आज शुबह मैं जैसे ही बिस्तर छोड़ा सबसे पहले "अध्यापक शिक्षा महाविद्यालय,भागलपुर का बेवसाईट पर जाकर प्रशिक्षण को लेकर जारी प्रथम सौ अभ्यर्थियों की नामावली देखा।
बड़े बारीक से अपना नाम ढूंढ़ा नहीं मिला थोड़ा निराश हुआ फिर सोचा अगले लिस्ट में आ जाएगा और एक हल्की आह भरने के बाद एक और मित्र +२ हिन्दी शिक्षक धर्मवीर दास का नाम देखते ही उल्लासित हो चुका,,,बैसे तो औपबंधिक सूची में नाम दर्ज होने के कारण मैं कई दिनों से उन से संपर्क साधने को उतावला था किन्तु प्रतीक्षा थी कि अंतिम तौर से नाम आ जाने के उपरान्त ही बात की जाए तो बेहतर होगा ताकि नामांकन प्रक्रिया के साथ-साथ अन्य विविध दो बर्षीय प्रवास से संबंधित बिन्दुओं पर मसलत की जाए ।
खैर जो भी हो ,,मैंने धर्मवीर दास जी को फोन लगाया चार-पाँच रिंग के बाद एक महिला रूंधे स्वर में फोन उठाईं ,,,मैं अपना परिचय देते हुए धर्मवीर जी से बात करने की ईच्छा उस महिला से प्रकट की,,,और यकायक,,,वो महिला फफक कर रो उठी मुझे आश्चर्य हुआ कि बात क्या है ? और कौतूकवश पूछा,,,,,वो महिला करूण-क्रंदन स्वर में विलाप करते हुए,,,,हम्मर रजबा दुनिया छोड़ के चल गेलखून सर,,,लौट के अब नय ऐतून सर,,,,,मैं सन्न रह गया,,चक्कर आ गया,,,,हक्का-बक्का रह गया ,,,नबम्वर,,२०१३ में दोनो की नियुक्ति साथ में हुई थी,,,पहली बार उनसे मुलाकात वहीं नियोजन ईकाई,बिहारशरीफ में चयनित शिक्षकों की प्रकाशित सूची देखने के दौरान हुई थी। नाटे कद-काठी के समान्य-श्याम से दिखनेवाले धर्मवीर दास जी सरल,सीधे,खुशमिजाज एवं मृदुभाषी थे,उनकी भाषा में पूरबी मगही बोली की मिश्रित मिठास किसी भी व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त था,,फिर मैं भी हिन्दी साहित्य से हूँ यह जानकर वो मुझसे मेरा नम्बर लिए और हिन्दी में नेट करने की हमसे ईच्छा जाहिर करे हुए हमें आदर के साथ मार्गदर्शन करने का निवेदन किए मैंने आश्वासन भी दिया और इस संदर्भ में नेट से संबंधित महत्वपूर्ण किताब पढ़ने की जानकारी भी उपलब्ध करवाई,,,,खैर दोनो नियुक्त हुए वे +२हिन्दी शिक्षक के रूप में गोनावा,पोआरी,जिला नालन्दा,हरनौत के समीप में नियुक्त हुए और मेरी नियुक्ति +२हिन्दी शिक्षक,,,अजयपुर,नूरसरास नालन्दा में हुई हम दोनों को स्थानीय पोस्टिंग हुई सो हम दोनों खुश,,फिर दोनों कई बार मिले,चुनाव ड्यूटी,बैठक,वीक्षण-परीक्षण कार्य,धरना-प्रदर्शन,आन्दोलन आदि कई अवसरों पर दोनों की मुलाकात होती रही ,,,,,,मानस पटल पर ये सारी स्मृतियाँ लहरे मारने लगी,,जीवन की निस्सारता कुरेदने लगा,,,एक बारगी तो लगा कि राँग नम्बर है ,ऐसा कैसे हो सकता है,,कोई इस तरह से दुनिया को छोड़कर कैसे जा सकता है,,,वो महिला बोलीं-कोई बीमारी नहीं थी अचानक ही सैलाब से उमड़ चले,,,घर की माली हालात ठीक नहीं ,पाँ बच्चे हैं छोटे-छोटे कोई देखनेवाला नहीं, कोई आर्थिक मदद नहीं,,कोई सांत्वना नहीं,,रोई सहारा नहीं घर में अभाव ही अभाव है छ: दिन हो गए उनको गए हुए,,जो कुथ जमा था दवा-दारू में खत्म हो गए,,,साठ हजार जो पिछले एकमुश्त अप्रशिक्षितों की वेतन राशि थी उसे भी जाने से पूर्व किसी बीई.डी. महाविद्यालय को दे दिए हैं जिसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है,,,मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था मैं केवल मूक होकर सून रहा था,,,।फिर मैं सम्भला और आश्वासन दिया भरोसा दिया मदद को,तसल्ली दिया और उचित मुआवजा दिलाने की साहसिक बात कर घर के कोई पढ़े-लिखे सदस्य से बात करवाने की मैंने ईच्छा प्रकट की,,,धर्मवीर जी की बड़ी इस बर मैट्रीक की परीक्षा दी थी,,घर में अब उनके बाद सबसे अधिक पढ़ी-लिखी एक मात्र वहीं है,,,वो भी बेचारी फोन लेते ही रोने लगी,,,कभी निराला ने सरोज स्मृति लिखा आज एक निराला पर पुत्री पिता वियोग-गीत गा रही है,,,मैंने उसे बातों का हौसला दिया पत्थर बनने के हर गुर सिखाए,,,,संघर्ष,शिक्षा और धैर्य का मंगल पाठ कराया पर इन सब का क्या? क्या धर्मवीरदास ज को मैं ला सकता हूँ,,,क्या एक बाप को बेटी के जिद पर ला सकता हूँ,,,क्या पाँच परिवार का भरण -पोषण कर वो पूरी खुशियाँ दे सकता हूँ जो जीवन होने के साथ धर्मवीर जी प्रदान करते,,,नहीं शायद बिलकुल नहीं,,, क्या शिक्षक होना अपराध है,,उस पर भी नियोजित होना दोहरा अपराध है,,फिर अप्रशिक्षित नियोजित होना तीसरा अपराध है? अगर नहीं तो शिक्षक संघ और सरकार दोनों ऐसे धर्मवीर भाईयों जैसे हजारों नियोजितों,अप्रशिक्षित,,शिक्षकों के लए क्या व्यवस्था कर रखी है। अगर कुछ भी ऐसा प्रवधान है जिससे इस बेचारे के परिवारवालों को तत्कालीन आर्थिक एवं वैचारिक भावनागत सहायता प्रदान किया जाए तो वह कार्य अतिशीघ्र किया जाना चाहिए,,,,,,,आज धर्मवीर जी का परिवार जिस तरह बिलख रहा है डर है कि आने वाले समय में हजारों धर्मवीर जी जैस् अप्रशिक्षितों औरनियोजितों के परिवार के सामने यह यक्ष र्रषश्न के रूप में उपस्थित है,,,मैं,आप और हम सब आने वाला समय में लिखो फेको की स्थिति में हैं हम सब एकजूट हों और इस परिवार को संघ और सरकार दोनों से बाजिव न्याय दिाने हेतू मुहिम छेड़ें,,,,,वो महिला जो फोन पर कलप रही थी,,,वो धर्मवीरदास जी की धर्मपत्नी थीं,,,,,,भगवान उन्हें हिममत दे और आगामी जीवन की दु:स्वारियों से लड़ने क शक्ति एवं क्षमता प्रदान करें,,,,धर्मवीर जी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे,,,,,,,,
बड़े बारीक से अपना नाम ढूंढ़ा नहीं मिला थोड़ा निराश हुआ फिर सोचा अगले लिस्ट में आ जाएगा और एक हल्की आह भरने के बाद एक और मित्र +२ हिन्दी शिक्षक धर्मवीर दास का नाम देखते ही उल्लासित हो चुका,,,बैसे तो औपबंधिक सूची में नाम दर्ज होने के कारण मैं कई दिनों से उन से संपर्क साधने को उतावला था किन्तु प्रतीक्षा थी कि अंतिम तौर से नाम आ जाने के उपरान्त ही बात की जाए तो बेहतर होगा ताकि नामांकन प्रक्रिया के साथ-साथ अन्य विविध दो बर्षीय प्रवास से संबंधित बिन्दुओं पर मसलत की जाए ।
खैर जो भी हो ,,मैंने धर्मवीर दास जी को फोन लगाया चार-पाँच रिंग के बाद एक महिला रूंधे स्वर में फोन उठाईं ,,,मैं अपना परिचय देते हुए धर्मवीर जी से बात करने की ईच्छा उस महिला से प्रकट की,,,और यकायक,,,वो महिला फफक कर रो उठी मुझे आश्चर्य हुआ कि बात क्या है ? और कौतूकवश पूछा,,,,,वो महिला करूण-क्रंदन स्वर में विलाप करते हुए,,,,हम्मर रजबा दुनिया छोड़ के चल गेलखून सर,,,लौट के अब नय ऐतून सर,,,,,मैं सन्न रह गया,,चक्कर आ गया,,,,हक्का-बक्का रह गया ,,,नबम्वर,,२०१३ में दोनो की नियुक्ति साथ में हुई थी,,,पहली बार उनसे मुलाकात वहीं नियोजन ईकाई,बिहारशरीफ में चयनित शिक्षकों की प्रकाशित सूची देखने के दौरान हुई थी। नाटे कद-काठी के समान्य-श्याम से दिखनेवाले धर्मवीर दास जी सरल,सीधे,खुशमिजाज एवं मृदुभाषी थे,उनकी भाषा में पूरबी मगही बोली की मिश्रित मिठास किसी भी व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त था,,फिर मैं भी हिन्दी साहित्य से हूँ यह जानकर वो मुझसे मेरा नम्बर लिए और हिन्दी में नेट करने की हमसे ईच्छा जाहिर करे हुए हमें आदर के साथ मार्गदर्शन करने का निवेदन किए मैंने आश्वासन भी दिया और इस संदर्भ में नेट से संबंधित महत्वपूर्ण किताब पढ़ने की जानकारी भी उपलब्ध करवाई,,,,खैर दोनो नियुक्त हुए वे +२हिन्दी शिक्षक के रूप में गोनावा,पोआरी,जिला नालन्दा,हरनौत के समीप में नियुक्त हुए और मेरी नियुक्ति +२हिन्दी शिक्षक,,,अजयपुर,नूरसरास नालन्दा में हुई हम दोनों को स्थानीय पोस्टिंग हुई सो हम दोनों खुश,,फिर दोनों कई बार मिले,चुनाव ड्यूटी,बैठक,वीक्षण-परीक्षण कार्य,धरना-प्रदर्शन,आन्दोलन आदि कई अवसरों पर दोनों की मुलाकात होती रही ,,,,,,मानस पटल पर ये सारी स्मृतियाँ लहरे मारने लगी,,जीवन की निस्सारता कुरेदने लगा,,,एक बारगी तो लगा कि राँग नम्बर है ,ऐसा कैसे हो सकता है,,कोई इस तरह से दुनिया को छोड़कर कैसे जा सकता है,,,वो महिला बोलीं-कोई बीमारी नहीं थी अचानक ही सैलाब से उमड़ चले,,,घर की माली हालात ठीक नहीं ,पाँ बच्चे हैं छोटे-छोटे कोई देखनेवाला नहीं, कोई आर्थिक मदद नहीं,,कोई सांत्वना नहीं,,रोई सहारा नहीं घर में अभाव ही अभाव है छ: दिन हो गए उनको गए हुए,,जो कुथ जमा था दवा-दारू में खत्म हो गए,,,साठ हजार जो पिछले एकमुश्त अप्रशिक्षितों की वेतन राशि थी उसे भी जाने से पूर्व किसी बीई.डी. महाविद्यालय को दे दिए हैं जिसकी जानकारी स्पष्ट नहीं है,,,मुझे तो समझ में नहीं आ रहा था मैं केवल मूक होकर सून रहा था,,,।फिर मैं सम्भला और आश्वासन दिया भरोसा दिया मदद को,तसल्ली दिया और उचित मुआवजा दिलाने की साहसिक बात कर घर के कोई पढ़े-लिखे सदस्य से बात करवाने की मैंने ईच्छा प्रकट की,,,धर्मवीर जी की बड़ी इस बर मैट्रीक की परीक्षा दी थी,,घर में अब उनके बाद सबसे अधिक पढ़ी-लिखी एक मात्र वहीं है,,,वो भी बेचारी फोन लेते ही रोने लगी,,,कभी निराला ने सरोज स्मृति लिखा आज एक निराला पर पुत्री पिता वियोग-गीत गा रही है,,,मैंने उसे बातों का हौसला दिया पत्थर बनने के हर गुर सिखाए,,,,संघर्ष,शिक्षा और धैर्य का मंगल पाठ कराया पर इन सब का क्या? क्या धर्मवीरदास ज को मैं ला सकता हूँ,,,क्या एक बाप को बेटी के जिद पर ला सकता हूँ,,,क्या पाँच परिवार का भरण -पोषण कर वो पूरी खुशियाँ दे सकता हूँ जो जीवन होने के साथ धर्मवीर जी प्रदान करते,,,नहीं शायद बिलकुल नहीं,,, क्या शिक्षक होना अपराध है,,उस पर भी नियोजित होना दोहरा अपराध है,,फिर अप्रशिक्षित नियोजित होना तीसरा अपराध है? अगर नहीं तो शिक्षक संघ और सरकार दोनों ऐसे धर्मवीर भाईयों जैसे हजारों नियोजितों,अप्रशिक्षित,,शिक्षकों के लए क्या व्यवस्था कर रखी है। अगर कुछ भी ऐसा प्रवधान है जिससे इस बेचारे के परिवारवालों को तत्कालीन आर्थिक एवं वैचारिक भावनागत सहायता प्रदान किया जाए तो वह कार्य अतिशीघ्र किया जाना चाहिए,,,,,,,आज धर्मवीर जी का परिवार जिस तरह बिलख रहा है डर है कि आने वाले समय में हजारों धर्मवीर जी जैस् अप्रशिक्षितों औरनियोजितों के परिवार के सामने यह यक्ष र्रषश्न के रूप में उपस्थित है,,,मैं,आप और हम सब आने वाला समय में लिखो फेको की स्थिति में हैं हम सब एकजूट हों और इस परिवार को संघ और सरकार दोनों से बाजिव न्याय दिाने हेतू मुहिम छेड़ें,,,,,वो महिला जो फोन पर कलप रही थी,,,वो धर्मवीरदास जी की धर्मपत्नी थीं,,,,,,भगवान उन्हें हिममत दे और आगामी जीवन की दु:स्वारियों से लड़ने क शक्ति एवं क्षमता प्रदान करें,,,,धर्मवीर जी की आत्मा को शान्ति प्रदान करे,,,,,,,,