूप घोषित महंगाई, चिकित्सा, मकान किराया भत्ता आदि के साथ
ही वार्षिक वेतन वृद्धि भी उन्हें देय है, तब फिर सातवें वेतनमान का लाभ
नहीं देने का क्या औचित्य है. सातवें वेतनमान का लाभ देने के डर से सरकार
लाखों नियोजित शिक्षकों व संविदाकर्मियों को इनकी अलग–अलग नियोजन इकाइयां
होने का बहाना बना रही है.
विगत विधानसभा चुनाव के पूर्व चुनावी
लाभ लेने के लिए इन्हें वेतनमान देने की जोर-शोर से घोषणा की गयी थी. अगर
ये सरकार के कर्मी नहीं हैं, तो फिर इन्हें राज्यकर्मियों की भांति
वेतनमान, अनेक तरह के भत्तों की सुविधा और वार्षिक वेतनवृद्धि कैसे देय है.
उन्होंने कहा कि वेतन समिति राज्यकर्मियों के समान ही नियोजित शिक्षकों,
संविदा कर्मियों व विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों के हजारों कर्मचारियों
के साथ ही नगर निकायों के कर्मियों को भी सातवें वेतनमान का लाभ देने पर
विचार करे.