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हाईकोर्ट में तीन बड़े मामलों की सुनवाई आज

PATNA : हाईकोर्ट में सोमवार का दिन खास होगा। क्योंकि कई चर्चित मामलों की सुनवाई होनी है। बड़ी बात यह कि आई नेक्स्ट इन मामलों को प्रकाशित करता रहा है। ये वे मामले हैं जिनका बड़ा सरोकार आम लोगों से रहा है। मेडिकल कॉलेजों में सिटी स्कैन मशीन नहीं होने और एनएमसीएच में डॉ संतोष कुमार पर लगे गंभीर आरोप मामले की सुनवाई कोर्ट करेगा।
वहीं फर्जी सर्टिफिकेट पर बहाल शिक्षकों के मामले में विजिलेंस के रवैये पर भी सुनवाई होगी। इस माममें में सीबीआई जांच की मांग जनहित याचिका दायर कर की गई है.

मेडिकल कॉलेजों मे सिटी स्कैन नहीं होने का मामला
मालूम हो कि कई मेडिकल कॉलेजों में सिटी स्कैन मशीन नहीं है। एनएमसीएच में ख्007 में यह मशीन लगी थी। लेकिन वह खराब हो गई। तब से बिना सिटी स्कैन ही इलाज किया जा रहा है। संतोष कुमार सिंह को एनएमसीएच में डिप्टी सुपरीटेंडेंट बना दिया गया। बाद में इंचार्ज सुपरीटेंडेंट भी बना दिया गया। हाईकोर्ट में मामला उठा कि संतोष कुमार सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जित की है और पद का दुरूपयोग करते हुए सब स्टैंडर्ड सिटी स्कैन मशीन की खरीददारी की। इसलिए इनकी संपत्ति की जांच आर्थिक अपराध से कराई जाए या विजिलेंस से कराई जाए। इस मामले में क्भ्- क्ख्- क्भ् को उपसचिव स्वास्थ्य विभाग, निदेशक प्रमुख प्रशासन स्वास्थ्य सेवाएं बिहार को जांच रिपोर्ट समर्पित किया गया।
इसमें अनुशंसा की गई कि
- सीटी स्कैन मशीन की खराबी की जांच किसी स्वतंत्र बायोमेडिकल अभियंता से कराई जाए.
- डॉ संतोष कुमार की आय से अधिक की संपत्ति की जांच आर्थिक अपराध इकाई से कराई जाए। इन तथ्यों की समीक्षा के आलोक में सरकार ने अपने स्तर से डॉ ललित कुमार , विभागाध्यक्ष, रेडियोलॉजी विभाग एनएमसीएच पटना और सीमेंस कंपनी और डॉ संतोष कुमार तत्कालीन उपाधीक्षक के विरूद्ध उपयुक्त कार्रवाई करने की बात कही। लेकिन हुआ यह कि सिर्फ डॉ संतोष कुमार को एनएमसीएच से ट्रांसफर कर दिया गया और इन पर न तो विभागीय कार्रवाई कर दंड दिया गया और न ही आय से अधिक संपत्ति की जांच आर्थिक अपराध से कराई गई।
क्म्- 0ख्- क्म् को हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि साढ़े चार माह में बिहार के जितने भी मेडिकल कॉलेज और हॉस्पीटल हैं में सीटीस्कैन मशीन लगाई जाए। सीटी स्कैन मशीन नहीं लगने के बाद प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग, हाईकोर्ट में अवमानना के लिए जिम्मेवार होंगे। बिहार में जितने भी मेडिकल कॉलेज हैं उसमें की में सीटी स्कैन मशीन आज तक नहीं लगी है। यानी विद्यार्थियों की पढ़ाई बिना सीटी स्कैन मशीन के हो रही है और बिना इस मशीन के मरीजों का इलाज भी हो रहा है। सरकार की नीयत साफ है। इस पर हाईकोर्ट के फैसले का इंतजार है.

क्लीनिकल स्टेबलिशमेंट रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन एक्ट मामला
वेटर‌र्न्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेसी इन पब्लिक लाइफ ने लोकहित याचिका ख्0क्ब् में दायर कर यह मांग की थी कि ख्8- क्क्- क्ब् के बाद सरकारी अस्पताल, गैर सरकारी अस्पताल, नर्सिग होम, क्लीनिक बिना रजिस्ट्रेशन के चलाने वाले पर क्लीनिकल स्टेबलिशमेंट रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन एक्ट ख्0क्0 की धारा क्ब् और ब्0 के तहत उचित कार्रवाई की जाए और दंडित किया जाए। रिट याचिका की मॉनिटरिंग हाईकोर्ट खुद कर रहा है। लेकिन अब तक सिर्फ तीन हजार का ही टेंपररी रजिस्ट्रेशन हो रहा है और सरकार कार्रवाई नहीं कर रही है। नतीजा मरीजों का शोषण और दलालों की चांदी कट रही है। इस तरह की प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों ने कोई भी ऐसी सूची नहीं प्रकाशित की या बोर्ड लगाया जिससे स्पष्ट हो सके कि किस बीमारी का इलाज करते हैं जबकि मरीजों के नाम, बीमारी और कितने रुपए लिए गए इलाज के लिए इसे एक्ट के लागू होने के दो साल के अंदर (ख्8- क्क्- क्भ् के बाद ) अवश्य रूप से दर्शाना था। यह एक्ट अब तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। इस मामले में कोर्ट का अगला निर्देश क्या होता है लोगों को इंतजार है.

नियोजित शिक्षक बहाली में फर्जीवाड़ा मामला
बिहार में ख्00म् से अब तक लगभग साढ़े तीन लाख जिन नियोजित शिक्षकों की बहाली हुई है इनकी नियुक्ति बिना शैक्षणिक प्रमाण- पत्र, एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट, प्रशिक्षण प्रमाण- पत्र की जांच के बिना ज्वाइन करा लिया गया। हाईकोर्ट ने जब क्षमादान दिया तब तीन हजार शिक्षकों ने रिजाइन कर दिया लेकिन हद यह कि सूबे में विजिलेंस भ्00 जाली शिक्षकों का भी ट्रेस नहीं पा सकी जबकि याचिकाकर्ता सोशल एक्टिविस्ट रंजीत कुमार का दावा है कि ब्0 हजार से ज्यादा फर्जी सर्टिफिकेट पर शिक्षक बहाल हैं। अगर इनके सर्टिफिकेट की जांच होती तो टॉपर्स घोटाला नहीं होता। माना यह जा रहा है कि विजिलेंस की लापरवाही के साथ- साथ राजनीतिक और प्रशासनिक संरक्षण की वजह से तेज कार्रवाई नहीं हो रही। इब तक फर्जी सर्टिफिकेट पर बहाल शिक्षकों से रिकवरी भी नहीं हुई है। तीन हजार शिक्षक के रिजाइन करने पर 8 करोड़ की बचत हर माह राज्य सरकार को हो रही है लेकिन सरकार की मंशा कैसी है इसी से समझिए कि जाली सर्टिफिकेट की जांच तेजी से नहीं हो रही .
कोर्ट में सीनियर वकील दीनू कुमार ने ये बिंदु भी रखा है-
- जिन शिक्षकों ने बहाली के समय शैक्षणिक योग्यता का सर्टिफिकेट, अनुभव प्रमाण- पत्र, प्रशिक्षण प्रमाण- पत्र जमा किया था उन प्रमाण पत्रों के आधार पर विजिलेंस जांच नहीं कर रही.
- जिस आधार पर मेरिट लिस्ट बनी थी उन प्रमाण- पत्रों की जांच की जाए तो जाली शिक्षकों की संख्या लाख से ऊपर चली जाएगी.
- बिहार सरकार आठ साल में भी सर्टिफिकेट का वेरीफिकेशन पूरी तरह नहीं कर पाई है।
- हाईकोर्ट से इस मामले में सीबाआई जांच का आदेश देने की मांग की गई है.

- केन्द्र का पैसा भी शिक्षकों के वेतन आदि में लग रहा है तो फिर केन्द्र सीबीआई जांच की अनुशंसा क्यों नहीं कर रहा?
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