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जम्मू-कश्मीर से बीएड किए हुए युवा भी बिहार में बन सकेंगे शिक्षक

पटना। बिहार सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर से बीएड कर चुके छात्र-छात्राओं की नियुक्ति राज्य के सरकारी स्कूलों के नियोजित शिक्षकों के रूप में करने का रास्ता खोल दिया है। राज्य सरकार से अनुमति मिलने के बाद शिक्षा विभाग ने भी नियुक्ति नियमावली में संशोधन कर लिया है।


दोबारा बहाल होगी हटाए गए शिक्षकों की सेवा
इस फैसले के बाद जिन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र व स्कूल आवंटन कर दिया गया था, लेकिन ज्वाइनिंग नहीं हुई थी उन्हकी जल्द ही ज्वाइनिंग कराई जाएगी। वहीं, जम्मू-कश्मीर से बीएड करने वाले वैसे शिक्षक जिन्हें सेवा से हटा दिया गया था उन्हें फिर से बहाल किया जाएगा।

मेधा सूची में आने के बाद भी ऐसे अभ्यर्थियों को रखा गया बाहर
शिक्षा विभाग ने शिक्षक नियुक्ति नियमावली, 2012 में एनसीटीइ से मान्यता प्राप्त संस्थानों से बीएड पास करने वाले को ही नियुक्ति का प्रावधान किया था। जम्मू-कश्मीर की संस्थाएं एनसीटीइ के क्षेत्र अधिकार से अलग थी। इसलिए 2012 से शुरू हुई नियुक्ति प्रक्रिया में जम्मू-कश्मीर के बीएड संस्थानों से डिग्री लेने वाले करीब 1600 अभ्यर्थियों को मेधा सूची में आने के बाद भी अलग रखा गया।

जिनकी नियुक्ति पेंडिंग वो भी होंगे नियुक्त
जम्मू-कश्मीर से बीएड करने वाले करीब 350 अभ्यर्थियों की ज्वाइनिंग हुई। इसमें से 150 लोगों को सेवा से हटा दिया गया और करीब 200 लोग अभी भी कार्यरत हैं व स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। शिक्षक नियुक्ति नियमावली में संशोधन होने से जम्मू-कश्मीर से बीएड करने वाले इन अभ्यर्थियों की वर्तमान में चल रही नियुक्ति प्रक्रिया में भी बहाली हो सकेगी और जिन जगहों पर उनकी नियुक्ति पेंडिंग है, वह भी नियुक्त हो सकेंगे।

शिक्षा विभाग बीएड डिग्रीधारी वैसे शिक्षकों को जिन्हें हटाया गया है उन्हें भी दोबारा बहाल करने की तैयारी कर रहा है। विभागीय सूत्रों की मानें तो 2013 नियुक्ति प्रक्रिया में जिन अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग हुई और स्कूल तक आवंटन कर दिया गया था उन शिक्षकों की नियुक्ति होगी। साथ ही उन्हें नियुक्ति पत्र जारी करते समय से ही वरीयता में रखा जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट में मामला है लंबित

जम्मू-कश्मीर से बीएड करने वाले अभ्यर्थियों की प्रदेश में बहाली का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अभ्यर्थियों की जब नियुक्ति नहीं हो रही थी तो वे 2013 में पटना हाइकोर्ट की शरण में गए थे। हाइकोर्ट में मामला नहीं सुलझने पर सितंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट में 12 जनवरी, 2015 को इस केस पर पहली सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार बिहार सरकार को नोटिस दिया, तब जाकर सरकार ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह नियमवली में संशोधन कर रही है।
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