समस्तीपुर। शिक्षक देश के भविष्य का निर्माता होता है। युवाओं का पथ
प्रदर्शक होता है। समाज में उच्च आदर्शों को स्थापित करने वाला वह मापदण्ड
होता है जिसके बताये गये मार्ग पर चलकर कई मानक स्थापित किये जाते हैं।
शिक्षक से ही समाज, सूबे और देश को नई दिशा मिलती है।
इतना ही नहीं पूरे राष्ट्र को नई प्रतिभाओं को यह शिक्षक सौंप कर उन्हें नये दायित्व देने के लिए तैयार करता है, किन्तु हमारे यहां शिक्षक के भविष्य के विषय में न तो सरकारें सोचती है और न ही समाज के लोग ही शिक्षकों के प्रति उचित सम्मान रखते हैं। और तो और सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षकों को प्रति लोगों का नजरिया ही अब बदल गया है। इसकी जड़ में कौन है? यह भले ही विश्लेषण का विषय अवश्य हो किन्तु उपेक्षित स्थिति में शिक्षक समाज और देश की सेवा किन परिस्थितियों में करेंगे अब यह विचारनीय प्रश्न हो चुका है। शिक्षकों को यहां की व्यवस्था ने शिक्षक रहने नहीं दिया। विद्यालय में एमडीएम का दबाव तो शिक्षण व्यवस्था को चकनाचूर कर चुका है। इतना ही नहीं शिक्षकों को शिक्षण कार्य से हटाकर दफ्तरों में प्रतिनियुक्ति कर छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। शिक्षकों को विद्यालय में कई सूचनाएं एकत्र कर प्रत्येक माह दफ्तरों तक पहुंचाने की जवाबदेही दी जाती है। क्षेत्र के कई शिक्षकों ने बताया कि पोशाक, छात्रवृति, साईकिल, नेपकिन आदि के वितरण, लाभुक छात्रों की सूची, वितरण का ब्यौरा आदि बनाकर इसे नियत समय पर संबंधित कार्यालय तक पहुंचाना और इन योजनाओं के तहत वितरण कार्य सुनिश्चित करना अब शिक्षकों की जवाबदेही बन गई है। ऐसे कई महत्वपूर्ण कार्य है। जिन्हें पूरा न किये जाने पर उन्हें दण्डित कर न सिर्फ उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है बल्कि प्रशासन के इस कदम से शिक्षक आत्मग्लानि में हमेशा डूबे रहते हैं। मतदान कार्य तो बिना शिक्षकों के होता ही नहीं। साल में कई माह निर्वाचन से संबंधित कार्य में उलझे रहते हैं, जनगणना को बोझ अलग। बावजूद इसके वेतन नियमित नहीं मिलता। शिक्षकों में भी भेदभाव की स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब समान कार्य कराने के बावजूद अलग-अलग वेतन दिये जाते हैं। विद्यालय भी संसाधन विहिन होता है। पुस्तके समय से छात्रों को नहीं दी जाती। शिक्षकों के प्रति समाज में असम्मान और वेतन के नाम पर चंद हजार रूपये से शिक्षक अब सर उठाकर रहने में सक्षम नहीं हो पा रहे। स्थिति यह बन गई है कि अपनी सततियों को फिर से वे शिक्षक बनने की प्रेरणा नही देते। आखिर देश का भविष्य कौन गढ़ेगा, यदि शिक्षकों की स्थिति ऐसी ही रही।
शिक्षक बोले
फोटो :: 02 एसएएम 02
शिक्षकों की समस्याओं और उनके नियमित वेतन के प्रति सरकार का रवैया निराशाजनक रहा है। जबतक शिक्षकों को सम्मानपूर्वक सेवा शर्तों के साथ नियमित वेतन का भुगतान नहीं होगा, शिक्षा की स्थिति में सुधार की गुंजाइश नगण्य है।
- श्रवण कुमार
फोटो :: 02 एसएएम 03
काम का दबाव इतना रहता है कि छात्रों को शिक्षक भरपूर समय देकर पढ़ाना भी चाहते हैं तो उसमें कई प्रकार के व्यवधान उत्पन्न हो जाते हैं। शिक्षकों को कार्यालय, निर्वाचन, जनगणना व अन्य कार्यों से यदि मुक्त कर दिया जाय तो पढ़ाई कि सु²ढ़ व्यवस्था हो सकेगी।
- अशोक कुमार चौधरी
फोटो :: 02 एसएएम 04
विद्यालयों में और संसाधन बढ़ाये जाने चाहिए। साथ ही छात्रों के लिए और कई ऐसी योजनाएं चलाकर उन्हें शिक्षा के प्रति अभिरूचि पैदा करनी चाहिए ताकि छात्र पढ़े और गुरू अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें।
- संजीव कुमार जायसवाल
फोटो :: 02 एसएएम 05
विद्यालयों में लगातार अन्य शिक्षकों के बराबर सभी शिक्षक कार्य करते हैं, फिर भी अलग-अलग वेतन शिक्षकों को हतोत्साहित करता है। सरकार इसके लिए पहल करें।
- नीतीश कुमार
फोटो :: 02 एसएएम 06
सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर शिक्षकों को सम्मान मिलना चाहिए, इसके लिए शिक्षक के कई ऐसे दायित्व हैं जिनका निर्वहन वे इमानदारी पूर्वक करें। शिक्षा का भविष्य शिक्षकों के सम्मान और छात्रों के प्रति शिक्षकों के इमानदारी पूर्वक दायित्व निर्वहन से संभव है।
- धर्मेन्द्र कुमार मिश्र
छात्रों की प्रतिक्रियाएं
फोटो :: 02 एसएएम 07
एसएस कॉलेज का छात्र सौरभ बताता है कि शिक्षक के द्वारा उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और छात्रों के भविष्य के प्रति शिक्षक इमानदारी पूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
फोटो :: 02 एसएएम 08
12वीं की छात्र सेतु नमन का मानना है कि शिक्षकों का सम्मान ही ईश्वर की पूजा है। मां-बाप भले ही अंगुली पकड़कर चलना सिखलाते हैं किन्तु शिक्षक जीवन के कठिन राहों पर दौड़ाना सिखलाते हैं।
फोटो :: 02 एसएएम 09
छात्रा ज्योति बताती हैं कि तकनीक भले ही काफी आगे बढ़ जाय किन्तु शिक्षक से प्राप्त ज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।
फोटो :: 02 एसएएम 10
इंटर की छात्रा अंजलि बताती है कि इनटनेंट वे टेक्नोलॉजी से भले ही हमें ज्ञान प्राप्त हो सकता है किन्तु शिक्षकों से ज्ञान के अतिरिक्त संस्कार भी प्राप्त होता है।
फोटो :: 02 एसएएम 11
पटोरी की छात्रा कनक का मानना है कि शिक्षक के बिना ज्ञान अधूरा है। एक शिक्षक सम्पूर्ण व्यक्तित्व और समाज का निर्माता होता है।फोन इनसरकार की नीतियां ही गलत है। वेतन समय से नहीं मिलता है। जबतक शिक्षक भूखा है। ज्ञान का सागर सूखा है। एमडीएम के कारण हमारी एक शिक्षिका को आज कारावास की सजा भुगतनी पड़ रही है। यदि सचमुच सरकार शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना चाहती है तो उसे शिक्षकों को ससमय भुगतान और एमडीएम से अलग रखने की व्यवस्था करनी होगी।
दयानंद कुमारक.प्रा. वि, बलुआही मोहिउद्दीनगर।
आप भी अपनी प्रतिक्रिया हमें मोबाइल नंबर 9431883544 पर दे सकते हैं या फिर हमारे मेल आईडी पर भेज सकते हैं।
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इतना ही नहीं पूरे राष्ट्र को नई प्रतिभाओं को यह शिक्षक सौंप कर उन्हें नये दायित्व देने के लिए तैयार करता है, किन्तु हमारे यहां शिक्षक के भविष्य के विषय में न तो सरकारें सोचती है और न ही समाज के लोग ही शिक्षकों के प्रति उचित सम्मान रखते हैं। और तो और सरकारी विद्यालयों और महाविद्यालयों के शिक्षकों को प्रति लोगों का नजरिया ही अब बदल गया है। इसकी जड़ में कौन है? यह भले ही विश्लेषण का विषय अवश्य हो किन्तु उपेक्षित स्थिति में शिक्षक समाज और देश की सेवा किन परिस्थितियों में करेंगे अब यह विचारनीय प्रश्न हो चुका है। शिक्षकों को यहां की व्यवस्था ने शिक्षक रहने नहीं दिया। विद्यालय में एमडीएम का दबाव तो शिक्षण व्यवस्था को चकनाचूर कर चुका है। इतना ही नहीं शिक्षकों को शिक्षण कार्य से हटाकर दफ्तरों में प्रतिनियुक्ति कर छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। शिक्षकों को विद्यालय में कई सूचनाएं एकत्र कर प्रत्येक माह दफ्तरों तक पहुंचाने की जवाबदेही दी जाती है। क्षेत्र के कई शिक्षकों ने बताया कि पोशाक, छात्रवृति, साईकिल, नेपकिन आदि के वितरण, लाभुक छात्रों की सूची, वितरण का ब्यौरा आदि बनाकर इसे नियत समय पर संबंधित कार्यालय तक पहुंचाना और इन योजनाओं के तहत वितरण कार्य सुनिश्चित करना अब शिक्षकों की जवाबदेही बन गई है। ऐसे कई महत्वपूर्ण कार्य है। जिन्हें पूरा न किये जाने पर उन्हें दण्डित कर न सिर्फ उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है बल्कि प्रशासन के इस कदम से शिक्षक आत्मग्लानि में हमेशा डूबे रहते हैं। मतदान कार्य तो बिना शिक्षकों के होता ही नहीं। साल में कई माह निर्वाचन से संबंधित कार्य में उलझे रहते हैं, जनगणना को बोझ अलग। बावजूद इसके वेतन नियमित नहीं मिलता। शिक्षकों में भी भेदभाव की स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब समान कार्य कराने के बावजूद अलग-अलग वेतन दिये जाते हैं। विद्यालय भी संसाधन विहिन होता है। पुस्तके समय से छात्रों को नहीं दी जाती। शिक्षकों के प्रति समाज में असम्मान और वेतन के नाम पर चंद हजार रूपये से शिक्षक अब सर उठाकर रहने में सक्षम नहीं हो पा रहे। स्थिति यह बन गई है कि अपनी सततियों को फिर से वे शिक्षक बनने की प्रेरणा नही देते। आखिर देश का भविष्य कौन गढ़ेगा, यदि शिक्षकों की स्थिति ऐसी ही रही।
शिक्षक बोले
फोटो :: 02 एसएएम 02
शिक्षकों की समस्याओं और उनके नियमित वेतन के प्रति सरकार का रवैया निराशाजनक रहा है। जबतक शिक्षकों को सम्मानपूर्वक सेवा शर्तों के साथ नियमित वेतन का भुगतान नहीं होगा, शिक्षा की स्थिति में सुधार की गुंजाइश नगण्य है।
- श्रवण कुमार
फोटो :: 02 एसएएम 03
काम का दबाव इतना रहता है कि छात्रों को शिक्षक भरपूर समय देकर पढ़ाना भी चाहते हैं तो उसमें कई प्रकार के व्यवधान उत्पन्न हो जाते हैं। शिक्षकों को कार्यालय, निर्वाचन, जनगणना व अन्य कार्यों से यदि मुक्त कर दिया जाय तो पढ़ाई कि सु²ढ़ व्यवस्था हो सकेगी।
- अशोक कुमार चौधरी
फोटो :: 02 एसएएम 04
विद्यालयों में और संसाधन बढ़ाये जाने चाहिए। साथ ही छात्रों के लिए और कई ऐसी योजनाएं चलाकर उन्हें शिक्षा के प्रति अभिरूचि पैदा करनी चाहिए ताकि छात्र पढ़े और गुरू अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें।
- संजीव कुमार जायसवाल
फोटो :: 02 एसएएम 05
विद्यालयों में लगातार अन्य शिक्षकों के बराबर सभी शिक्षक कार्य करते हैं, फिर भी अलग-अलग वेतन शिक्षकों को हतोत्साहित करता है। सरकार इसके लिए पहल करें।
- नीतीश कुमार
फोटो :: 02 एसएएम 06
सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर शिक्षकों को सम्मान मिलना चाहिए, इसके लिए शिक्षक के कई ऐसे दायित्व हैं जिनका निर्वहन वे इमानदारी पूर्वक करें। शिक्षा का भविष्य शिक्षकों के सम्मान और छात्रों के प्रति शिक्षकों के इमानदारी पूर्वक दायित्व निर्वहन से संभव है।
- धर्मेन्द्र कुमार मिश्र
छात्रों की प्रतिक्रियाएं
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एसएस कॉलेज का छात्र सौरभ बताता है कि शिक्षक के द्वारा उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और छात्रों के भविष्य के प्रति शिक्षक इमानदारी पूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।
फोटो :: 02 एसएएम 08
12वीं की छात्र सेतु नमन का मानना है कि शिक्षकों का सम्मान ही ईश्वर की पूजा है। मां-बाप भले ही अंगुली पकड़कर चलना सिखलाते हैं किन्तु शिक्षक जीवन के कठिन राहों पर दौड़ाना सिखलाते हैं।
फोटो :: 02 एसएएम 09
छात्रा ज्योति बताती हैं कि तकनीक भले ही काफी आगे बढ़ जाय किन्तु शिक्षक से प्राप्त ज्ञान के द्वारा ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।
फोटो :: 02 एसएएम 10
इंटर की छात्रा अंजलि बताती है कि इनटनेंट वे टेक्नोलॉजी से भले ही हमें ज्ञान प्राप्त हो सकता है किन्तु शिक्षकों से ज्ञान के अतिरिक्त संस्कार भी प्राप्त होता है।
फोटो :: 02 एसएएम 11
पटोरी की छात्रा कनक का मानना है कि शिक्षक के बिना ज्ञान अधूरा है। एक शिक्षक सम्पूर्ण व्यक्तित्व और समाज का निर्माता होता है।फोन इनसरकार की नीतियां ही गलत है। वेतन समय से नहीं मिलता है। जबतक शिक्षक भूखा है। ज्ञान का सागर सूखा है। एमडीएम के कारण हमारी एक शिक्षिका को आज कारावास की सजा भुगतनी पड़ रही है। यदि सचमुच सरकार शिक्षा व्यवस्था को कारगर बनाना चाहती है तो उसे शिक्षकों को ससमय भुगतान और एमडीएम से अलग रखने की व्यवस्था करनी होगी।
दयानंद कुमारक.प्रा. वि, बलुआही मोहिउद्दीनगर।
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