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शिक्षक बोले : सिर्फ देते 'काम', कहां मिलता समय पर 'दाम'

बगहा। शिक्षक समाज और राष्ट्र निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन आज यही शिक्षक अपनी समस्या में इस कदर उलझ कर रह गए हैं कि वे अपने कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील नहीं रह गए हैं। मानव को संसाधन के रुप में परिवर्तित करने का जिम्मा जिनके कंधों पर होता है उनके अपने पेशे से आज मोहभंग हो गया है। आज यह समुदाय बदहाली की जिंदगी जीने को विवश है।
पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक व मानसिक परेशानियों के बीच जीवन जीने को विवश हो गए हैं। उन्हें उनके कार्यो के मुताबिक समान वेतन नहीं मिलता है। एक ही विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों के लिए अलग-अलग वेतन के प्रावधानों ने इनके जख्म को और भी गहरा कर दिया है। हालांकि इन्हीं शिक्षकों की बदौलत अमूमन विद्यालयों का संचालन सुनिश्चित हो रहा है। फिर भी समान काम के बदले समान वेतन नहीं मिल पा रहा है। दूसरी ओर ऐसी नीतियां बनाई गई हैं कि समाज का अनपढ़ या काफी कम पढ़े लिखे व्यक्ति विद्यालय के निरीक्षण के रुप में पहुंचते हैं। ऐसे अभिभावक शिक्षक से अच्छी पढ़ाई की जगह मध्याहन भोजन, साइकिल पोशाक, नैपकिन, छात्रवृत्ति आदि की राशि के लिए सर्वाधिक उलझे हुए देखे जा सकते हैं। कुछ अभिभावक तो शिक्षकों से कुछ सीख लेने की जगह योजनाओं की राशि नहीं मिलने पर आंदोलन करने व शिक्षक के प्रति आक्रोशित होने व उनसे सवाल-जवाब करने को सिखाते हैं। तो वहीं विभाग द्वारा उन्हें शिक्षण कार्य की जगह गैर शैक्षणिक कार्यो में फंसाया रखा जाता है। ऐसे में शिक्षक भला चाहते हुए भी आने बच्चों को इतनी प्रताड़ना सहने के लिए शिक्षक क्यों बनाएंगे?
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बोल शिक्षक.
1. प्रधानाध्यपक प्रकाश नारायण करते हैं कि साल का ऐसा कोई माह नहीं होता है जिसमें विभाग विद्यालय से तीन चार तरह की सूचनाएं नहीं मांगनी पड़ती हों। शिक्षक विद्यालय छोड़कर शिक्षा विभाग के दफ्तर का चक्कर लगाते हैं ऐसे कई प्रकार की समस्याएं हैं जिनसे शिक्षकों को अपने उपर सींज होती है। आज कोई शिक्षक ऐसा नहीं जो तनाव में न जी रहा हो। ऐसे में कुंठा के शिकार कोई व्यक्ति गुणवत्तपूर्ण शिक्षा कैसे प्रदान कर सकेगा। यह प्रश्न बार-बार उठता रहा है।
2. प्रधान शिक्षक कमल प्रसाद का कहना है कि शिक्षा व्यवस्था में कई खामियों को अनेक प्रकार के विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है। सरकारी स्कूलों में संसाधन के अभाव को दूर करने का ठोस प्रसाद नहीं होने का खामियाजा शिक्षकों को ही भुगतना पड़ता है। शिक्षा के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन की बात सिर्फ भाषणों तक ही सिमट कर रह जाती है। धरातल पर स्कूलों में सुधार के दिशा में ठोस पहल जरुरी है।
3. प्रधान शिक्षक गोविंद प्रसाद का मानना है कि शिक्षक पेशा सदा सम्मानित रहा है और आगे भी रहेगा। समस्याओं से जूझकर भी अपने पेशे के प्रति वफादार रहना शिक्षक भली भांति जानते हैं। यह सच है कि आज शिक्षक भी एक कर्मचारी से अधिक कुछ और नहीं रह गया है। बावजूद इसके बच्चों की सफलता मानना हो हमारा धर्म है। मगर सरकार हमारा दर्द नहीं समझती।
4. शिक्षक संतोष कुमार कहते हैं कि आज शिक्षकों की वास्तविक स्थिति यह है कि उनका पूरा समय एमडीएम, पोशाक, छात्रवृत्ति राशि, आधार कार्ड आदि बहुत से गैर शैक्षणिक कार्यो को कराया जाता है। बावजूद इसके शिक्षक अपने विद्यालय में निष्ठा के साथ बच्चों को पढ़ाने में समय देते हैं। परंतु सरकार के उदासीन रवैये के कारण कोई भी शिक्षक चाह कर भी अपने बच्चों को शिक्षक नहीं बनाना चाहते हैं।
5. प्रधान शिक्षक भगवान प्रसाद का कहना है कि जब तक शिक्षकों को मध्याहन भोजन गैर शैक्षणिक कार्य व असैनिक निर्माण कार्य आदि कार्यो से मुक्त नहीं किया जाएगा। तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रभावित ही रहेगी। विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना की जा सकती है।

6. शिक्षक धनंजय मिश्रा का कहना है कि नियोजित शिक्षकों के बीच जूनियर सीनियर के संसय को सरकार द्वारा एक रुप रेखा तैयार नहीं करने के कारण शिक्षकों में असंतोष की भावना व्याप्त है। जबकि राज्य ब्यूरों पटना से एक रिपोर्ट था जिसमें सीनियर जूनियर का जिक्र किया गया था। शिक्षा विभाग को भी एक-एक प्रपत्र प्रत्येक विद्यालय में भेजना चाहिए जिससे शिक्षकों में आपसी सौहार्द बना रहेगा।
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