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झारखंड विश्वविद्यालय शिक्षकों की मांग: बिहार की तरह 30 दिन की ग्रीष्मावकाश व्यवस्था जरूरी

झारखंड के विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों ने गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के लिए 30 दिन की ग्रीष्मावकाश (Summer Vacation) की मांग उठाई है। शिक्षकों का कहना है कि जब तक बिहार की तरह झारखंड में भी निर्धारित ग्रीष्मावकाश नहीं मिलेगा, तब तक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं है।

शिक्षकों का तर्क क्या है?

विश्वविद्यालय शिक्षकों के अनुसार, पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें कई शैक्षणिक दायित्व निभाने होते हैं, जैसे—

  • शोध कार्य (Research Work)

  • उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन

  • पाठ्यक्रम का अद्यतन

  • शैक्षणिक लेखन व प्रकाशन

  • UGC के शैक्षणिक मानकों का पालन

इन सभी कार्यों के लिए लगातार और व्यवस्थित अवकाश आवश्यक है, जो फिलहाल झारखंड में नहीं मिल पा रहा।

बिहार मॉडल को बताया आदर्श

शिक्षकों ने उदाहरण देते हुए कहा कि बिहार के विश्वविद्यालयों में 30 दिनों का ग्रीष्मावकाश पहले से लागू है। वहां शिक्षक इस समय का उपयोग शोध और अकादमिक कार्यों में करते हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर होती है।
झारखंड में ऐसी व्यवस्था न होने से शिक्षक मानसिक व शारीरिक रूप से थकान महसूस कर रहे हैं।

राज्यपाल से की गई मांग

विश्वविद्यालय शिक्षक संगठनों ने राज्य के राज्यपाल एवं कुलाधिपति से मांग की है कि—

  • शैक्षणिक कैलेंडर में 30 दिन का ग्रीष्मावकाश जोड़ा जाए

  • शिक्षकों की भागीदारी से अकादमिक कैलेंडर तैयार किया जाए

  • अन्य राज्यों के समान अवकाश नीति लागू की जाए

शिक्षा की गुणवत्ता पर असर

शिक्षकों का कहना है कि बिना उचित अवकाश के—

  • शोध कार्य प्रभावित हो रहा है

  • छात्रों को अद्यतन ज्ञान नहीं मिल पा रहा

  • विश्वविद्यालयों की राष्ट्रीय रैंकिंग पर भी असर पड़ सकता है

निष्कर्ष

झारखंड विश्वविद्यालयों में ग्रीष्मावकाश की मांग केवल अवकाश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उच्च शिक्षा की गुणवत्ता सुधार से जुड़ा मुद्दा है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन इस मांग पर क्या निर्णय लेते हैं।

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