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एनजीओ को तीन साल के लिए मिलेगा मिड डे मील का काम

पटना. मध्याह्न भोजन योजना में एनजीओ की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार नियमों में बदलाव करेगी। स्कूल स्तर पर खाना तैयार किए जाने से शिक्षकों को परेशानी होती है। शिक्षा विभाग का कहना है कि अधिक एनजीओ अगर इस कार्य में आएंगे, तो स्कूलों में चूल्हा जलाने की जरूरत नहीं होगी।

अभी इस योजना में एनजीओ की भागीदारी नगण्य है। पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में सबसे अधिक करीब 182 सेंट्रलाइज्ड किचन के माध्यम से बच्चों को मध्याह्न भोजन परोसा जाता है। दूसरे स्थान पर कर्नाटक है। बिहार में सेंट्रलाइज्ड किचन लगाने वालों को हर वर्ष अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के लिए जिला शिक्षा कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है। इसके अलावा नियमों में कड़ाई के कारण भी गैर सरकारी संस्थाएं इस कार्य में हाथ नहीं डाल रही हैं। अब इस स्थिति में बदलाव की योजना तैयार की जा रही है।
शिक्षा मंत्री डाॅ. अशोक कुमार चौधरी ने बताया कि विभाग एक प्रस्ताव लाने की तैयारी में है कि सेंट्रलाइज्ड किचन का सेटअप लगाने वाली एजेंसी को कम से कम तीन साल तक काम करने का मौका दिया जाए। उन्हें पांच वर्ष तक भी कार्य सौंपा जा सकता है। इससे करोड़ों की लागत से सेंट्रलाइज्ड किचन लगाने वाली संस्थाओं में असुरक्षा का भाव नहीं रहेगा।
सोशल ऑडिट होगा
एनजीओ द्वारा बच्चों को परोसे जाने वाले भोजन का सोशल ऑडिट होगा। इसके अलावा विभागीय पदाधिकारी भी समय-समय पर स्वयं खाना चखेंगे व प्लांट का मुआयना करेंगे। वे जांच करेंगे कि सरकार द्वारा निर्धारित पोषक तत्वों की आपूर्ति संबंधित एजेंसी द्वारा हो रही है या नहीं।
मंत्री ने माना कि इस कार्यक्रम के लागू होने से शिक्षकों का दायित्व केवल पढ़ाने तक सीमित हो जाएगा। सरकार शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्य से अलग करने के लिए इस प्रकार की योजनाओं को अंतिम रूप देने में जुटी हुई है। विभाग का भी मानना है कि नियम में बदलाव होने से निश्चित तौर पर स्थिति में सुधार होगा।
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