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टॉपर्स घोटाला : एक बिहारी ने लिखा सीएम नीतीश कुमार को ऐसा पत्र, सामने आई शिक्षा व्‍यवस्‍था की सच्‍चाई..!

मुझे बिहारी होने का गर्व है और वास्तव में मैं बिहार में पैदा होकर गौरवान्वित महसूस करता हूं। जब भी मैं अपने शहर और राज्य के बारे में गहन चिंतन करता हूं, और मुझे इनके बारे में कुछ भी अनुपयुक्त दिखाई देता है, तो मैं व्यक्तिगत रूप से आहत होता हूं।
जब आपने पहली बार राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली थी, उस वक्त आपकी राजनीतिज्ञता एवं शासन कला ने राज्य के अंदर या बाहर रहने वाले हर बिहारी की अपेक्षाओं को ऊपर उठाया था।

आपके दूसरे कार्यकाल में लोग वास्तविक परिवर्तन की अपेक्षा कर रहे थे। आपके कार्यकाल के कई ऐसे पहलू हैं, जिनपर हम घंटों तक बहस और चर्चा कर सकते हैं, लेकिन फिर भी मैं बिहार की शिक्षा व्यवस्था की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं।

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मैं एक दिन बदलाव की रोशनी का प्रत्यक्षदर्शी होना चाहता हूं, जिसके लिए मैं बिना थके इंतजार कर रहा हूं। आपके दूसरे कार्यकाल के दौरान निरंतर अवनति की शुरुआत हुई, और आपके तीसरे कार्यकाल के दौरान कभी महान प्राचीन विश्वविद्यालयों का एक राज्य, जिसकी मैं व्यक्तिगत रूप से अराधना करता हूं, आज पूरे विश्व में एक मजाक बनकर रह गया है। महोदय, मेरे राज्य के इतने अपमान के बाद, खास तौर पर शिक्षा व्यवस्था के दर्पमर्दन के पश्चात मैंने आपको यह पत्र लिखने का निर्णय लिया।

गत वर्ष हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान मैंने पहली बार अपने राज्य के घोर अपमान को महसूस किया। एक सुबह मैंने न्यूयॉर्क टाइम्स में परीक्षा में कदाचार विवाद की एक बड़ी सी तस्वीर देखी। इस तस्वीर ने मुझे 80 के दशक में बोर्ड परीक्षाओं की स्थिति की याद दिला दी, जिस दौर में मैंने परीक्षा में भाग लिया था और उस वक्त की स्थिति ने मुझे कागज के एक टुकड़े पर अपने आक्रोश को व्यक्त करने हेतु प्रेरित किया था। यदि एक शिक्षा-प्रणाली गुणवत्ता युक्त शिक्षा प्रदान करने में सक्षम होती, तो छात्रों और उनके अभिभावकों को इस प्रकार के कदाचार का मुंहतोड़ जवाब नहीं देना पड़ता।

मैंने सोचा कि, गत वर्ष पूरे विश्व के समक्ष इस प्रकार की छवि बनने के बाद आपकी सरकार शिक्षा में सुधार को गंभीरता से लेगी, परंतु इस वर्ष भी बिहार शिक्षा बोर्ड ने मेधावी छात्रों को आगे लाने के बजाय एक नए घोटाले को जन्म दिया। हमारे मूल्यों का पतन हुआ और हमारे महान राज्य की छवि निरंतर अपकृष्ट होती चली गई।

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हाल ही में मैंने अपने शहर कटिहार का दौरा किया, जो एक ऐसा स्थान है जिसे मैं पृथ्वी पर मौजूद किसी भी अन्य स्थान से अधिक प्यार करता हूं। मेरे मन में हमेशा से सरकारी स्कूलों और कॉलेजों के बारे में अधिक जानने की जिज्ञासा और कौतुहल का भाव रहता है। इस दौरान मैंने माहेश्वरी अकादमी का दौरा किया, जो मेरे बचपन के दिनों में जिले के सर्वश्रेष्ठ और सबसे सुंदर स्कूलों में से एक हुआ करता था। झाड़ियों, घास और चारों ओर जल भराव से घिरे स्कूल परिसर में आकर मुझे यह अहसास हुआ कि, इस विद्यालय का आकर्षण पूरी तरह नष्ट हो चुका है। तभी मेरी नजर विज्ञान प्रयोगशाला की इमारत से संलग्न संगमरमर के एक पत्थर पर पड़ी, जिसका आपने वर्ष 2007 में उद्घाटन किया था। यह ब्लॉक पूरी तरह से एक परित्यक्त इमारत प्रतीत हो रही थी।

रोचक बात यह है कि, जिला शिक्षा अधिकारी का कार्यालय विज्ञान प्रयोगशाला भवन के बिल्कुल विपरीत स्थित है। मुझे पूरी उम्मीद है कि डीईओ साहब ने कभी विज्ञान प्रयोगशाला के इमारत की हालत को देखने के बारे में सोचा भी नहीं होगा।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि, विज्ञान भवन के दूसरे हिस्से में जिला शिक्षा शिकायत सेल ने हमेशा के लिए एकाधिकार स्थापित कर लिया है। मैंने इस विद्यालय में जो कुछ भी देखा, वह मेरे लिए विस्मयकारी था। माध्यमिक स्तर के लगभग ग्यारह सौ छात्रों के लिए केवल दस शिक्षक हैं और उच्च माध्यमिक कक्षा के छात्रों के लिए नियमित अध्यापकों का अभाव है। विगत दो वर्षों में कोई नई नियुक्ति नहीं की गई है, और छात्र अपनी बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी के लिए सेवानिवृत्त शिक्षकों को फीस का भुगतान करते हैं।

बिहार आज भी छात्र शिक्षक अनुपात (पीटीआर) के राष्ट्रीय औसत से पीछे है। भारत में पीटीआर का औसत 26 है — जबकि हम आधिकारिक तौर पर इस औसत के दोगुने, अर्थात 51 पर मौजूद हैं। पीटीआर की उच्च दर के साथ-साथ हमारे सरकारी स्कूलों में नियुक्त किए जाने वाले शिक्षकगण भी अर्हता प्राप्त नहीं हैं। केवल 44% शिक्षकों के पास पेशेवर डिग्री उपलब्ध है — और इस मामले में भी हम 80% के राष्ट्रीय औसत से पीछे हैं।

हमारे छात्रों पर समुचित ध्यान नहीं दिए जाने की यह स्थिति अत्यंत खतरनाक है, और इसके साथ-साथ जिन शिक्षकों पर हम अपने राज्य के भविष्य हेतु भरोसा कर रहे हैं, वे भी राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं हैं, और जब हम छात्रों के आधी संख्या के दसवीं कक्षा परीक्षा उत्तीर्ण करने पर विचार करते हैं, तो निश्चित तौर पर यह एक कारक के तौर पर उभरकर सामने आता है।

महोदय, आपने ही हजारों लड़कियों को साइकिल उपलब्ध कराके उन्हें उच्च विद्यालय में अध्ययन के लिए प्रेरित किया है, और आपके इस कदम से उनकी उपस्थिति में वृद्धि हुई एवं विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों में कमी आई, लेकिन आज भी एक तिहाई से अधिक विद्यालयों में लड़कियों के लिए शौचालयों का अभाव है। जरा सोचिए, अगर लड़कियों के लिए अध्ययन हेतु अनुकूल वातावरण एवं बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होंगी, तो वे विद्यालयों में किस प्रकार अध्ययन करेंगी?

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स्कूल जाने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि दस्तावेजों पर शिक्षा व्यवस्था में सुधार प्रतीत हो सकता है, परंतु जब शिक्षा की गुणवत्ता लगभग पूर्णतः अनुपयुक्त हो, तो इन बातों का क्या प्रभाव पड़ता है? कक्षाओं में छात्रों के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराने हेतु दो लाख से अधिक नए कक्षाओं के निर्माण की जरूरत है। किस स्थिति में आपको ऐसा लगता है कि, एक तंगहाल और हवा एवं प्रकाश रहित कक्षाओं में विभिन्न वर्गों के छात्रों को अध्ययन के लिए विवश करना फलदायक या स्वीकार्य हो सकता है?

जब आपकी राज्य सरकार सड़कों के निर्माण में रिकॉर्ड स्थापित कर सकती है और दो कार्यकाल के दौरान बिजली की स्थिति में नाटकीय रूप से सुधार कर सकती है, तो फिर शिक्षा-व्यवस्था के स्वरूप में बदलाव क्यों नहीं किया जा सकता है? वर्तमान स्थिति कुछ इसी प्रकार के विरोधाभास को दर्शाती है: बिजली की अनुपलब्धता के कारण मैंने अपने बचपन के दिनों में केरोसिन लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की थी, और उस वक्त स्कूलों की हालत अपेक्षाकृत बेहतर थी, लेकिन आज जब छात्रों को बिजली की बेहतर सुविधाएं प्राप्त हैं, तो उनके स्कूलों की स्थिति दयनीय हो चुकी है।

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महोदय, क्या आपको लगता है कि सरकारी विद्यालयों की इस दयनीय स्थिति से हमारे राज्य की उन्नति हो पाएगी और क्या इससे भविष्य में अमीर-गरीब के बीच के अंतर को कम करने में मदद मिलेगी? जब होनहार छात्र अपने राज्य को छोड़कर किसी अन्य स्थान पर योगदान करने हेतु विवश हो, तो क्या ऐसे में बदलाव संभव है? सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को तत्काल मरम्मत की आवश्यकता है। शिक्षा को कार्यसूची में प्रथम स्थान दिए जाने और इस विषय पर निरंतर एवं गहन चिंतन की आवश्यकता है।

यदि आप बिहारियों की क्षमता के दोहन के प्रति अत्यंत गंभीर हैं, तो आपको शिक्षा को अपनी पहली प्राथमिकता बनानी होगी। जीवन कौशल के साथ एकीकृत बेहतर शिक्षा प्रणाली ही प्राथमिक विद्यालय से लेकर कॉलेज स्तर तक छात्रों को राज्य के भीतर अपनी शिक्षा पूर्ण करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। निश्चित तौर पर बेहतर शिक्षित व्यक्ति राज्य के नाम को शर्मसार करने के कारोबार से बाहर निकलना पसंद करेंगे। यदि किसी छात्र को परीक्षा का सामना करने के लिए पूरी तन्मयता से पढ़ाया जाए, तो वह कदाचित छलपूर्वक एवं मिथ्या डिग्री प्राप्त करने का प्रयास नहीं करेगा।

महोदय, मेरे विचारानुसार विद्यालय समितियों में छात्रों के माता-पिता को शामिल किया जाना चाहिए और अभिभावक-शिक्षक के बीच पारस्परिक संवाद में सुधार किया जाना चाहिए। मेरे विचारानुसार इन समितियों का मार्गदर्शन राजनेताओं द्वारा किया जाना, न्यायसंगत नहीं है।

आप स्वयं भी उच्च शिक्षा प्राप्त शख़्सियत हैं; इसलिए मुझे उम्मीद है कि आप हमारे युवा महत्वाकांक्षी लड़के और लड़कियों की व्यथा को समझ सकते हैं, जिनके अंदर अपने जीवन को बदलने के सपने और अद्भुत क्षमता है। इसके बावजूद परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण वे निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने अथवा या बेहतर शिक्षा के लिए राज्य से बाहर जाने का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, और वे इस निराशाजनक स्थिति में रहने और आततायी कदम उठाने के लिए विवश हो जाते हैं। ऐसे में केवल हमारे सरकारी विद्यालय और कॉलेज ही उनके सपनों को पंख देने का काम कर सकते हैं, जिससे न केवल छात्रों का भला होगा, बल्कि यह राज्य एवं देश के लिए भी मददगार सिद्ध होगा। परंतु इन संस्थानों के साथ-साथ पूरी शिक्षा प्रणाली को आपके निजी एवं पेशेवर दृष्टिकोण तथा मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

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महोदय, यदि आप वास्तव में बिहार को एक प्रगतिशील राज्य के तौर पर देखना चाहते हैं, भारत के शेष भाग के लिए इसे एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, मानव विकास संकेतकों की सूची में उच्च स्थान पर पहुंचना चाहते हैं, और यदि आपको वास्तव में बिहार के लोगों तथा उनके भविष्य की परवाह है, तो इसके लिए शिक्षा आपकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। राज्य के विकास से संबंधित अन्य उद्देश्यों की पूर्ति स्वतः हो जाएगी।
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