भागलपुर। तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के शिक्षकों की प्रोन्नति का
मामला तुल पकड़ लिया है। शिक्षकों की सूची पर न तो परजेंटिंग ऑफिसर के
हस्ताक्षर थे और न ही जेनरल सेक्शन के कर्मी के। प्रोन्नति से जुड़े कार्य
में सिर्फ एक शिक्षक लगे थे, जो सेवानिवृत हो चुके हैं।
विवि नियम के मुताबिक सेलेक्शन कमेटी में कुलसचिव परजेंटिंग ऑफिसर होते हैं। बाहर से दो एक्सपर्ट, संबंधित विभाग विभागाध्यक्ष, कुलपति रहते हैं। जेनरल सेक्शन वन के कर्मी शिक्षकों की फाइल सेलेक्शन कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। सेलेक्शन कमेटी का कार्य पूरा होने के बाद सूची पर पहले कर्मी के हस्ताक्षर होते हैं और इसके बाद कुलसचिव व कुलपति के हस्ताक्षर होते हैं। लेकिन शनिवार को कुलपति डॉ. नलिनी कांत झा की अध्यक्षता में हुई सिंडिकेट की बैठक में जब शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला रखा गया तो प्रोन्नति सूची में न तो कुलपति के हस्ताक्षर थे और न ही कुलसचिव के। साथ ही परजेंटिंग ऑफिसर व कर्मी के भी हस्ताक्षर नहीं थे। जानकार बताते हैं कि जब सूची में किसी के हस्ताक्षर ही नहीं थे तो सूची अवैध हो गया। ऐसी सूची को सिंडिकेट की बैठक में रखा ही नहीं जाना चाहिए। बावजूद इसके इसे सिंडिकेट की बैठक में रखा गया और सिंडिकेट ने मामले को अगली बैठक तक के लिए टाल दिया। इसको लेकर शिक्षकों में आक्रोश है। शिक्षकों ने अपना आक्रोश सोसल मीडिया पर जाहिर किया है।
मालूम हो कि सिंडिकेट की बैठक में कुलसचिव ने यह कहते हुए प्रोन्नति सूची पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया कि वे इस मामले को जब देखा ही नहीं है तो हस्ताक्षर कैसे करेंगे। इसके बाद सिंडिकेट सदस्यों को पता चला कि शिक्षकों की प्रोन्नति के मामले को कुलसचिव ने नहीं देखा, बल्कि एकेडमिक सलाहकार डॉ. ज्योतिन्द्र चौधरी ने देखा है। अगर परजेंटिंग ऑफिसर डॉ. चौधरी हैं तो सूची में उनके हस्ताक्षर होने चाहिए। इसपर विश्वविद्यालय प्रशासन का संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के कारण सिंडिकेट सदस्यों ने मामले को अगली बैठक के लिए टाल दिया।
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Jagran
विवि नियम के मुताबिक सेलेक्शन कमेटी में कुलसचिव परजेंटिंग ऑफिसर होते हैं। बाहर से दो एक्सपर्ट, संबंधित विभाग विभागाध्यक्ष, कुलपति रहते हैं। जेनरल सेक्शन वन के कर्मी शिक्षकों की फाइल सेलेक्शन कमेटी के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। सेलेक्शन कमेटी का कार्य पूरा होने के बाद सूची पर पहले कर्मी के हस्ताक्षर होते हैं और इसके बाद कुलसचिव व कुलपति के हस्ताक्षर होते हैं। लेकिन शनिवार को कुलपति डॉ. नलिनी कांत झा की अध्यक्षता में हुई सिंडिकेट की बैठक में जब शिक्षकों के प्रोन्नति का मामला रखा गया तो प्रोन्नति सूची में न तो कुलपति के हस्ताक्षर थे और न ही कुलसचिव के। साथ ही परजेंटिंग ऑफिसर व कर्मी के भी हस्ताक्षर नहीं थे। जानकार बताते हैं कि जब सूची में किसी के हस्ताक्षर ही नहीं थे तो सूची अवैध हो गया। ऐसी सूची को सिंडिकेट की बैठक में रखा ही नहीं जाना चाहिए। बावजूद इसके इसे सिंडिकेट की बैठक में रखा गया और सिंडिकेट ने मामले को अगली बैठक तक के लिए टाल दिया। इसको लेकर शिक्षकों में आक्रोश है। शिक्षकों ने अपना आक्रोश सोसल मीडिया पर जाहिर किया है।
मालूम हो कि सिंडिकेट की बैठक में कुलसचिव ने यह कहते हुए प्रोन्नति सूची पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया कि वे इस मामले को जब देखा ही नहीं है तो हस्ताक्षर कैसे करेंगे। इसके बाद सिंडिकेट सदस्यों को पता चला कि शिक्षकों की प्रोन्नति के मामले को कुलसचिव ने नहीं देखा, बल्कि एकेडमिक सलाहकार डॉ. ज्योतिन्द्र चौधरी ने देखा है। अगर परजेंटिंग ऑफिसर डॉ. चौधरी हैं तो सूची में उनके हस्ताक्षर होने चाहिए। इसपर विश्वविद्यालय प्रशासन का संतोषजनक जवाब नहीं मिलने के कारण सिंडिकेट सदस्यों ने मामले को अगली बैठक के लिए टाल दिया।