दोपहर बाद तीन से चार बजे तक करनी है कमजोर बच्चों की पढ़ाई
पढ़ाई के नाम पर हो रही खानापूर्ति, विभाग नकेल कसने में नाकाम
सीवान : प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में विषयवार कमजोर बच्चों के लिए प्रदान की जानेवाले रेमेडियल क्लास (विशेष वर्ग व्यवस्था) फाइलों तक सिमट कर रह गयी है. इससे सरकार की महत्वाकांक्षी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की अवधारणा को ठेस पहुंच रही है.
वहीं, दूसरी ओर, वैसे छात्र जो इस दायरे में आते हैं, इससे महरूम हो रहे हैं और वे उस मूलभूत जानकारी को ग्रहण करने में पीछे छूट रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं.
दरअसल, सरकार ने कमजोर बच्चों को पढ़ाने के लिए दोपहर बाद तीन से चार बजे तक रेमेडियल क्लास (विशेष वर्ग व्यवस्था) की व्यवस्था की गयी थी. अनुपालन की जिम्मेवारी प्रखंड में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को सौंपी गयी थी. वहीं, अनुश्रवण की जिम्मेवारी डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान व मॉनीटरिंग की जिम्मेवारी जिला शिक्षा पदाधिकारी को सौंपी गयी थी.
कार्यक्रम चलाने के पीछे सरकार की मंशा वैसे कमजोर छात्रों को अलग से पढ़ाने की थी, जो गणित व भाषा में अन्य छात्रों की अपेक्षा निर्धारित मापदंड से कमजोर हैं. ऐसे छात्रों को समूहवार तालीमी मरकज व टोला सेवकों के सहयोग से विद्यालय में शिक्षकों को पढ़ाना था. परंतु विभागीय सूत्रों की मानें, तो प्रखंड स्तर से लेकर जिला स्तर तक के विभागीय पदाधिकारियों द्वारा विद्यालय निरीक्षण के क्रम में ऐसा कोई भी निर्देश नहीं दिया जाता कि इससे पता चल सके कि कार्यक्रम का संचालन विद्यालयों में किया जाना है.
इसे सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ विद्यालयों में संचालित करना है, ताकि भाषा व गणित के कमजोर बच्चे सामान्य बच्चों की श्रेणी में आ सकें. मौजूदा समय की बात करें, तो तीन बजे के बाद खुद शिक्षक ही विद्यालय से नदारद हो जा रहे हैं. ऐसा रिमोट एरिया में अक्सर देखने को मिल रहा है. इधर, अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बीइओ ने बताया कि इस संबंध में विभाग से कोई सर्कुलर नहीं प्रदान किया गया है.
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वहीं, दूसरी ओर, वैसे छात्र जो इस दायरे में आते हैं, इससे महरूम हो रहे हैं और वे उस मूलभूत जानकारी को ग्रहण करने में पीछे छूट रहे हैं, जिसके वे हकदार हैं.
दरअसल, सरकार ने कमजोर बच्चों को पढ़ाने के लिए दोपहर बाद तीन से चार बजे तक रेमेडियल क्लास (विशेष वर्ग व्यवस्था) की व्यवस्था की गयी थी. अनुपालन की जिम्मेवारी प्रखंड में प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को सौंपी गयी थी. वहीं, अनुश्रवण की जिम्मेवारी डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान व मॉनीटरिंग की जिम्मेवारी जिला शिक्षा पदाधिकारी को सौंपी गयी थी.
कार्यक्रम चलाने के पीछे सरकार की मंशा वैसे कमजोर छात्रों को अलग से पढ़ाने की थी, जो गणित व भाषा में अन्य छात्रों की अपेक्षा निर्धारित मापदंड से कमजोर हैं. ऐसे छात्रों को समूहवार तालीमी मरकज व टोला सेवकों के सहयोग से विद्यालय में शिक्षकों को पढ़ाना था. परंतु विभागीय सूत्रों की मानें, तो प्रखंड स्तर से लेकर जिला स्तर तक के विभागीय पदाधिकारियों द्वारा विद्यालय निरीक्षण के क्रम में ऐसा कोई भी निर्देश नहीं दिया जाता कि इससे पता चल सके कि कार्यक्रम का संचालन विद्यालयों में किया जाना है.
इसे सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ विद्यालयों में संचालित करना है, ताकि भाषा व गणित के कमजोर बच्चे सामान्य बच्चों की श्रेणी में आ सकें. मौजूदा समय की बात करें, तो तीन बजे के बाद खुद शिक्षक ही विद्यालय से नदारद हो जा रहे हैं. ऐसा रिमोट एरिया में अक्सर देखने को मिल रहा है. इधर, अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर एक बीइओ ने बताया कि इस संबंध में विभाग से कोई सर्कुलर नहीं प्रदान किया गया है.
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