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यहां प्राइवेट स्कूलों पर क्यों भारी हैं 'सरकारी'?

सरकारी स्कूलों में शिक्षण की बिगड़ती हालत किसी से छिपी नहीं है. यही वजह है कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. मगर इसके ठीक विपरीत छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी बहुल राज्य में प्राइवेट स्कूलों के नेटवर्क को तोड़ हुए कुछ सरकारी शिक्षक कमाल कर रहे हैं.
लिहाजा शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में उन्होंने प्राइवेट को पीछे छोड़ दिया है. प्राइवेट पर भारी ऐसे ही सरकारी स्कूलों की कहानी:

1. छत्तीसगढ़ का एकमात्र ग्रामीण स्कूल जिसे मिला आईएसओ सर्टिफिकेट

प्रदेश की राजधानी रायपुर से 12 किलोमीटर दूर है- डूमरतराई गांव का हाई सेकेंडरी शासकीय स्कूल. यहां प्रवेश लेने के लिए बच्चे निजी स्कूल छोड़ रहे हैं. वजह है कि यहां का प्रबंधन और शिक्षा की गुणवत्ता प्राइवेट स्कूल से कहीं बेहतर है. आमतौर पर सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से कमतर आंका जाता है, लेकिन यह प्रदेश का पहला सरकारी स्कूल है जो आईएसओ 9001:2008 सर्टिफाइड है. जी हां, और ऐसा संभव हुआ यहां के शिक्षकों की अथक प्रायसों से.
इनकी बदौलत स्कूल ने देशभर में नाम कमाया है. स्कूल के प्राचार्य आरएन त्रिवेदी बताते हैं कि शिक्षकों की मेहनत के कारण आज यह दिन देख रहे हैं. हमें अपने स्कूल पर गर्व है. आईएसओ सर्टिफिकेट हासिल करने के बाद इस उपलब्धि को संजोकर रखने की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई है. आईएसओ के निर्धारित मापदंडों को पूरा करने के लिए यहां शिक्षक समय की परवाह नहीं करते.
कार्यालयीन समय के बाद भी यहां शिक्षक कमजोर बच्चों को आगे बढ़ाने की जिद में घर-परिवार भूल जाते हैं. छात्रों के एक दिन की अनुपस्थिति पर यहां पूरा स्टॉक इसके कारण तलाशने में जुट जाता है. इसकी सूचना बच्चोंके माता-पिता को दी जाती है. ऐसे बच्चों की बेहतर काउंसिलिंग की जाती है. यदि उन्हें स्कूल आने में परेशानी है या कोई विषय कठिन या उबाऊ लग रहा हो तो इसे मनोरंजक बनाने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता

2. इलाके में बंद हो गए प्राइवेट स्कूल

यह है आदिवासी बहुत कवर्धा जिले के ग्राम कान्हाभैरा की प्राथमिक शासकीय शाला. भारत के हर ग्राम पंचायत के लिए यह स्कूल एक मिसाल है. वजह यह कि स्कूल भवन और इसके भीतर सुविधाएं भी ऐसी हैं कि राजधानी रायपुर के अच्छे-अच्छे प्राइवेट स्कूल मात खा जाए. पढ़ाई के मामले में भी ऐसा कि यहां के बच्चे बीते दो साल से प्रदेश के टॉपर बच्चों में शामिल हो रहे हैं.
यहां के पालकों ने दो साल पहले फैसला किया कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही पढ़ाएंगे. इसलिए सभी बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढऩे जाते हैं. नतीजा यह है यहां प्राइवेट स्कूल बंद हो गए. एेसा हुआ है प्रधान-पाठक अश्विनी पाण्डेय, स्कूल प्रबंधक और पंचायत प्रतिनिधियों के आपसी तालमेल से. कान्हाभैरा के प्राथमिक शाला  में वर्ष 2014-15 में 77 बच्चे अध्ययनरत थे, जो बढ़कर 146 हो गए हैं.
प्रधान-पाठक अश्विनी पाण्डेय बताते हैं कि उनके के अलावा तीन पंचायत शिक्षक हैं. पढ़ाई में किसी तरह की अड़चन न आए, इसके लिए दो शिक्षक जनभागीदारी समिति द्वारा नियुक्त किए गए हैं. बच्चों के लिए पढ़ाई की गुणवत्ता से किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाता है.
यह स्कूल 3 एकड़ में फैला है. साथ में पूर्व माध्यमिक स्कूल भी है. यह स्कूल इसलिए भी खास है कि परिसर में उगाई गईं सब्जियों से ही बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन बनता है. करीब एक एकड़ जमीन पर बागवानी की जाती है. पंचायत द्वारा एक माली की भी व्यवस्था भी की गई है.

3. यहां बच्चे कंप्यूटर, प्रोजेक्टर और इंटरनेट के जरिए पढ़ते हैं

यह स्थिति थोड़ी हैरान करने वाली है. बालोद जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी की दूरी पर शासकीय प्राइमरी स्कूल कापसी का स्कूल डिजिटल स्कूल के नाम से पहचाना जाता है. यहां कंप्यूटर, प्रोजेक्टर और इंटर नेट के जरिए महज 4-5वीं के बच्चे पढ़ते दिखाई देते हैं.
स्कूल के प्रधान पाठक को स्मार्ट क्लास और बस्ता मुक्त विद्यालय के लिए कई बार पुरुस्कृत किया जा चुका है. इसके अलावा मुख्यमंत्री शिक्षा अलंकरण सम्मान भी मिल चुका है. प्राथमिक शाला में अध्ययनरत कक्षा चौथी और पांचवीं के बच्चे 30 तक पहाड़ा फर्राटेदार सुनाते हैं. पहली व तीसरी कक्षा के बच्चे ठीक-ठाक अंग्रेजी में बात करते हैं. ऐसाहै तो इसका श्रेय यहां के शिक्षकों को जाता है. अब तक 32 से ज्यादा अविभावक अपने बच्चों के नाम प्राइवेट से कटवाकर शासकीय स्कूल कापसी में जुटवा चुके हैं. इस वर्ष स्कूल में बच्चों की तादाद 62 से बढ़कर 94 हो गई है.

स्कूल के प्रधान पाठक को स्मार्ट क्लास और बस्ता मुक्त विद्यालय के लिए कई बार पुरुस्कृत किया जा चुका है. इसके अलावा मुख्यमंत्री शिक्षा अलंकरण सम्मान भी मिल चुका है. प्राथमिक शाला में अध्ययनरत कक्षा चौथी और पांचवीं के बच्चे 30 तक पहाड़ा फर्राटेदार सुनाते हैं. पहली व तीसरी कक्षा के बच्चे ठीक-ठाक अंग्रेजी में बात करते हैं. ऐसाहै तो इसका श्रेय यहां के शिक्षकों को जाता है. अब तक 32 से ज्यादा अविभावक अपने बच्चों के नाम प्राइवेट से कटवाकर शासकीय स्कूल कापसी में जुटवा चुके हैं. इस वर्ष स्कूल में बच्चों की तादाद 62 से बढ़कर 94 हो गई है.प्रधान पाठक अमित सिन्हा स्कूल में सकारात्क बदलाव के लिए शांताराम अटल, नीलकमल ठाकुर और धारणा पटेल को थैक्यू बोलते हैं. 1990 से 2014 तक स्कूल का स्तर धीरे-धीरे गिरता जा रहा था. इसके बाद 2014 में शिक्षक अमित कुमार श्रीवास्तव ने स्कूल को संवारने पहल की और अपने खर्च पर एक कंप्यूटर यहां लाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इसके बाद लोगों का नजरिया ही बदल गया. शाला प्रबंधन समिति, ग्राम पंचायत व शिक्षकों के बीच स्कूल की दशा सुधारने चर्चा हुई. पालकों ने भी सहयोग किया और आज स्कूल की तस्वीर बदल गई.     
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